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अंदर की बात: गुजरात में आखिरी दौर में शाह की चाल से पलटी बिसात

पहले ये तय था कि नितिन पटेल बनेंगे CM, वे खुद सबको बता रहे थे अपना विजन, लेकिन फिर दिल्ली से आए अमित शाह...

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अति उत्साही गुजराती न्यूज चैनलों ने शुक्रवार दोपहर ऐलान कर दिया कि नितिन पटेल ही गुजरात के नए मुख्यमंत्री होंगे. उनकी मुस्कुराती हुई तस्वीरें सभी चैनलों पर दिखाई देने लगीं. उनके समर्थक पटाखे फोड़ने लगे.

इतना कुछ ही काफी नहीं था. आत्मविश्वास से भरपूर नितिन पटेल ने इंटरव्यू तक दे डाले, जिसमें उन्होंने भविष्य के लिए अपना विजन भी बता डाला. उन्होंने बधाइयां तक स्वीकार करनी शुरू कर दीं.

पार्टी सूत्रों ने पत्रकारों को बताना शुरू कर दिया कि बात पक्‍की हो चुकी है. प्रदेश के मौजूदा हालात और जातिगत स्थिति के हिसाब से ये मानना तार्किक भी था.

लेकिन अमित शाह का कुछ दूसरा ही प्लान था. गुरुवार सुबह वे गांधीनगर पहुंचे. वहां उन्होंने पार्टी के सीनियर नेताओं और विधायकों से एक-एक कर मुलाकात की. शुक्रवार दोपहर वहां केंद्रीय निरीक्षक नितिन गडकरी विधायकों की मीटिंग के लिए पहुंचे. यहीं से सियासी ड्रामे की शुरुआत हुई.

सरप्राइज मीटिंग

अमित शाह ने गडकरी को पहले सर्किट हाउस बुलाया. यह मीटिंग पहले से तय नहीं की गई थी. शाह और गड़करी के वहां पहुंचने के बाद अचानक वहां प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विजय रुपानी पहुंच गए. रुपानी पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन उन्होंने दो दिन पहले ही अपनी दावेदारी खत्म कर दी थी. यह मीटिंग केवल 10 मिनट चली.

शाह और आनंदीबेन के बीच तकरार!

अमित शाह, नितिन गडकरी और विजय रुपानी विधायकों के पास बैठक की जगह पर पहुंचे. यहां पार्टी के पदाधिकारी, केंद्रीय निरीक्षक उनका इंतजार कर रहे थे. मीटिंग में कुछ देर के बाद ही ये साफ हो गया कि सीएम चुनने के मसले पर गुजरात बीजेपी दो भागों में बंट चुकी है.

अमित शाह ने अपने खासमखास विजय रुपानी का नाम आगे बढ़ाया. विरोधी कैंप में खुद आनंदीबेन ने मोर्चा संभाल रखा था. उन्होंने खुलकर विजय रुपानी का विरोध किया. उन्होंने दलील दी कि रुपानी को प्रशासन का कम अनुभव है. इसके बाद अमित शाह और आनंदीबेन के बीच खुलकर तर्कों की तकरार हुई. दोनों के संबंधों में पहले से ही कड़वाहट किसी से छुपी नहीं है.

गुस्से से तरबतर आनंदीबेन ने आरोप लगाया कि पाटीदार आंदोलन, जिसकी वजह से उन्हें मुख्यमंत्री पद गंवाना पड़ा, को पार्टी के भीतर से ही हवा दी गई है. उन्होंने नितिन पटेल के लिए अपनी जगह खाली की थी.

शाह कैंप के लोगों ने आरोप लगाया कि नितिन पटेल फैसले लेने में तेज नहीं हैं. साथ ही उनमें संगठनात्मक गुणों की कमी है. शाह के लोगों के मुताबिक, नितिन पटेल अपने बोलचाल का भी खयाल नहीं रखते, जो हाल की परिस्थितियों में पार्टी के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है.

मोदी ने दिया फॉर्मूला

माहौल गरमाता जा रहा था, आम सहमति बनना मुश्किल लग रहा था. ऐसे में मोदी से बात करके पार्टी संगठन सचिव वी सतीश सामने आए.

सूत्रों के मुताबिक मोदी ने समझौते के लिए फॉर्मूला दिया, तो तय हुआ कि रुपानी को सीएम बनाया जाएगा और नितिन पटेल को डिप्टी सीएम. रुपानी अल्पसंख्यक जैन समाज से पहले सीएम बनने जा रहे हैं.

नितिन पटेल गुजरात में बीजेपी के पहले डिप्टी सीएम होंगे. 

समझौता या दरार?

आनंदीबेन के जाने के बाद रुपानी के जरिए अमित शाह गुजरात सरकार और संगठन, दोनों पर अपनी पकड़ रखेंगे. इस तरह का समझौता न केवल पार्टी की दरार को उजागर करता है, बल्कि कमजोर नेतृत्व को भी दर्शाता है. रुपानी के पास खुशी मनाने का रत्ती भर समय नहीं है.

हार्दिक पटेल ने पहले ही घोषणा कर दी है कि नितिन पटेल को मुख्यमंत्री न बनाकर बीजेपी ने पाटीदारों का अपमान किया है. हार्दिक पटेल द्वारा नितिन पटेल का साथ देना शाह-रुपानी की जोड़ी के लिए अच्छा संकेत नहीं है.

सरकार के अंदर दो और बाहर दो (शाह और आनंदीबेन) शक्ति केंद्र होने से बीजेपी बंटी हुई दिखाई दे रही है. यह विपक्ष के लिए आदर्श स्थिति है, लेकिन क्या वो इसका फायदा उठा पाएंगे? रुपानी के सामने प्रशासन और बंटी हुई पार्टी को एकजुट करना सबसे बड़ी चुनौती होगी.

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