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अगर आप इन शब्दों को पढ़ रहे हैं तो इस बात की संभावना काफी ज्यादा है कि या तो आपके पास पहले से इंश्योरेंस पॉलिसी है या फिर आप इसे लेने का मन बना रहे हैं. दोनों ही स्थिति में आपके लिए ये पढ़ना जरूरी है.
इंश्योरेंस यानी बीमा हम सबकी जिंदगी से किसी ना किसी रूप में जुड़ा है. लाइफ इंश्योरेंस, हेल्थ इंश्योरेंस, मोटर इंश्योरेंस, ट्रैवल इंश्योरेंस, फायर इंश्योरेंस, प्रॉपर्टी इंश्योरेंस और यहां तक क्रॉप इंश्योरेंस यानी फसल बीमा.
लेकिन अभी मेरा फोकस है जीवन बीमा मतलब लाइफ इंश्योरेंस के बारे में हर बात साफ साफ और सभी एंगल से सामने रखना.
इसमें पॉलिसीहोल्डर को लाइफ कवर मिलता है. ये बाकी सभी इंश्योरेंस पॉलिसी के मुकाबले सबसे सस्ता होता है. इसमें तय अवधि तक हर साल प्रीमियम की एक निश्चित राशि देनी होती है और इस दौरान पॉलिसीहोल्डर का निधन हो जाए तो नॉमिनी को एक तय राशि मिल जाती है. लेकिन अगर पॉलिसीहोल्डर के साथ अनहोनी नहीं होती तो बीमा की अवधि खत्म होने के बाद कोई रकम नहीं मिलती.
जैसा कि नाम से साफ है होल लाइफ इंश्योरेंस प्लान पॉलिसीहोल्डर को जीवन भर का कवर देता है. इसमें पॉलिसीहोल्डर को जीवन रहने तक हर साल प्रीमियम देना पड़ता है. पॉलिसी होल्डर की मौत के बाद नॉमिनी को तय रकम मिलती है. टर्म प्लान के मुकाबले इसमें ये फर्क है कि होल लाइफ पॉलिसी होल्डर इमरजेंसी में इंश्योरेंस कंपनी से कर्ज भी ले सकता है.
इसका प्रीमियम टर्म प्लान के मुकाबले थोड़ा ज्यादा होता है.
टर्म प्लान या होल लाइफ पॉलिसी के मुकाबले एंडाउमेंट प्लान में फर्क ये है कि पॉलिसीहोल्डर को मैच्योरिटी बेनेफिट भी मिलता है. यानी, अगर पॉलिसी अवधि के दौरान पॉलिसीहोल्डर की जान चली जाती है तो सम अश्योर्ड उसके नॉमिनी को मिल जाएगी, लेकिन अगर पॉलिसी मैच्योर हो जाती है तो सम अश्योर्ड पॉलिसीहोल्डर को मिलेगी.
ये एंडाउमेंट प्लान का ही एक रूप है. इसमें पॉलिसी अवधि के दौरान नियमित अंतराल पर सम अश्योर्ड का कुछ हिस्सा पॉलिसीहोल्डर को वापस मिलता रहता है, इसलिए इसे मनी बैक प्लान कहा जाता है. पॉलिसी मैच्योर होने पर सम अश्योर्ड का बचा हुआ हिस्सा और कुछ बोनस पॉलिसीहोल्डर को दिया जाता है. और, अगर बदकिस्मती से पॉलिसीहोल्डर की मौत पॉलिसी अवधि के दौरान होती है तो उसके नॉमिनी को सम अश्योर्ड मिलता है.
यूलिप भी ट्रेडिशनल एंडाउमेंट प्लान का एक रूप है, जिसमें पॉलिसीहोल्डर की मौत होने या पॉलिसी मैच्योर होने पर सम अश्योर्ड (या निवेशित रकम, अगर वो ज्यादा है) का भुगतान होता है. इसमें प्रीमियम की रकम का निवेश स्टॉक या डेट मार्केट में किया जाता है, और निवेशित रकम की वैल्यू एनएवी (नेट एसेट वैल्यू) के रूप में दिखाई जाती है. काफी हद तक यूलिप म्युचुअल फंड की तरह होते हैं, बस अंतर ये है कि इसमें आपको इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट दोनों साथ मिलते हैं, और चार्ज म्युचुअल फंड के मुकाबले कहीं ज्यादा होते हैं.
अब हम आपको एक उदाहरण के जरिए अलग-अलग पॉलिसी में प्रीमियम की रकम के बारे में बताते हैं. इससे आपको अंदाजा लग जाएगा कि किस पॉलिसी में आपको कितना प्रीमियम चुकाने की जरूरत पड़ सकती है. यहां हमने 25 साल के स्वस्थ और नॉन-स्मोकर पॉलिसीहोल्डर का उदाहरण लिया है और ये सारी पॉलिसी एलआईसी की हैं.
जब इतने तरह की इंश्योरेंस पॉलिसीज हैं तो असमंजस होना स्वाभाविक है. लेकिन इंश्योरेंस पॉलिसी चुनने के पहले इस बात को जरूर ध्यान में रखें कि इंश्योरेंस का मकसद है कवर यानी परिवार की आर्थिक सुरक्षा. इसलिए निवेश सलाहकार बार-बार ये बात दोहराते हैं कि इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट प्लान को मिलाया नहीं जाना चाहिए.
ये बात आप ऊपर दिए गए एलआईसी के टेबल से भी समझ सकते हैं कि इंश्योरेंस प्लान में इन्वेस्टमेंट को मिलाते ही उसका प्रीमियम किस तेजी से बढ़ता है. टर्म प्लान के लिए 50 लाख के सम अश्योर्ड के लिए जो प्रीमियम करीब सात हजार है, वही मनी बैक प्लान में करीब 4 लाख रुपए तक पहुंच जाता है.
साथ ही, इंश्योरेंस प्लान को इन्वेस्टमेंट प्लान के विकल्प के तौर पर भी नहीं देखा जाना चाहिए। हर किसी को ज्यादा से ज्यादा रकम का इंश्योरेंस प्लान लेना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर परिवार को आर्थिक संबल मिले. इसलिए जरूरी है कि इंश्योरेंस पॉलिसी चुनते वक्त इन बातों का ख्याल रखें-
वैसे भी, किसी अन्य इंश्योरेंस प्लान में आपका सालाना रिटर्न अधिकतम 6-7 फीसदी तक ही होता है. इसलिए बेहतर होगा कि आप इंश्योरेंस के लिए टर्म प्लान लें और इन्वेस्टमेंट के लिए म्युचुअल फंड या अपनी पसंद के किसी दूसरे तरीके को चुनें. आप ऐसा करेंगे तो किसी तरह की इंश्योरेंस मिससेलिंग से भी बचे रहेंगे.
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