2 हफ्तों से कुछ ज्यादा समय बाद देश कारगिल युद्ध की 17वीं सालगिरह मना रहा होगा. 500 शहीदों को उस दिन पूरे सरकारी ताम-झाम के साथ श्रद्धांजलि दी जाएगी.
लेकिन अभी भी कुछ मुद्दे जस के तस बने हुए हैं. आज भी भारतीय सेना के पास युद्ध के लिए गोला-बारूद की कमी है. हाल में सेना के पास युद्ध की स्थिति में केवल 14 दिनों का ही गोला-बारूद बचा है.
आर्मी सूत्रों के मुताबिक, इस समस्या से निपटने के लिए ट्रेनिंग में खर्च किए जाने वाली गोलियों को बचाया जा रहा है. तोपखानों और टैंक रेजीमेंटों का भी यही हाल है.
उत्पादन में गिरावट
सरकारी दस्तावेजों में उत्पादन में कमी के कारण बखूबी दर्ज हैं. देशभर में असलहा-बारूद बनाने वाले ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) की 14 फैक्ट्रियां हैं. इनमें लगभग सभी तरह के हथियार और गोला-बारूद बनाए जाते हैं, लेकिन यह हमेशा जरूरत से काफी कम होता है.
सेना के मुताबिक, वो अपनी प्लानिंग बेहतर तरीके से करके पहले ही बता देते हैं कि कितना गोला-बारूद ट्रेनिंग पर खर्च होगा या कितना उपद्रव से संबंधित आॉपरेशन में खर्च हो जाएगा. यहां तक कि सेना आगे आने वाले 5 साल की और सालाना जरूरतों के हिसाब से भी अपनी डिमांड भेज देती है. ऑर्डिनेंस बोर्ड को सही समय पर पैसा भी भेज दिया जाता है, लेकिन बोर्ड की तरफ से कभी समय पर मांग पूरी नहीं की जाती.
वहीं इस मामले पर ओएफबी का कहना है कि उनके पास उत्पादन के लिए जरूरी सभी साधन और क्षमताएं मौजूद हैं, लेकिन सेना की तरफ से किश्तों में ऑर्डर देने और अंतिम सहमति पर देर करने के कारण गोला-बारूद की आपूर्ति में देर हो जाती है.
स्वायत्तता की कमी के चलते होती है फैसलों में देरी
इस समस्या के बारे में इंस्टीट्यूट अॉफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के एक पेपर से पता चलता है कि सेना की सार्वजनिक यूनिटों में की ऑटोनॉमी की कमी इस मामले में रुकावट बनती है. इन सार्वजनिक यूनिटों के अहम फैसले रक्षा मंत्रालय करता है. इस तरह के कंट्रोल के चलते ही ओएफबी का विकास रुका हुआ है.
ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों में बदलाव और अन्य समस्याएं
रक्षा मंत्रालय के आदेश के मुताबिक, ओएफबी सेल्फ अटेस्टेशन (प्रमाणन) की दिशा में बढ़ रहा है, लेकिन यह छोटी चीजों तक ही सीमित है. हालांकि इसके साथ भी पारदर्शिता की समस्या है.
ओएफबी में कीमतों के साथ ही तकनीक भी एक मुद्दा है. वहीं देश में ओएफबी की मॉनिटरिंग करने की कोई व्यवस्था भी नहीं है.
सेना के ओएफबी के सबसे बड़े ग्राहक होने के बावजूद इसका ओएफबी में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. इसके अलावा हथियार बनाने वाली बड़ी सरकारी यूनिटों जैसे डीआरडीओ के साथ ओएफबी की समन्वय में भी कमी है.
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