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हॉल ऑफ शेम: बिल्डर्स, अब तो वक्‍त पर बनाकर दो हमारे सपने का घर

बिल्डरों के अड़ियल रवैये पर कोर्ट चला कोर्ट का डंडा, चुकाने पड़े करोड़ों रुपये

सुदीप्त शर्मा
बिजनेस
Updated:


(फोटो: Wikimedia Commons)
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(फोटो: Wikimedia Commons)
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बिल्डरों के मनमाने रवैये से ग्राहकों का अक्‍सर परेशान होना जगजाहिर है. प्रोजेक्ट में देरी के चलते लोगों का अपने घर में रहने का सपना सालों तक पूरा नहीं हो पाता. अच्‍छी बात यह है कि बिल्डर की लेटलतीफी से अब लोगों को निजात मिलने का दौर शुरू हो चुका है.

  नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिएड्रेशल कमीशन (एनसीडीआरसी) ने मनमानी कर रहे बिल्डरों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है. कई मामलों में बिल्डरों को मूल राशि पर ब्याज के साथ-साथ हर्जाना भी भरना पड़ा है.

हम आपको यहां ऐसे मामले बताएंगे, जिनमें एनसीडीआरसी के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने भी बिल्डरों पर कार्रवाई के निर्देश दिए.

1. जेपी बिल्डर पर कार्रवाई

NCDRC ने जेपी ग्रुप पर कालिपसो कोर्ट प्रोजेक्ट में देरी के चलते जुर्माना लगाया है.
उत्तर प्रदेश का बहुचर्चित यमुना एक्सप्रेसवे जेपी द्वारा ही निर्मित है (फोटो: Wikimedia Commons)

जेपी को साल के 12% के हिसाब से जुर्माना भरना होगा. 2 मई को जारी किए गए इस आदेश के मुताबिक जेपी को 21 जुलाई तक सभी फ्लैट्स को ग्राहकों को सौंपना था. ऐसा न होने की स्थिति में ग्रुप को 5000 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से प्रोजेक्ट खत्म होने तक पेनाल्टी भी देनी होगी.

कुल 16 इमारतों का यह प्रोजेक्ट 2007 में शुरू किया गया था, जिसे 2011 तक खत्म भी होना था. लेकिन 5 साल बाद भी ज्यादातर बिल्डिंगों का काम पूरा नहीं हुआ. अभी तक केवल 5 टावरों ही ग्राहकों को घर दिए गए हैं.

2. पार्श्वनाथ बिल्डर: 6 साल बाद भी ग्राहकों को नहीं मिले घर

लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में पार्श्वनाथ प्लानेट में देरी के चलते पार्श्वनाथ बिल्डर्स पर जुर्माना लगाया गया. शर्तों के मुताबिक, 2006 से चालू प्रोजेक्ट 2010 तक खत्म हो जाना था. लेकिन 6 साल बाद भी लोगों को घर नहीं दिए गए. NCDRC ने अपने आदेश में बिल्डर को 15,000 से 20,000 रुपये महीने के हिसाब से हर खरीददार को मुआवजा देने का आदेश दिया. मुआवजे की राशि प्रोजेक्ट के 54 वें महीने से भरी जानी है. 

3. DLF: कोर्ट से लगी कड़ी फटकार

द वैली प्रोजेक्ट की तस्वीर (फोटो: The Valley Website)

2010 में डीएलएफ ने पंचकुला में डीएलएफ वैली प्रोजेक्ट शुरू किया था. लोगों को दो साल के भीतर घर देने का वादा किया गया था. लेकिन प्रोजेक्ट में देरी होने के चलते लोग एनसीडीआरसी पहुंचे, जहां उनके पक्ष में फैसला आया.

कोर्ट ने डीएलएफ को तय समय-सीमा के बाद से हर ग्राहक को उसके निवेश पर 12% हर्जाना देने का आदेश दिया.

साथ ही नवंबर के बाद हर दिन के हिसाब से 5000 रुपये जुर्माने की चेतावनी भी दी. इसके अलावा हर फरियादी को डीएलएफ की तरफ से 30,000 रुपये केस में खर्च के तौर पर भी देने को कहा गया.

4. लोढ़ा बिल्डर्स: मनमाने तरीके से खत्म की डील

एनसीडीआरसी ने मुंबई के लोढ़ा ग्रुप को मनमाने तरीके से डील खत्म करने और ग्राहक के पैसै को सालों तक अवैध तरीके से रखने के आरोप में मूल धनराशि (1.02 करोड़) रुपये वापस करने का आदेश दिया. साथ ही इस पर 18% के हिसाब से ब्याज देने को भी कहा गया.

लोढ़ा ग्रुप के खिलाफ एक दंपत्ति ने केस दर्ज करवाया था. उनके मुताबिक, लोढ़ा ग्रुप से डील होने के बाद बिल्डर ने उनसे पार्किंग की जगह को लेकर 3 लाख रुपये से ज्यादा की अतिरिक्त मांग की. इस मांग को दंपत्ति ने मानने से इनकार दिया, जिसके बाद बिल्डर ने मनमाने तरीके से डील खत्म कर दी थी.

5. यूनीटेक बिल्डर्स: साढ़े तीन साल देरी से चल रहा था प्रोजेक्ट

नोएडा में यूनीटेक बिल्डर का प्रोजेक्ट (फोटो: यूनीटेक वेबसाइट)

नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिएड्रेशल कमीशन की वेबसाइट के मुताबिक, यूनीटेक के खिलाफ 929 शिकायतें हैं. वहीं कुछ रिपोर्टों के मुताबिक, हाईकोर्ट में यूनीटेक के खिलाफ 40 केस लंबित हैं.

  • यूनीटेक बिल्डर्स के बर्गंडी नाम के एक प्रोजेक्ट में देरी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने यूनीटेक पर जुर्माना लगाया. प्रोजेक्ट 42 महीने की देरी से चल रहा था.
  • एनडीआरसी के फैसले के मुताबिक, यूनीटेक को प्रोजेक्ट में देरी होने पर 12% सालाना की दर से जुर्माना ग्राहकों को देना था.
  • मामला बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. अगस्त में सुनाए गए फैसले में यूनीटेक को 15 करोड़ रुपये जमा करने का आदेश दिया गया.
  • फैसले में यूनीटेक को 2 हफ्ते के भीतर 5 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया गया. साथ ही बाकी बची राशि दिसंबर के अंत तक लौटाने को कहा गया.

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Published: 09 Sep 2016,12:19 PM IST

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