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जून और जुलाई के महीने में देश में आम तौर पर दो चीजों का इंतजार किया जाता है. एक तो मॉनसून और दूसरा फॉर्म 16, खासकर सैलरीड लोगों को. क्योंकि यही वो महीने होते हैं, जब लोगों को अपने इनकम टैक्स रिटर्न भरने होते हैं. वैसे तो इनकम टैक्स रिटर्न भरने का काम लोग अंतिम समय तक टालते रहते हैं, क्योंकि अक्सर लोगों को रिटर्न फाइल करना जटिल लगता है. लेकिन अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो इसे भरना कोई मुश्किल काम नहीं है.
ये बातें दरअसल वो गलतियां होती हैं, जिनसे आसानी से बचा जा सकता है.
इनकम टैक्स रिटर्न भरते वक्त जिन निजी जानकारियों को देने की जरूरत होती है, उनमें नाम-पता के अलावा पैन नंबर, आधार कार्ड नंबर, कटे हुए टैक्स की राशि और बैंक खाते का ब्यौरा जैसी जानकारी भी होती है. इनमें कोई भूल-चूक होना बड़ी बात नहीं है, लेकिन अगर आप अपने रिटर्न फॉर्म को जमा करने के पहले दोबारा जांच लें तो कोई भी भूल तुरंत पकड़ में आ जाएगी.
ये इसलिए भी जरूरी है कि अगर आपने किसी संख्या को भरने में कोई गलती की तो हो सकता है कि आपकी टैक्स देनदारी बढ़ जाए या फिर टैक्स रिफंड में दिक्कत आ जाए.
ये भूल अक्सर कई लोगों से हो जाती है. रिटर्न भरने से पहले ये सुनिश्चित कर लें कि आपका रिटर्न फॉर्म सही है, क्योंकि इनकम टैक्स विभाग गलत फॉर्म होने पर आपका रिटर्न खारिज कर सकता है, और आपको उस स्थिति में पूरी प्रक्रिया दोहरानी पड़ सकती है.
इसी तरह, अगर आप बिजनेसमैन हैं तो आपके लिए या तो आईटीआर 3 उपयुक्त होगा या आईटीआर 4. लेकिन इस बारे में आप इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट पर सारी जानकारी हासिल करने के बाद ही रिटर्न फॉर्म भरना शुरू करें.
फॉर्म 26 एएस ही वो दस्तावेज होता है, जिसमें इस बात की पूरी जानकारी होती है कि आपने साल भर में कितना टैक्स दिया है और किस-किसको टैक्स दिया है. इसमें आपके एंप्लॉयर, बैंक या किसी भी उस संस्थान के काटे गए टैक्स की जानकारी होगी, जिससे आपका वित्तीय लेन-देन हुआ है.
तो आपको मिले फॉर्म 16 और फॉर्म 16ए के आंकड़ों के साथ फॉर्म 26 एएस का मिलान जरूर करें. इससे आपको ये भी पता चलेगा कि क्या आपका टैक्स आपकी देनदारी से ज्यादा कट गया है और आप रिफंड क्लेम कर सकते हैं या नहीं. ये फॉर्म 26 एएस आपको इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट से मिल जाएगा या फिर आप अपने बैंक की वेबसाइट से भी इसे डाउनलोड कर सकते हैं.
डिडक्शन क्लेम करने से आपकी टैक्स देनदारी काफी घट जाती है. अगर किसी वजह से आपकी कंपनी से मिले फॉर्म 16 में इसका जिक्र नहीं है तो आप रिटर्न फॉर्म में इसका जिक्र जरूर करें और अपने डिडक्शंस क्लेम करें.
मिसाल के लिए आपको सेक्शन 80 सी, 80 डी, एनपीएस में निवेश या किसी संस्थान को दान देने पर जो टैक्स छूट मिलती है, उनका फायदा तभी मिलेगा, जब आप क्लेम करें. अगर आप इसमें चूक जाते हैं तो फिर आपको इस टैक्स छूट से महरूम रहना होगा.
ये भूल भी लोग बड़े पैमाने पर करते हैं. एक्जेंप्ट इनकम के दायरे में पीपीएफ से मिला ब्याज, डिविडेंड, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स, खेती की आय वगैरह आती हैं. तो भले ही इस तरह की इनकम पर टैक्स ना देना पड़े, इनकी जानकारी आपको आयकर विभाग को देना जरूरी है.
ऐसा नहीं करने पर आपको विभाग की तरफ से नोटिस या पूछताछ का सामना करना पड़ सकता है.
जब आप रिटर्न फाइल कर देते हैं तो उसके बाद आपको इस पर डिजिटल हस्ताक्षर करने होते हैं. अगर आपने डिजिटल हस्ताक्षर के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है तो फिर आपको आईटीआर-वी फॉर्म पर दस्तखत करके उसे सीपीसी, बंगलुरू भेजना होता है.
ये आप रिटर्न फाइल करने के 120 दिनों के भीतर कर सकते हैं. इसके अलावा आपके पास इस बात का भी विकल्प होता है कि आप अपने रिटर्न को ई-वेरिफाई कर सकते हैं.
तो बस, आप इन 6 बातों का ध्यान रखिए और फिर जल्द से जल्द अपना रिटर्न फाइल कर दीजिए. वैसे तो इनकम टैक्स विभाग किसी भूल की स्थिति में आपको रिवाइज्ड रिटर्न फाइल करने का भी विकल्प देता है, लेकिन हमें भरोसा है कि अगर आप हमारी सलाह मानकर अपना रिटर्न फाइल करेंगे तो आपके लिए ऐसी नौबत ही नहीं आएगी.
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