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देश के करीब ढाई हजार बैंक कर्मचारी ऑटोमेशन के ताजा शिकार बन गए हैं. ये कर्मचारी हैं यस बैंक के, जिसने अपने वर्कफोर्स में 10 फीसदी से ज्यादा की कटौती करने का फैसला किया है. यस बैंक के करीब 21 हजार कर्मचारी हैं और बैंक ने छंटनी की वजह बताई है- खराब परफॉर्मेंस, उनका गैर-जरूरी होता जाना और डिजिटाइजेशन का असर.
ध्यान दें कि अंतिम दो वजहें सिर्फ बैंकिंग सेक्टर के कर्मचारियों के लिए नहीं, बल्कि मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज सेक्टर की सभी कंपनियों में काम कर रहे लोगों के लिए खतरे की घंटी है. इसके पहले एचडीएफसी बैंक ने जून 2016 से लेकर मार्च 2017 तक के नौ महीनों में अपने 11,000 कर्मचारियों की छंटनी की थी. इसकी भी वजहें वही बताई गई थीं, जो आज यस बैंक ने बताई है.
आखिर जब बैंकों का बिजनेस बढ़ रहा है तो फिर कर्मचारी गैर-जरूरी कैसे होते जा रहे हैं. दरअसल कर्मचारियों को गैर-जरूरी बना रहा है तेजी से बढ़ता ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस. इसे आप इस तरह से समझें कि पहले आपको अपने बैंक खाते से पैसे निकालने के लिए या जमा करने के लिए बैंक की शाखा में जाने की जरूरत होती थी, आज आप ये काम एटीएम के जरिए कर सकते हैं.
...तो बैंकों के लिए न तो शाखा खोलने की जरूरत है, न वहां किसी क्लर्क को रखने की. उसका काम एक एटीएम लगा देने से हो जाएगा. याद रखिए कि बैंकिंग सिस्टर में जैसे-जैसे डिजिटल ट्रांजेक्शन बढ़ते जाएंगे, उनके लिए ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की जरूरत बढ़ेगी, ह्यूमन इंटरवेंशन या इंसानी दखल की नहीं.
मशीनों से नौकरियों को खतरे की आहट सिर्फ देश में नहीं, पूरी दुनिया में महसूस की जा रही है. हाल ही में एक इंटरव्यू में सिटीग्रुप के पूर्व सीईओ विक्रम पंडित ने आशंका जताई है कि टेक्नोलॉजी अगले 5 साल में 30 फीसदी बैंकिंग नौकरियों को खत्म कर सकती है.
बता दें कि मार्च 2016 में खुद सिटीग्रुप ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उसे साल 2025 तक कर्मचारियों की तादाद में 30 फीसदी तक कटौती का अंदाजा है, जिसकी वजह होगी रिटेल बैंकिंग में ऑटोमेशन.
उन्होंने ये तो नहीं कहा कि ये तादाद क्या हो सकती है, लेकिन जर्मनी के इस बैंक ने करीब 9,000 कर्मचारियों को निकालने की योजना बनाई है. 5 साल के अपने रिस्ट्रक्चरिंग प्लान के तहत डॉएशे बैंक दुनिया भर में काम कर रहे अपने करीब एक लाख कर्मचारियों में से 9,000 की छंटनी कर सकता है.
भारत में आईटी कंपनियों में भी ऑटोमेशन का असर दिखना शुरू हो चुका है. कॉग्निजेंट, इंफोसिस और टेक महिंद्रा में हजारों कर्मचारियों की छंटनी की खबरें इस वित्त वर्ष की शुरुआत से ही आने लगी थीं. लेकिन ऑटोमेशन का झटका यहीं पर रुकता नहीं है. आईटी कंपनियों के कैंपस प्लेसमेंट में 40 फीसदी तक कटौती की भी खबरें हैं. यानी पुरानी नौकरियां तो जा ही रही हैं, नई नौकरियों के मौके भी घटे हैं.
कई सर्वे और रिपोर्ट भी देश के आईटी सेक्टर में जॉब के घटते मौकों की तरफ इशारा कर रहे हैं. सर्विसेज रिसर्च कंपनी एचएफएस ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि साल 2021 तक भारत में आईटी सेक्टर में लोअर स्किल लेवल के करीब 6.40 लाख जॉब खत्म हो जाएंगे. इस दौरान आने वाली नई नौकरियों की तादाद होगी 1.60 लाख. साफ तौर आईटी सेक्टर में बेरोजगार बढ़ेंगे.
ऐसा नहीं है कि सरकार को जॉब मार्केट पर ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के असर की चिंता नहीं है. सरकार ने इसी साल 25 अगस्त को 18 सदस्यों की एक टास्क फोर्स बनाई है, जो इस बात का अध्ययन करेगी कि कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को देश के वर्कफोर्स के साथ जोड़ा जाए.
इसकी अगुवाई आईआईटी, मद्रास में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर कामकोटि विजियांतन कर रहे हैं. इस टास्क फोर्स में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंटरप्रेन्योर, वैज्ञानिक और सरकारी अफसर भी हैं. उम्मीद है कि टास्क फोर्स अपनी रिपोर्ट में इसी बात को प्राथमिकता देगी कि कैसे देश के सामने मौजूद सबसे बड़ी चुनौती- नए रोजगार पैदा करने- से निपटा जाए. और ये जितनी जल्दी हो, उतना बेहतर है, क्योंकि आने वाले दिनों में यस बैंक में छंटनी जैसी खबरों की तादाद तेजी से बढ़ सकती है.
(धीरज कुमार जाने-माने जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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