advertisement
वीडियो एडिटर: दीप्ती रामदास
आपके हर ख्वाब, हर काम के लिए आपके पास हमेशा पूरा पैसा हो ये असंभव है. लेकिन अगर अपने गोल्स के मुताबिक प्लान कर लें बचत करें और पैसा डूबने न दें तो संभव है. और आप ये सब कर पाएं इसलिए प्रियंका संभव है. मैं आपको दूंगी वो टिप्स जो आपका पैसा बचाएंगे, आपको नुकसान से बचाएंगे. ऐसी जानकारियां दूंगी जो रोजमर्रा की जिंदगी से लेकर आपकी लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल प्लानिंग में आपकी मदद करेंगी.
क्विंट हिंदी की इस स्पेशल सीरीज पैसा है तो संभव है के पहले एपिसोड में समझिए, घर खरीदें या रेंट पर रहें? कौन है ज्यादा सही?
ये सवाल शादी के लड्डू जैसा पेचीदा हो गया है, जो खाए वो पछताए और जो न खाए वो भी पछताए ऐसे में जरूरी है कि आप दोनों के फायदे और नुकसान को समझें ताकि फैसला लेने के पहले पूरी पिक्चर क्लियर हो.
अपना घर तो अपना घर है. पेरेंट्स , बड़े भाई या अपने रिश्तेदारों के मुंह से ये बात तो हमने न जाने कितनी बार सुनी है. ये उन दिनों की बात है जब पहले पैसा इकठ्ठा होता था फिर घर खरीदा जाता था. लेकिन क्या कर्ज पर घर लेने पर भी ‘अपना घर’ की वही फीलिंग आएगी, जब हर महीने सैलरी का एक मोटा हिस्सा होमलोन की EMI में निकल जाएगा.
अपना घर तो अपना होता है कहनेवालों को मुड़कर कौन कहे कि अपना होमलोन भी तो अपना ही है. होमलोन की EMI के आधे पैसे में और कई बार तो उससे कम पैसे में भी किराये का घर मिल जाता है.
आपकी EMI देने की कैपेसिटी पर लोन का टेन्योर फिक्स होगा जो कि 15-20 साल हो सकता है. हर महीने सैलरी आए न आए लेकिन EMI के अमाउंट की तैयारी रखनी पड़ेगी भगवान न करे नौकरी छूट गई या आप नौकरी से ब्रेक लेना चाहेंगे तो EMI की तलवार आपकी नींद उड़ा सकती है.
रेंट अगर खर्च है तो होमलोन का EMI एक इंवेस्टमेंट है. सालों तक EMI चुकाने के बाद ये गारंटी तो रहेगी कि अंत में फ्लैट अपना होगा. हर इंस्टॉलमेंट की पेमेंट आपको अपने होम स्वीट होम की तरफ एक कदम आगे बढ़ा देती है यानी आप अपने लिए एक संपत्ति तैयार करते चलते हैं.
लोन के प्रिंसिपल अमाउंट के रीपेमेंट पर 80(C) के तहत 1.5 लाख की छूट मिलती है तो वहीं इंटरेस्ट रीपेमेंट पर सेक्शन 24B के तहत सालाना 2 लाख की छूट क्लेम कर सकते हैं. और अब इनकम टैक्स में एक और फायदा मिलेगा नए सेक्शन 80EEA के तहत जिसमें मकान की कीमत अगर 45 लाख तक होगी तो एडिशनल 1.5 लाख की डिडक्शन का भी फायदा मिलेगा. यानी अगर आपकी खरीदी गई प्रॉपर्टी की कीमत 45 लाख से कम हो तो इंटरेस्ट का टोटल डिडक्शन 3.5 लाख पहुंच जाएगा.
हां, वैसे ये बात अलग है कि बड़े मेट्रो शहर में अगर आप रहते हैं तो 45 लाख के बजट में फ्लैट मिलने के मौके न के बराबर हैं.
अगर आप रेंट पर रहने का फैसला करते हैं तो EMI के मुकाबले रेंट आपको सस्ता लगेगा क्योंकि इसपर कोई इंटरेस्ट नहीं वसूल रहा होगा.
EMI एक लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल कमिटमेंट होता है और इसमें बंधने का मतलब होगा कि हर महीने आपके पास अकाउंट में पैसा हो.
रेंट पर रहने का मतलब फ्लेक्सिबिलिटी भी है. अमूमन 11 महीने का रेंट कॉन्ट्रैक्ट बनता है. घर के लुक से बोरियत हो रही है या फिर ठंड के मौसम में धूप नहीं आती या पड़ोसी ताकझांक करने वाले हो तो बस क्या है, अपना बोरिया बिस्तर उठाया और नए ठिकाने की तरफ बढ़ चलें बिना ज्यादा लोड लिए हुए.
