Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Budget Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019खुश है जमाना आज पहली तारीख है लेकिन महंगाई, किसान, बेरोजगार और गरीबों का क्या?

खुश है जमाना आज पहली तारीख है लेकिन महंगाई, किसान, बेरोजगार और गरीबों का क्या?

Budget 2023: आज से ज्यादा कल का बजट, लेकिन कल किसने देखा?

संतोष कुमार
आम बजट 2022
Published:
<div class="paragraphs"><p>Budget 2023 में किए गए ऐलानों का मतलब समझिए</p></div>
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Budget 2023 में किए गए ऐलानों का मतलब समझिए

(फोटो:उपेंद्र कुमार/क्विंट हिंदी)

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बजट 2023 कैसा है?

जैसी उम्मीद थी.

लेकिन क्या खुश है जमाना आज पहली तारीख है?

चुनावी साल से पहले आया ये बजट ऊपर-ऊपर किसी को नाखुश करने वाला नहीं है.

मिडिल क्लास खुश है

क्योंकि 7 लाख की आमदनी तक टैक्स नहीं लगेगा.

इंफ्रा सेक्टर खुश है

क्योंकि ताबड़तोड़ खर्च किया गया है. रेलवे को रिकॉर्डतोड़ 2.40 लाख करोड़ का बजट दिया गया है.

अर्थशास्त्री खुश हैं

क्योंकि वित्तीय घाटे के लक्ष्य को इस साल के 6.4% से घटाकर अगले साल 5.9% तक सीमित करने का टारगेट है.

इंफ्रा पर इतने बड़े खर्च के बावजूद सरकार ने सिर्फ 15.43 लाख करोड़ कर्ज लेने का टारगेट रखा है, जबकि अनुमान था कि ये 15.8 लाख करोड़ हो सकता है. 2023 के लिए 7% ग्रोथ का अनुमान है जो कि दुनिया के हालात को देखते हुए बहुत बढ़िया है.

कारोबारी खुश हो सकते हैं

क्योंकि कानूनी पचड़ों को कम करने की कोशिश की गई है और उनके लिए कुछ और गारंटीशुदा कर्ज की व्यवस्था की गई है.

लेकिन बारिकी से देखेंगे तो कई चीजें ऐसी हैं जो कई वर्गों को परेशान कर सकती हैं.

अमीर और गरीब के बीच खाई का क्या?

बजट से पहले लगातार चर्चा हो रही थी कि भारत में गरीबों और अमीरों के बीच की खाई बढ़ रही है. ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया था-

  • सबसे अमीर 21 भारतीय अरबपतियों के पास 70 करोड़ भारतीयों से अधिक संपत्ति है

  • सबसे अमीर 1% भारतीयों के पास 40% से ज्यादा संपत्ति है

  • आधी आबादी के पास महज 3% संपत्ति है.

लिहाजा सलाह दी जा रही थी कि वेल्थ टैक्स लगाना चाहिए ताकि गरीबों पर और खर्च बढ़े. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. अमीरों के बारे में बस एक चीज ये है कि प्रॉपर्टी बेचने पर जो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स( रिहाइशी मकान लेने में इस्तेमाल किया जाए तो) जो टैक्स छूट थी उसे 10 करोड़ तक सीमित कर दिया गया है.

तो एक तरफ तो अमीरों पर कोई भार नहीं बढ़ाया गया, ऊपर से ऐसा लग रहा है कि गरीबों की अनदेखी की गई है. जैसे कि-

पीएम पोषण योजना का पैसा घटाया गया है

पिछली बार इस योजना को 12,800 करोड़ रुपये दिए गए थे, लेकिन इस बार सिर्फ 11,600 करोड़ रुपये दिए गए हैं.

इसी तरह पोषण पर सब्सिडी में बड़ी कमी की गई है

पिछली बार इसके लिए करीब 71 हजार करोड़ रखे गए थे, लेकिन इस बार बहुत बड़ी गिरावट करते हुए इसे सिर्फ 44,000 करोड़ कर दिया गया है.

महंगाई और बेरोजगारी की समस्या बड़ी, एक्शन छोटा?

CMIE के मुताबिक जनवरी में बेरोजगारी दर 7.14% है. दिसंबर में महंगाई दर कुछ घटी है लेकिन ये अब भी 5.72% है. यानी अब भी बेरोजगारी और महंगाई सबसे बड़ी समस्या है. लेकिन बजट में इन दोनों को हैंडल करने के लिए सीधे-सीधे कुछ बड़ा नहीं किया गया है. कैपिटल एक्सपेंडिचर को 10 लाख करोड़ करने इंफ्रा को बूस्ट मिलेगा तो जरूर रोजगार पैदा होने की उम्मीद है. इसके अलावा रोजगार के लिए कौशल विकास पर नए सिरे से जोर देने की बात की गई है. जैसे 30 स्किल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर बनेंगे. 47 लाख युवाओं को डीबीटी के तहत मानदेय दिया जाएगा. युवाओं को नए युग के पेशों जैसे-कोडिंग, AI, रोबोटिक्स, ड्रोन, थ्री डी प्रिटिंग आदि के लिए ट्रेन किया जाएगा. लेकिन ये सब भविष्य की बात है.

