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कर्ज में डूबा किसान, घाटे में खेती, पानी के लिए हाहाकार, आमदनी में गिरावट, कमजोर मॉनसून, महंगी खाद.. ये बातें भले ही अब मीडिया की सुर्खियां ना बन पाती हों, लेकिन किसानों की बदहाली छिपाई नहीं जा सकती है. जरा सोचिए जो किसान देश का अन्नदाता है वही भूखा सोता है. जरा सोचिए जो अपनी खेतों में देश के लिए जीवन उगाता है वही कर्ज के बोझ से परेशान होकर खुदकुशी कर लेता है. साल 1995 से लेकर 2015 तक देशभर में करीब 3 लाख किसानों ने आत्महत्या की थी.
5 जुलाई 2019 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मोदी सरकार 2 का पहला बजट संसद में पेश करेंगी. मतलब ये बजट मोदी सरकार के फॉरवर्ड प्लान और आर्थिक नीति को लेकर रोडमैप होगा. ऐसे में परेशान अन्नदाता को भी इससे बड़ी उम्मीदें हैं.
चलिए बात करते हैं किसानों की उन उम्मीदों पर जिसे सरकार को नजरअंदाज बिलकुल भी नहीं करना चाहिए-
भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली कृषि जीडीपी में करीब 17% का योगदान देती है. देश की आधी आबादी खेती से जुड़ी है. 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने अंतरिम बजट में पीएम किसान योजना का ऐलान किया. उसके तहत करीब 14.5 करोड़ छोटे किसान परिवारों को साल में 6,000 रुपए मिलेंगे. लेकिन अब जीतकर दोबारा सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने पहली कैबिनेट मीटिंग में यह फैसला किया कि किसान सम्मान निधि योजना के तहत अब सभी किसानों को सालाना 6,000 रुपये मिलेंगे.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था. लेकिन ये कैसे होगा सरकार ने अब तक इसका नक्शा भी सामने पेश नहीं किया है. नीति आयोग ने भी माना था कि किसान की आय में ना के बराबर बढ़ोतरी हुई है. 2016 के आर्थिक सर्वे में 17 राज्यों में किसान परिवारों की आय 20 हजार रुपये सालाना से कम है यानी 1,700 रुपये महीने या लगभग 50 रुपये हर दिन. ऐसे में किसानों को ये उम्मीद है कि सरकार इस बजट में किसानों के लिए कोई रोडमैप बनाएगी ताकि जो कहा है वो पूरा हो.
देश पानी के संकट से गुजर रहा है. आधी से ज्यादा खेती मॉनसून और बारिश पर निर्भर है. मतलब सिंचाई पर फोकस की जरूरत है. साल 2015 में मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना लागू की थी. इस योजना के तहत अगले पांच सालों के लिए 50 हजार करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था. लेकिन इसके बावजूद अब भी किसान पानी के संकट से जूझ रहे हैं. इस बजट से भी किसानों को वही पुरानी उम्मीद है कि सरकार कोई लॉन्ग टर्म योजना बनाएगी. पानी बचाने, उसके बेहतर इस्तेमाल के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होगा.
ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2000-2017 के बीच में किसानों को 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ क्योंकि उन्हें उनकी फसलों का सही दाम नहीं मिला. मतलब जितना पैसा लगाकर किसान ने फसल उगाई है, उसे उतना भी दाम नहीं मिलता.
इसी को देखते हुए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य मतलब MSP दोगुना करने का वादा किया था लेकिन वो अब भी जमीन पर नजर नहीं आया. किसानों को अब भी उम्मीद है सरकार ऐसा रास्ता निकालेगी जिससे किसानों को अपने खून पसीने की मेहनत का सही मेहनताना मिलेगा. msp बढ़ाने के साथ ही उपभोक्ता और किसानों के बीच बिचौलियों को खत्म करना इसमें सहायक हो सकता है.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या सरकार ने अपने पुराने वादे पूरे किए? और अगर पुराने वादे पूरे नहीं किए तो क्या अब वो नए वादे पूरे करेगी? क्या किसान अब अपनी उगाई सब्जियों और फलों को विरोध जताने के लिए नहीं फेकेंगे. क्या सरकार किसानों को ऐसा तोहफा देगी जिससे वो दिल्ली के जंतर-मंतर पर रास्ता नहीं नापेंगे?
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