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बजट 2020 में सरकार ने इनकम टैक्स के लिए एक नए सिस्टम का एलान किया था. इसमें टैक्स की दरें पुराने सिस्टम के मुकाबले कम रखी गई थीं. हालांकि इनकम टैक्स के नए सिस्टम के साथ-साथ पुराना सिस्टम भी लागू है, और ये टैक्सपेयर्स पर निर्भर है कि वे कारोबारी साल 2020-21 में अपनी इनकम पर टैक्स नए सिस्टम से चुकाना चाहते हैं या पुराने सिस्टम से. दोनों सिस्टम्स की क्या खूबियां-खामियां हैं, ये जानने से पहले हम इनकी टैक्स दरों पर नजर डाल लेते हैं.
दोनों सिस्टम की टैक्स दरों को देखने से ये साफ होता है कि नए सिस्टम में 15 लाख रुपए तक की आमदनी वाले लोगों के लिए टैक्स की दरों में कटौती की गई है.
लेकिन इस कटौती का फायदा उठाने के लिए टैक्सपेयर को इनकम टैक्स में मिलने वाले हर तरह के एक्जेंप्शन और डिडक्शन को छोड़ना होगा. यानी कि अगर कोई टैक्सपेयर पुराने सिस्टम की बजाय नए सिस्टम के हिसाब से इनकम टैक्स देना चाहता है तो उसे खर्चों और निवेश पर किसी तरह की टैक्स छूट का फायदा नहीं मिलेगा. तो किसी टैक्सपेयर के लिए कौन सा सिस्टम बेहतर है, इस सवाल का जवाब इसी बात पर निर्भर करेगा कि वो कितने तरह की टैक्स छूट का फायदा उठाता है.
बजट 2020 के मुताबिक कुल 70 तरह के एक्जेंप्शंस या डिडक्शंस को नए टैक्स सिस्टम से बाहर रखा गया है. इनमें कई ऐसे हैं जिनका फायदा आमतौर पर बड़ी तादाद में सैलरीड टैक्सपेयर्स को मिलता है. टैक्स छूट के कुछ बड़े आइटम इस तरह हैं-
एक बात बिलकुल साफ है कि नए टैक्स सिस्टम में जाने का मतलब है इनकम टैक्स से जुड़ी हर तरह की छूट को भूल जाना. लेकिन अगर दोनों सिस्टम्स की टैक्स दरों पर गौर करें तो पता चलता है कि सालाना 5 लाख रुपए तक की इनकम वाले लोगों के लिए दोनों सिस्टम्स एक जैसे हैं. फिर इस आयवर्ग के लोग किसी तरह की टैक्स छूट क्लेम करते हों या नहीं, उनके लिए टैक्स की देनदारी में कोई बदलाव नहीं आएगा. क्योंकि 5 लाख तक की इनकम वालों को सेक्शन 87ए के तहत साढ़े बारह हजार रुपए तक का रिबेट भी मिलता है. लेकिन 5 लाख से ज्यादा कमाने वालों को ये हिसाब लगाना होगा कि उनके लिए नया टैक्स सिस्टम फायदेमंद है या नहीं. क्योंकि जब तक हमें ये नहीं पता होगा कि आपकी इनकम कितनी है और आप निवेश या किसी और माध्यम से कितनी टैक्स छूट ले रहे हैं, तब तक ये नहीं बताया जा सकता कि कौन सा सिस्टम आपके लिए बेहतर होगा.
अगर कोई टैक्सपेयर ऐसा है जो साल में 5 लाख से ज्यादा कमाता है, लेकिन किसी भी तरह के टैक्स एक्जेंप्शन या डिडक्शन का फायदा नहीं ले रहा है तो उसके लिए नया टैक्स सिस्टम बेहतर है. लेकिन कोई भी ऐसा टैक्सपेयर जो एचआरए, सेक्शन 80सी, सेक्शन 80डी या होम लोन के ब्याज पर टैक्स छूट का फायदा ले रहा है, उसे टैक्स कैलकुलेटर की मदद से अपने फायदे या नुकसान का पता लगाना चाहिए. ऐसा एक टैक्स कैलकुलेटर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने भी अपनी वेबसाइट पर दिया
है, जिसकी मदद से आप नए और पुराने टैक्स सिस्टम में अपनी टैक्स देनदारी की तुलना कर सकते हैं. इस कैलकुलेटर का के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं.
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर जो कैलकुलेटर दिया गया है, उसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है. लेकिन अगर आप अलग-अलग टैक्स एक्जेंप्शंस और डिडक्शंस से साल भर में 2.5 लाख रुपए या इससे ज्यादा का फायदा उठा रहे हैं तो फिर आपको कोई कैलकुलेशन करने की जरूरत नहीं है. नए टैक्स सिस्टम में जाने से आपको कोई फायदा नहीं होगा, फिर चाहे आपकी इनकम कितनी भी हो. हम यहां सालाना 10 लाख कमाने वाले एक सैलरीड टैक्सपेयर का उदाहरण ले रहे हैं-
ऊपर के उदाहरण में आप देख सकते हैं कि 10 लाख की सालाना इनकम वाले टैक्सपेयर को पुराने सिस्टम में बने रहने में फायदा है, क्योंकि उसने 3.25 लाख रुपए के एक्जेंप्शंस या डिडक्शंस हासिल किए हैं.
सैलरीड टैक्सपेयर्स को ये सुविधा दी गई है कि वे हर साल अपने लिए टैक्स सिस्टम का चुनाव कर सकते हैं. यानी अगर किसी सैलरीड टैक्सपेयर ने कारोबारी साल 2020-21 के लिए नया टैक्स सिस्टम चुना है तो उसके पास अगले कारोबारी साल में फिर से पुराने टैक्स सिस्टम में लौटने का विकल्प है. मान लीजिए कि इस साल किसी कारण कोई सैलरीड इंडिविजुअल टैक्स छूट के फायदे नहीं ले पाया, तो उसके लिए नए टैक्स सिस्टम में जाना फायदेमंद होगा. लेकिन अगले साल अगर वो एक्जेंप्शंस या डिडक्शंस के फायदे फिर से उठाता है तो उसके लिए पुराने टैक्स सिस्टम में जाने का विकल्प खुला रहेगा. याद रखें कि ये सुविधा सिर्फ सैलरीड इंडिविजुअल्स के लिए है. बिजनेस या प्रोफेशन से जिनकी इनकम होती है, वे एक बार नए सिस्टम में जाने के बाद पुराने में नहीं लौट सकेंगे.
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