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सरकार का छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में बढ़ोतरी करने का फैसला देश के मैक्रो-इकनॉमिक माहौल में होने वाले बदलाव की छोटी सी तस्वीर है. पीपीएफ, एनएससी और सुकन्या समृद्धि योजना जैसी स्कीमों पर अक्टूबर से दिसंबर तक की तिमाही के लिए ब्याज दरों में 0.3 से 0.4 परसेंट तक की बढ़ोतरी हुई है.
पीपीएफ और एनएससी पर अब 8 फीसदी ब्याज मिलेगा, वहीं सुकन्या समृद्धि योजना में ब्याज दर 8.5 फीसदी है. ये बढ़ोतरी जाहिर तौर पर फिक्स्ड इनकम प्रोडक्ट्स के इन्वेस्टर्स के लिए एक खुशखबरी है, लेकिन साथ ही इसने साफ कर दिया है कि इकनॉमी में सस्ते कर्ज का दौर अब खत्म हो चुका है और ब्याज दरें एक बार फिर ऊपर की ही रुख करने जा रही हैं.
वैसे इसका सबसे पहला संकेत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसी साल जून के महीने में ही दे दिया था, जब उसने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी थी. और रेपो रेट 6.25 फीसदी हो गया था. खास बात ये थी कि ये बढ़ोतरी पिछले साढ़े चार साल में पहली बार हुई थी. जनवरी 2014 में रेपो रेट 8 फीसदी था, जिसके बाद से इसमें आरबीआई ने अगस्त 2017 तक लगातार कटौती करके इसे 6 फीसदी कर दिया था. जून 2018 ही वो वक्त है, जहां से ट्रेंड रिवर्स होने लगा.
इसके बाद जब अगस्त में आरबीआई ने एक बार फिर 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी की, तो साफ हो गया कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी का नया दौर शुरू होने वाला है. इसके बाद से अलग-अलग बैंकों ने भी अपने एफडी और दूसरी जमा योजनाओं पर ब्याज दर में बढ़ोतरी की, साथ ही कर्ज भी महंगा किया.
बैंकों की एफडी ब्याज दर को देखने से साफ है कि ये अभी भी सरकार की छोटी बचत योजनाओं के मुकाबले काफी कम हैं. ऐसे में बैंकों के लिए आने वाले समय में ब्याज दर बढ़ाना अगर जरूरी नहीं तो मजबूरी जरूर है. यही नहीं, इस बात की भी काफी संभावना है कि अक्टूबर की क्रेडिट पॉलिसी में आरबीआई रेपो रेट में एक बार फिर से बढ़ोतरी करे. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि डॉलर के मुकाबले रुपया बेहद कमजोर हो चुका है.
इस साल की शुरुआत से अब तक रुपए में 12 परसेंट से ज्यादा की गिरावट आई है. और रुपए की गिरावट को थामने की आरबीआई की कोशिशें एक सीमा तक ही सफल हुई हैं. इस वजह से ना सिर्फ इंपोर्ट महंगा हुआ है, बल्कि महंगाई दर में उछाल का खतरा भी बढ़ चुका है. वित्त मंत्री कह चुके हैं कि सरकार गैर-जरूरी इंपोर्ट पर लगाम लगाने के कदम उठाएगी, ताकि डॉलर की मांग में कमी आए और रुपया संभले. लेकिन ये रातों-रात तो होगा नहीं.
इसलिए आरबीआई इस बात की कोशिश करेगा कि महंगाई दर उसके ‘कम्फर्ट जोन’ से बाहर ना जाए, और इस वजह से ब्याज दर में बढ़ोतरी तय मानी जा रही है. मनी मार्केट एक्सपर्ट्स और इकोनॉमिस्ट तो इस बात की आशंका जता रहे हैं कि दिसंबर 2018 तक रेपो रेट में आधे परसेंट की बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है. यानी रेपो रेट इस साल के अंत तक 7 फीसदी हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो इसका नतीजा ब्याज दरों में ऊंची बढ़त के रूप में दिखेगा.
हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि रेपो रेट को 7 फीसदी से 6 फीसदी करने में आरबीआई ने करीब 2 साल का समय लिया था, लेकिन 6 से 7 फीसदी का स्तर वापस पहुंचने में सिर्फ 6 महीने का समय लगेगा. जाहिर है, ब्याज दरों में जिस रफ्तार से गिरावट आई थी, उसमें बढ़ोतरी की रफ्तार कहीं ज्यादा तेज होने वाली है. यानी ये साफ है कि अगले तीन महीने में जहां बैंक डिपॉजिट में लोगों को ज्यादा ब्याज मिल सकेगा, वहीं कर्ज लेने वालों को बढ़ी हुई ईएमआई देने के लिए भी तैयार होना होगा.
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