advertisement
अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने आर्थिक विकास दर को बढ़ाने के लिए कई बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं का ऐलान किया था जैसे 100 स्मार्ट शहरों का निर्माण, ग्रामीण घरों को सौभाग्य योजना के तहत 100 फीसदी बिजलीकरण, सबके लिए मकान और छोटे शहरों में हवाई अड्डों का निर्माण. लेकिन सरकार फंड नहीं जुटा पाई और न ही इन योजनाओं को रफ्तार दे पाई. अब नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन मैकेनिज्म के तहत 105 लाख करोड़ रुपये की इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं का ऐलान किया गया है.
इकनॉमी में जिस तरह की मंदी है उसे उबारने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर में बड़ा निवेश करने की मांग पहले से ही होती रही है. दुनिया भर में सरकारें मंदी से उबरने के लिए यही रास्ता अपनाती हैं. मौजूदा हालात में भारत में भी यही करना होगा.
भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के सबसे बड़े फाइनेंसर बैंक हैं और भारतीय बैंक जिस खस्ता हाल में हैं वो किसी से छिपा नहीं है. ऐसे में इन परियोजनाओं के लिए बाहरी फंड पर भरोसे रखना होगा. यह सरकार पर निर्भर करेगा कि वह विदेशी निवेशकों को कितना भरोसा दिला पाती है क्योंकि इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का पीरियड लंबा होता है और फंडिंग करने वालों का पैसा इसमें फंसा रहता है. इसलिए सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि परियोजनाओं को पूरा करने में तेजी लाई जाए.
विशेषज्ञों का मानना है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को जमीन पर मुकम्मल तौर पर उतारा जाए. अगर वक्त पर ये योजनाएं पूरी नहीं होंगी तो उनकी लागतें बढ़ती जाएंगी. सरकार को परियोजनाओं पर नजर रखनी होगी और उन्हें मंजूरी भी जल्दी देनी होगी. नहीं तो नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन सिर्फ एक पॉलिसी डॉक्यूमेंट बन कर रह जाएगी.
इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में बड़ा निवेश रोजगार के मोर्चे पर भी सरकार को राहत देगा. देखना होगा कि बजट में सरकार इस मामले में कितनी गंभीरता दिखाती है. फिलहाल, सरकार से इस मोर्चे पर किसी ‘बिग बैंग’ ऐलान की उम्मीद है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)