13 मार्च को पूरे धूमधाम के साथ विश्व सांस्कृतिक महोत्सव समाप्त हुआ. देश-विदेश से आए मेहमान महोत्सव में शामिल होकर लौट चुके हैं. लेकिन एक चीज है, जो नहीं लौटी. वह है इस महोत्सव के साथ गांव में आई गंदगी और खेती का नुकसान.
फिर से जुट गए हैं किसान
यमुना के किनारे बसे गांवों के किसानों ने एक बार फिर अपने खेतों में काम करना शुरू कर दिया है. लेकिन, अब कुछ दिनों तक इन्हें खेत में पड़े मल-मूत्र, पानी की बोतलों, पॉलिथीन और थर्मोकोल के ग्लासों को चुनना होगा, क्योंकि सांस्कृतिक महोत्सव के नाम पर खड़ी फसलों को बुलडोजर से कुचल दिया गया, फिर कूड़े से खेत पाट दिए गए.
अपने खेत पर सफाई करते हुए अखिलेश कुमार कहते हैं,
अब क्या कहें और क्या नहीं. वो आए और चले गए. छोड़ गए हैं ये कूड़ा. दिवाली से खेती को ढककर रखा हुआ था. पेशाब से पूरा खेत भर दिया है. आप ही बताइए क्या करें?
खेतिहर मजदूर धर्मेंद्र शर्मा कहते हैं...
पूरे खेत में पन्नी ही पन्नी है, बोतल ही बोतल है. हाथों से मल-मूत्र साफ कर रहे हैं. देखिए मेरे हाथों को. हम नहीं करेंगे, तो कौन करेगा. पुलिस को बोले, तो वो बोलती है कि लोग आए हैं, तो जाएंगे नहीं क्या? अब पुलिस से कौन भिड़े. वैसे भी हम खेतिहर मजदूर हैं. किराए पर खेत लिया है. रिस्क नहीं ले सकते.
खेतों की सफाई हमारी जिम्मेदारी नहीं
महोत्सव स्थल की सफाई का ठेका लेने वाली कंपनी बीवीजी इंडिया लिमिडेट के वरिष्ठ अधिकारी ओम प्रकाश कहते हैं कि उनकी कंपनी को महोत्सव स्थल की सफाई करने के लिए अधिकृत किया गया है.
हम महोत्सव स्थल की सफाई कर रहे हैं. लेकिन खेतों और यमुना में सफाई करवाना हमारी जिम्मेदारी नहीं है.
खेतिहर-मजदूर और किसान खुद अपने खेतों में सफाई में जुटे हैं...और सफाई के सभी पुराने वादे अब धूमिल होते नजर आ रहे हैं.
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