युवाओं को राहत अभी चाहिए. युद्ध अभी चल रहा है. कोविड के जख्म अभी हरे हैं. लाखों युवाओं को ट्रेन करने की योजना तो है लेकिन समस्या ये है कि पहले से ही करोड़ों ट्रेंड युवा बेरोजगार हैं. उन्हें न तो सरकारी नौकरी मिल रही है और ना ही इकनॉमी में इतनी जान है कि प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां पैदा हों. खुद युवाओं की माली हालत ऐसी नहीं है कि वो अपना रोजगार शुरू कर सकें. जहां तक कर्ज लेकर उद्योग धंधा लगाने की बात है तो एक बेरोजगार के लिए बैंक से लोन लेना कितना मुश्किल है, ये बताने की जरूरत नहीं. जहां तक 47 लाख युवाओं को मानदेय की बात है तो यकीन मानिए किसी भी युवा को नौकरी चाहिए, मानदेय नहीं.

रियलिटी में रोजगार मिलेगा?

रोजगार पैदा करने के मामले में दूसरे नंबर पर रियल एस्टेट सेक्टर है. लेकिन इसको सीधे कुछ नहीं दिया गया है. इंफ्रा पर जोर और पीएम आवास योजना मद में ज्यादा खर्च से जरूर हाउसिंग सेक्टर को मदद मिलेगी. ये भी कह सकते हैं कि आयकर में बचत होगी तो लोगों की जेब में ज्यादा पैसे होंगे, जिससे लोग अपने सपनों का घर खरीदने का सपना देख सकते हैं.

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गांव-किसान को झटका?

जिस मनरेगा के बारे में दुनिया कह रही है कि इसके जरिए कोविड काल में करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा के नीचे जाने से बचा लिया गया, उसी का बजट घटा दिया गया है.

पिछले साल मनरेगा का रिवाइज्ड बजट 89,400 करोड़ था लेकिन इस बार इसे घटाकर 60,000 करोड़ कर दिया गया है.

हमारी 60% आबादी गांव में रहती है लेकिन गांव पर कई मदों में खर्च घटा है

ग्रामीण विकास

इस बार 2,38,204 करोड़ खर्च करने का प्रस्ताव है, जबकि पिछली बार 2,43,317 करोड़ का रिवाइज्ड प्रावधान था.

यूरिया सब्सिडी

घटा दिया गया है. इस बार यूरिया सब्सिडी 1,31,100 करोड़ है, जबकि पिछले साल रिवाइज्ड प्रावधान 1,54,098 करोड़ था.

खाद सब्सिडी

पिछले साल रिवाइज्ड खर्च था 2,25,220 करोड़ रुपये, इस बार का प्रावधान है 1,75,100 करोड़.

पीएम ग्राम सड़क योजना

पैसा नहीं बढ़ाया गया. ये पिछली बार के रिवाइज्ड प्रावधान 19,000 करोड़ के बराबर ही है.

कृषि क्षेत्र के लिए कर्ज का टारगेट जरूर 20 लाख करोड़ कर दिया गया है. इसी पर भारतीय किसान यूनियन ने प्रतिक्रिया दी है कि अमृतकाल का ये बजट किसानों को ऋणकाल से होते हुए अंधकारकाल में ले जाने वाला है.

सवाल ये है कि चुनावी साल से पहले के बजट में किसानों की बड़ी आबादी को खुश नहीं करने का रिस्क सरकार ने क्यों लिया? शायद सरकार को किसान सम्मान निधि और 81 करोड़ लोगों के लिए एक साल और मुफ्त अनाज योजना पर भरोसा हो.

ग्रोथ और वित्तीय अनुशासन के बीच तालमेल

कोविड के कारण सप्लाई चेन बाधित है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया मंदी की ओर देख रही है. महंगाई से परेशान है. ऐसे में सरकार ने ऐसा बजट पेश किया है जिसको विश्व बिरादरी बड़ी उम्मीद भरी नजरों से दिखेगी, क्योंकि सरकार ने वित्तीय अनुशासन और ग्रोथ के बीच बैलेंस बनाने की कोशिश की है.

बजट में आने वाले भारत का विजन दिखाने की कोशिश है. रेलवे, इंफ्रा पर ज्यादा खर्च, कृषि सेक्टर के लिए स्टोरेज क्षमता का विकास, ग्रीन ग्रोथ और कौशल विकास पर फोकस से भविष्य में फायदा होगा. कुल मिलाकर ये आज से ज्यादा कल का बजट लग रहा है. लेकिन कल किसने देखा? अच्छे दिन के इंतजार में भौंचक खड़ा आज का भारत सुंदर कल की राह कब तक देखे, यही सोच रहा है.

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