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‘एक थी बेगम’- मुंबई अंडरवर्ल्ड की बेगम की कहानी

‘एक थी बेगम’- 1980 के दशक में मुंबई में जुर्म की दुनिया की कई सच्ची घटनाओं पर आधारित

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‘एक थी बेगम’- 1980 के दशक में मुंबई में जुर्म की दुनिया की कई सच्ची घटनाओं पर आधारित
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‘एक थी बेगम’- 1980 के दशक में मुंबई में जुर्म की दुनिया की कई सच्ची घटनाओं पर आधारित
(फोटोः MX Player)

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एक थी बेगम– MX-प्लेयर की वेब-सीरीज है, जिसके 14 एपिसोड हैं. ये सीरीज 1980 के दशक में मुंबई में जुर्म की दुनिया की कई सच्ची घटनाओं पर आधारित होने का दावा करती है.

नाना और जहीर नाम के दो विरोधी गुटों की गैंगवॉर से इस कहानी की शुरुआत होती है, जब जहीर दुबई में रहने वाले डॉन मकसूद से बगावत कर देता है और अलग गैंग बना लेता है. जहीर मुंबई में ड्रग्स के कारोबार को रोकने के लिए मकसूद के कई ड्रग्स के कंसाइनमेंट पकड़ लेता है.

ऐसी ही एक वारदात के दौरान एक हादसा हो जाता है. इस घटना में मकसूद के लिए मुंबई में काम करने वाले नाना का भाई रघु मारा जाता है. यहीं से कहानी ड्रग्स के आपराधिक कारोबार से बढ़ कर बदले, साजिशों और हत्याओं के तेज सिलसिले में तब्दील हो जाती है.

इसके बाद जो कुछ घटता है वो जुर्म की दुनिया से जुड़े कई लोगों की जिंदगी में उथल-पुथल मचा देता है जिसे ये सीरीज बड़े विश्वसनीय तरीके से पेश करती है. कहानी गैंगस्टरों के बीच संघर्षों तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि अपराधियों, पुलिसवालों के गठजोड़ और नेताओं, पत्रकारों के बीच की कश्मकश को भी बखूबी बयान करती है.

‘एक थी बेगम’ के मेन-प्लॉट को अगर ताश का खेल कहें तो ये - इक्के, बादशाहों और गुलामों के बीच वर्चस्व के खेल में अशरफ नाम की एक ‘बेगम’ के उतरने की कहानी है. हालातों के चलते इस ‘बेगम’ का हिंसा और जुर्म की दुनिया में आना, इस कहानी को अपराध जगत में एक औरत के बदले की कहानी में तब्दील कर देता है.

MX Player की नई वेब सीरीज ‘एक थी बेगम’(फोटोः MX Player)

‘एक थी बेगम’ में किरदार सशक्त हैं और इसकी बड़ी वजह हर अहम किरदार की बैकग्राउंड स्टोरी का मजबूत होना है. अनुजा साठे, अंकित मोहन, चिन्मय मांडलेकर, राजेंद्र शिसातकर, रेशम, अभिजीत चव्हाण, प्रदीप दोइफोड़े, विठ्ठल काले, नजर खान, विजय निकम, अनिल नागरकर, सुचित जाधव, राजू अठावले और संतोष जुवेकर जैसे कलाकारों ने अपने रोल को बखूबी निभाया है, फिर चाहे भावुक सीन हों या एक्शन सीन.

‘एक थी बेगम’ की बात अधूरी रहेगी अगर सीरीज़ की भाषा पर बात न की जाए. भाषा को लेकर लेखक और निर्देशक सचिन दारेकर किसी किस्म की हिचक या परहेज करते नजर नहीं आते. सरकारी महकमों की भाषा की औपचारिकता, घरों में बोली जाने वाली भाषा का अदब या अपराधियों के बोलने में मौजूद हिंसा का पुट कहानी के साथ मेल खाते हैं. पूरी सीरीज में भाषा आक्रामक जरूर है पर वो बनावटी नहीं लगती.

‘एक थी बेगम’ का एक सीन(फोटोः MX Player)

कई बार लोकेशन का चयन ध्यान खींचता है और सटीक लगता है. 1980 के दौर का एहसास सीरीज में लाने के लिए कॉस्ट्यूम, हेयरस्टाइल, लोकेशन, सेट और गाड़ियों पर की गई मेहनत भी साफ दिखाई देती है.

MX-प्लेयर की सीरीज ‘एक थी बेगम’ का अगर OTT-प्लेटफार्म पर मौजूद किसी भी दूसरी भारतीय क्राइम सीरीज से मुकाबला किया जाए तो ये सीरीज क्राइम के रियलिस्टिक वेब-कॉन्टेंट में अच्छा बदलाव कही जा सकती है.

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