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हाल के हफ्तों में पूरी दुनिया के शेयर बाजार में अप्रत्याशित तबाही दिखी है. बरसों की कमाई कुछ दिनों में स्वाहा हो गई. बाजार में बिकवाली का ऐसा दबाव रहा है कि दुनिया के सेंट्रल बैंक के ऐतिहासिक कदम भी इस गिरावट को रोक नहीं पाए.
अब सबके मन में यही सवाल है कि क्या ऐसी तबाही के माहौल में बाजार में एंट्री करनी चाहिए? क्या बाजार ने निचले स्तर को छू लिया है और रिकवरी शुरू होने वाली है? क्या म्यूचुअल फंड में पैसा डालने का समय आ गया है? और जिनका पैसा लगा हुआ है वो सोच रहे हैं कि और भी गिरावट हो इससे पहले अपना पैसा बाजार से निकाल लिया जाए?
क्या यही समय है कहने का कि म्यूचुअल फंड सही है?
पिछले 40 सालों में शेयर बाजार ने जितना रिटर्न दिया है वो किसी भी एसेट क्लास से काफी ज्यादा रहा है. मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर आपने 10-10 हजार रुपए 1979 में बैंक के फिस्क्ड डिपॉजिट, सोना और सेंसेंक्स में लगाए होते तो 2019 तक वो बढ़कर क्रमश: 2.68 लाख रुपए, 4.08 लाख रुपए और 45.28 लाख रुपए हो जाते.
इस 40 साल के दौरान बाजार ने कई हिचकोले भी खाए हैं. नब्बे के दशक में हर्षद मेहता स्कैम के बाद बाजार में भारी गिरावट देखी गई.
इन आंकड़ों को देखकर यही लगता है कि हिचकोलों के बावजूद शेयर बाजार ने लंबे समय में निवेशकों को निराश नहीं किया है. और जिनके पास समय का अभाव हो, टेक्निकल-फंडामेंटल जानकारी की कमी हो और जो एक्सपर्ट को अपनी कमाई सौंप पर निश्चिंत हो जाना चाहते हों, उनके लिए शेयर बाजार में एंट्री का सही रास्ता म्यूचुअल फंड ही है. रिसर्च के मुताबिक कई फंड बेंचमार्क इंडाइसेज से ज्यादा रिटर्न देते हैं.
क्यों मान लें कि बाजार का कोहराम खत्म होने वाला है?
इसके लिए यह जानना जरूरी है कि बाजार में कोहराम की वजह कोरोना वायरस के बाद हेल्थ की चिंताओं को लेकर है. उसके बाद हुए लॉकडाउन की वजह से सारे आर्थिक काम ठप पड़े हुए हैं. लेकिन किसी भी आर्थिक एसेट की बर्बादी नहीं हुई है. ना ही किसी बड़ी कंपनी का दिवाला हुआ है जिससे सिस्टम में रिस्क बढ़े.
कितने की रिकवरी होगी इसके बारे में ठीक से कहा नहीं जा सकता है. लेकिन रिकवरी तय है और उसकी वजह से शेयर बाजार में फिर से रौनक लौटना भी तय है.
लेकिन रिकवरी अगर धीमी रफ्तार से होती है और शेयर बाजार महीनों तक एक ही स्तर पर रहता है तो यह काफी मुश्किल सवाल है. लेकिन इतिहास को देखें तो शेयर बाजार में रिकवरी अर्थव्यवस्था में रिकवरी से पहले होती है. साथ ही हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया के सेट्रल बैंक ने बाजार में अरबों डॉलर की नकदी डाली है. अकेले अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने बाजार में रिकॉर्ड 6 ट्रिलियन डॉलर डाला है. इसके अलावा ब्याज दर में रिकॉर्ड 1.5 परसेंट की कटौती की गई है. साथ ही यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने भी बाजार में 800 अरब डॉलर की नकदी डाली है.
जानकारों का यह भी मानना है कि जब कोरोना पर थोड़ा कंट्रोल होता दिखेगा, अरबों डॉलर का निवेश भारत के शेयर बाजार में लौटेगा.
लेकिन सही फंड का चुनाव कैसे करें?
इसके लिए आपको फंड और फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड देखना होगा. पिछला प्रदर्शन गारंटी नहीं है कि आगे भी रिटर्न शानदार ही रहेगा. लेकिन इससे भरोसा तो जरूर जगता है.
आप सेक्टर फंड चुनें या मिड कैप, लार्ज कैप या स्मॉल कैप, इसके लिए आपको अपने रिस्क का सही आकलन करना होगा. आपको सारे फैसले आपके रिस्क प्रोफाइल, निवेश की अवधि और अर्थव्यवस्था की चाल के आकलन के बाद ही लेने होंगेे. निवेश से पहले आप फाइनेंशियल प्लानर की सलाह जरूर लें.
म्यूचुअल फंड ही क्यों, सीधे शेयर में क्यों नहीं?
अगर आप जोखिम कम करना चाहते हैं तो एक्सपर्ट की क्षमता पर भरोसा रखना होगा. कौन सा रास्ता कम जोखिम वाला है- कुछ चुनिंदा शेयर में पैसा डालना या अच्छी कंपनियों के एक बास्केट में कब पैसा डालना है और कब निकालना है इसकी निगरानी एक्सपर्ट करेंगे?
मेरे खयाल से दूसरा रास्ता कम जोखिम वाला है. और वही रास्ता म्यूचुअल फंड वाला है. आप एक्सपर्ट को अपने निवेश का जिम्मा दे दीजिए और शेयर बाजार के रोज के उतार चढ़ाव के सिरदर्द से मुक्ति पा लीजिए.
अभी के माहौल में म्यूचुअल फंड से पैसा निकालना चाहिए?
एकदम ईमानदार जवाब है, बिल्कुल नहीं. अगर नकदी की सख्त जरूरत ना हो तो धाराशायी हुए बाजार से पैसा निकालना सही कदम नहीं है. इसके दो नुकसान हैं- पहला ये कि या तो आपको नुकसान के साथ बेचना होगा या उस वैल्यू पर जो 3 महीना पहले के वैल्यू से काफी कम है. दूसरा ये कि बाजार में रिकवरी से होने वाले फायदे से आप वंचित रह जाएंगे.
लेकिन यह ध्यान रहे कि ये पूरा विश्लेषण तब ही सही होगा अगर कोरोना पर जल्द ही कंट्रोल कर लिया जाता है.
(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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