advertisement
जेट एयरवेज के अपना कामकाज बंद करने के बाद कंपनी के हजारों कर्मचारियों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है. इन कर्मचारियों की आर्थिक तंगहाली से जुड़ी खबरें रोज सुर्खियों में दिख रही हैं. किसी को अपनी ईएमआई की फिक्र है, किसी को दवाओं के खर्च की तो किसी को बच्चों के स्कूल फीस की.
कई कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें पिछले दो-तीन महीनों से तनख्वाह तक नहीं मिली है. इस बात का जवाब कोई नहीं दे सकता कि जेट एयरवेज जिस कमजोर आर्थिक स्थिति में पहुंच गई है, उसमें इन कर्मचारियों को बकाया पैसे मिलेंगे भी या नहीं; या जेट एयरवेज में अभी जितने कर्मचारी हैं, उन सभी की नौकरी बची रहेगी भी या नहीं.
इन खबरों के बीच जिस एक चीज की अहमियत फिर से उभर कर सामने आती है, वो है इमरजेंसी फंड. ये फंड किसी सरकार, कंपनी या संगठन का जिम्मा नहीं, बल्कि हर इंडिविजुअल का है जो किसी भी तरह के काम-धंधे में लगा है. फाइनेंशियल प्लानिंग में जितना जोर अनुशासित ढंग से निवेश करने पर दिया जाता है, उतना ही हर किसी के लिए इमरजेंसी फंड बनाने पर.
जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, ये फंड वैसी मुश्किल परिस्थितियों के लिए बनाया जाता है, जिन परिस्थितियों से आज जेट एयरवेज के कर्मचारी गुजर रहे हैं. ‘अच्छे दिनों’ के दौरान नियमित रूप से थोड़े-थोड़े करके बचाए गए पैसे ‘बुरे दिनों’ में काफी काम आते हैं.
सबसे पहले ये समझ लें कि इमरजेंसी फंड आपका निवेश नहीं है. ये आप किसी लंबी अवधि के लक्ष्य या रिटर्न पाने के मकसद से नहीं बनाते. इसका एकमात्र उद्देश्य होता है- विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में सहारा देना. इसलिए इमरजेंसी फंड लिक्विड होना चाहिए, यानी जिस वक्त जरूरत हो, उसी वक्त उसके पैसे आपके हाथ में हों.
इस पहलू को आपको हमेशा याद रखना चाहिए और ये फैसला करना चाहिए कि आप इमरजेंसी फंड के पैसे कहां रखेंगे. इस फंड से पैसे निकालने पर ना तो किसी तरह का एक्जिट लोड होना चाहिए, ना प्री-विड्रॉल पेनल्टी. ये ध्यान रखें कि इमरजेंसी फंड में जमा की गई रकम पर रिटर्न भले ही कम मिले, मूलधन किसी भी सूरत में कम नहीं होना चाहिए.
वित्तीय सलाहकारों के मुताबिक, हर किसी के पास उसके मासिक खर्चों के तीन गुने से लेकर छह गुने के बीच का इमरजेंसी फंड होना चाहिए. मतलब, अगर आपका मासिक खर्च 50,000 रुपये है तो आपके इमरजेंसी फंड में डेढ़ लाख से लेकर तीन लाख रुपये तक होने चाहिए. मासिक खर्चों में आपकी मौलिक जरूरतों की गिनती की जाती है, जैसे घर का किराया या ईएमआई, खाना-पीना, बच्चों की स्कूल फीस, जरूरी दवा का खर्च. इमरजेंसी फंड की मदद से आप अपने खर्चों का बोझ आसानी से 3 से 6 महीने तक उठा सकते हैं. और, आम तौर पर एक नौकरी छूटने के बाद दूसरी नौकरी मिलने का औसत समय भी यही होता है यानी 3 से 6 महीने.
ये फंड रातों-रात नहीं बनता, इसके लिए आपको धीरे-धीरे पैसे जमा करने चाहिए. चाहे आपकी नौकरी का ये पहला साल हो या पच्चीसवां, अगर आपने अभी तक इमरजेंसी फंड बनाने की शुरुआत नहीं की है तो आज से ही इसकी शुरुआत कर डालिए. दरअसल, वित्तीय सलाहकार लोगों को नौकरी शुरू करने के साथ ही इमरजेंसी फंड बनाने की सलाह देते हैं. इसके लिए आपको एक बैंक अकाउंट में हर महीने कुछ रकम जमा करनी चाहिए. ध्यान रखिए कि ये बैंक अकाउंट आपके सैलरी अकाउंट से अलग होना चाहिए.
मान लीजिए कि आपका मासिक खर्च 25,000 रुपये है और आप 6 महीने का इमरजेंसी फंड बनाना चाहते हैं तो आपको 1.5 लाख रुपये जुटाने होंगे. इसके लिए आप हर महीने 5,000 या 10,000 रुपये बचाएं और उसे तब तक उस बैंक अकाउंट में जमा करते रहें, जब तक कि वो 1.5 लाख तक ना पहुंच जाए. अगर समय के साथ आपके खर्च बढ़ते हैं तो आपको अपने इमरजेंसी फंड का साइज भी बढ़ा देना चाहिए.
एक बार जब आपने इमरजेंसी फंड में रखने लायक रकम जमा कर ली तो आपको पूरे पैसे उसी बैंक अकाउंट में नहीं रखने चाहिए. आप बैंक अकाउंट में एक या दो महीने के बराबर की रकम छोड़कर बाकी पैसों को लिक्विड फंड, शॉट-टर्म रेकरिंग डिपॉजिट या डेट म्युचुअल फंड में जमा कर सकते हैं. बस, ये पता कर लें कि इनमें से पैसे निकालने की शर्तें क्या हैं, क्या किसी तरह का एक्जिट लोड है, कोई लॉक-इन पीरियड है या फिर पूरे पैसे निकालने की इजाजत है या नहीं.
एक बार फिर याद दिलाना जरूरी है कि इमरजेंसी फंड का मकसद रिटर्न हासिल करना नहीं है बल्कि समय पर तुरंत आपके हाथ में पैसे पहुंचाना है, इसलिए आप रिटर्न से समझौता कर सकते हैं लेकिन लिक्विडिटी से नहीं.
आपके पास अगर इमरजेंसी फंड है तो नौकरी या काम-धंधे की अनिश्चितता कम से कम कुछ महीनों के लिए ही सही, आपको मानसिक और आर्थिक तनाव नहीं देगी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)