जॉब सिक्योरिटी इसे कैसे भी कैलकुलेट नहीं किया जा सकता. खासकर अगर आप प्राइवेट सेक्टर में काम कर रहें हों. सैलरी मोटी होगी लेकिन नौकरी कब तक सलामत रहेगी इसका कोई भरोसा नहीं है. ऐसे में लॉन्ग टर्म EMI कमिटमेंट जरा डाइसी हो जाता है.
रियल एस्टेट को जब हम लॉन्ग टर्म इंवेस्टमेंट की तरह देखते हैं तो स्वीट होम जरा बिटर होम लगने लगता है, जब हम उस एसेट से मिलनेवाले रिटर्न को कैलकुलेट करते हैं. क्या आप जितना EMI अदा कर रहें हैं उस तरह का रेंट वो प्रॉपर्टी आपको कमा कर देगी? अगर आपका इंवेस्टमेंट ज्यादा और रिटर्न कम हो तो फिर तो ये बैड डील ही मानी जाएगी.
रेंट पर खर्च की गई हर एक पाई को हमेशा के लिए भूल जाइए वो कभी लौटकर नहीं आएगी. ‘Its money gone forever’ चाहे आप कितने भी अच्छे किरायेदार बनकर रहें कितना भी समय से रेंट दें वो घर किसी और का ही रहेगा. किराये के साथ मकान मालिक की खिट-पिट और हर साल रिन्युअल का झमेला लगा रहेगा. बार-बार रेंट का घर बदलने पर ब्रोकर कमीशन से लेकर नई जगह पर एडजस्ट करना उतना आसान भी नहीं रहता. मेड, कुक और ग्रोसरी वाले भइया सब नए ढूंढने पड़ेंगे.
किराए पर रहेंगे तो रेंट और घर खरीदेंगे तो EMI. दोनों खर्चों को अब तोल-मोल के देखते हैं. मान लीजिए 50 लाख की प्रॉपर्टी आप खरीद रहें हैं और फंड जुटाकर आपने 10 लाख का डाउन पेमेंट कर दिया. बाकी 40 लाख का होमलोन लिया. इस लोन पर बैंक लेगी इंटरेस्ट. मौजूदा रेट साढ़े 8 से साढ़े 9% के हिसाब से 40 लाख का होमलोन 20 साल के टेन्योर के लिए लिया जाए तो 20 साल पूरे होने पर आप बैंक को सूद समेत लौटा रहें होंगे ज्यादा. प्रिंसिपल की मूल राशि के अलावा इंटरेस्ट करीब प्रिंसिपल का ढाई गुना होता है तो यहां 8.75% पर EMI कैलकुलेट करते हैं.
40 लाख का लोन, महीने की EMI 35,348 रु. जिसमें प्रिंसिपल और इंटरेस्ट दोनों वसूला जा रहा होगा. हर होमलोन का फ्रंट लोड इंटरेस्ट हेवी रहता है यानी लोन के शुरूआती साल में आपका प्रिंसिपल पेमेंट छोटा रहता है और इंटरेस्ट मोटा यानी बैंक्स अपना इंटरेस्ट आपसे पहले वसूलती है तो इस 40 लाख के होमलोन का एक साल यानी 12 महीने का रफ ब्रेकअप आपके सामने रखते हैं.
तो अंत में..यही निष्कर्ष है कि इस दुविधा का एक सीधा सरल जवाब नहीं है कि रेंट बेहतर है या घर खरीदा जाए. और ये एक व्यक्तिगत फैसला है लेकिन कुछ जरूरी सवालों के अगर आपके पास जवाब हैं तो Buy vs Rent की दुविधा से निकलने में आसानी रहेगी.
पहला सवाल- जॉब स्टेबिलिटी जिससे कि सैलरी की स्टेबलिटी तय होगी? यानी क्या आप होमलोन और EMI की लॉन्ग टर्म कमिटमेंट के लिए तैयार हैं?
दूसरा सवाल- क्या आपकी जॉब का नेचर ऐसा है कि कभी यहां तो कभी वहां मतलब शहर और लोकेशन बदलते रहते हैं या आप जल्दी-जल्दी कंपनी बदलते हैं ?
तीसरा सवाल- आपका बजट क्या है और उस बजट में क्या अच्छे लोकेशन पर ऐसा फ्लैट है जिसमें आप जिंदगी गुजारना चाहेंगे?
अंत में यही कहूंगी कि चाहे आप रेंट पर रहें या घर खरीदें घर के हिसाब से बजट तय मत कीजिए बल्कि बजट के हिसाब से घर को तय कीजिए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)