Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Business Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मित्रों राहत की लंबी सांस लीजिए, बजट में कोई गुगली नहीं है

मित्रों राहत की लंबी सांस लीजिए, बजट में कोई गुगली नहीं है

सरकार को ये अच्छी तरह पता है कि नोटबंदी ने ठीक-ठाक चल रही अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है.

संजय पुगलिया
बिजनेस
Updated:
(फोटो: <b>क्‍व‍िंट हिंदी</b>)
i
(फोटो: क्‍व‍िंट हिंदी)
null

advertisement

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जो बजट पेश किया है, उसकी समझदारी और सादगी ये बताती है कि सरकार को ये अच्छी तरह पता है कि नोटबंदी ने ठीक-ठाक चल रही अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है.

ये बजट पॉपुलिस्ट नहीं है और न ही सुधार के बड़े और कड़े कदम इसमें उठाए गए हैं. हमारे कई अंदाज गलत निकले. यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम नहीं आई. लॉन्ग टर्म गेन्स टैक्स में भी कोई बदलाव नहीं किया गया और न ही कालाधन खत्म करने के लिए कोई नई और बड़ी तलवार निकाली गई.

नोटबंदी का नुकसान चूंकि गरीबों को हुआ है. इसलिए ढेर सारे ऐलान गरीबों, गांवों, बेरोजगारों और किसानों को समर्पित हैं, ताकि हर तरह का गुस्सा कम किया जा सके. खास बात है कि इस गुस्से को कम करने के लिए सरकार ने कोई बड़ा खजाना भी नहीं लुटाया है.

विधानसभा चुनाव को देखते हुए ये स्वाभाविक था कि सबसे पहले गरीब वोटर और उसके बाद छोटे कारोबारियों को मरहम लगाया जाए, इसलिए पचास करोड़ से नीचे आमदनी वाले कारोबार पर कॉरपोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया.

मध्यम वर्ग की नाराजगी दूर करने के लिए इनकम टैक्स के निचले स्तरों पर टैक्स की थोड़ी राहत और ज्यादा आमदनी वालों यानी सालाना 50 लाख रुपये से ज्यादा कमाने वालों पर 10 परसेंट सरचार्ज लगाया गया है. यह अमीर बनाम गरीब के स्लोगन में भी पूरी तरह से फिट बैठता है.

सरकार को लगता है कि प्राइवेट सेक्टर अब भी निवेश के लिए आगे नहीं आएगा और सरकारी बैंकों के फंसे हुए कर्ज की वसूली के भी आसार नहीं दिखते. इसलिए सरकार ने मान लिया है कंजम्पशन और ग्रोथ को वो सरकारी खर्चों से ही बढ़ा सकती है. यह ग्रोथ बढ़ाने का कारगर तरीका नहीं है. दुनिया की आर्थिक हालत देखते हुए विदेशी निवेश की उम्मीद भी शायद पूरी न हो.

कहीं पब्लिक का मूड खराब न हो जाए, इसलिए एक्साइज व कस्टम ड्‌यूटी और सर्विस टैक्स भी नहीं बढ़ाए गए. ऐसे में सरकार पैसे कहां से लाएगी? वित्तमंत्री की उम्मीद बेहतर टैक्स वसूली और डिसइनवेस्टमेंट पर टिकी है. लेकिन डिसइनवेस्टमेंट के साल दर साल के आंकड़ों को देखकर तो यही लगता है कि इस मामले में भी 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का टारगेट महत्वाकांक्षी ही है. सरकारी बीमा कंपनियों और रेलवे की कुछ सब्सिडियरीज की लिस्टिंग होगी और सरकार की हिस्सेदारी कम होगी, ये भी एक अच्छा ऐलान है.

सरकार को ये लालच रहा होगा कि वो गरीबों पर कुछ और पैसा लुटा दे, लेकिन सरकार ने अपनी इस इच्छा को दबाया है. फिस्कल डेफिसिट इस साल 3.2 प्रतिशत और अगले साल 3 प्रतिशत रखने का वादा किया गया है. निवेशक और रेटिंग एजेंसियां इस आंकड़े का स्वागत करेंगे. शेयर बाजार ने बजट के बाद बड़ी रैली से इसका संकेत भी दे दिया.

इस सरकार को बढ़-चढ़कर ऐलान करने की आदत है. लेकिन अगले साल ग्रोथ की रफ्तार कम हो सकती है. इस बात की चिंता बजट की भाव-भंगिमा में साफ दिख रही है.

नोटबंदी के एडवेंचर के बाद और विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सरकार ने आक्रामक तेवर नहीं दिखाए. ये कुछ हद तक अविश्वसनीय लगता है. आशा की जानी चाहिए कि सरकार को सच्चाई का एहसास हो गया है और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अब वो विनम्रता के साथ नीतियां लागू करने पर ध्यान देगी.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हां, बेहतर मैसेजिंग के लिए दो कदमों पर गौर करना भी जरूरी है. पार्टियों को दिए जाने वाले कैश डोनेशन की सीमा 20,000 से घटाकर 2,000 रुपये कर दी गई. वित्तमंत्री जी... क्या इतने भर से पारदर्शिता आ जाएगी? इसके अलावा 3 लाख रुपये से ज्यादा के कैश ट्रांजेक्शन पर रोक लगी है. अच्छी बात है. लेकिन फॉर्मल इकोनॉमी में अभी भी ऐसा कम ही होता होगा. असली मुद्दा तो कैश के लेन-देन को इनफॉर्मल इकोनॉमी में रोकना है.

सिर्फ राजनीतिक सरोकारों से संचालित होकर किसी इकोनॉमी को नहीं चलाया जा सकता. सरस्वती पूजा के दिन सरकार को ये ज्ञान प्राप्त हुआ है और वो इसके लिए बधाई की पात्र है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 01 Feb 2017,07:58 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT