advertisement
वित्त आयोग ने मिनिस्ट्री ऑफ पावर को प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए दी जाने वाली 83,500 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को अनुचित बताया है. मिनिस्ट्री ऑफ पावर इस रकम से कुछ उपकरण लगाना चाहती थी, जिससे प्रदूषण पर काबू पाया जा सके.
इस प्रस्ताव का मकसद था कि पावर प्लांट से सल्फर डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन को काम किया जा सके. साथ ही 2015 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित सल्फर डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन के नए मानकों का पालन किया जा सके.
बता दें कि 2015 के मानकों के मुताबिक, प्रदूषण कम करने वाले उपकरणों को लगाना अनिवार्य है. कुछ पावर प्लांट में इस साल के अंत तक उपकरण लगाना था, जबकि अन्य को 2022 के अंत तक ऐसा करना था.
वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए आधे से अधिक पावर प्लांट रेट्रोफिट उपकरण का ऑर्डर देने में चूक गए, जिसके बाद ये फैसला लिया गया.
नई दिल्ली और कुछ अन्य शहरों में पावर प्लांट से उत्सर्जन स्मॉग के सबसे बड़े कारणों में से एक है. पावर एसोसिएशन ऑफ पावर प्रोड्यूसर्स (एपीपी) का अनुमान है कि उत्सर्जन में कटौती के लिए अपने संयंत्रों को वापस करने के लिए निजी कंपनियों को लगभग 38 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा.
एपीपी में बताया कि सरकार के स्वामित्व वाली पावर कंपनी का अभी भी 11 बिलियन डॉलर का बकाया है. ऐसी स्थिति में वो इतनी बड़ी रकम का निवेश नहीं कर सकते हैं.
भारत में 40 गीगावाट (जीडब्ल्यू) की संयुक्त क्षमता वाले 34 प्लांट की पहचान की गयी है, जो आर्थिक रूप से तंगहाल हैं. इनका स्वामित्व अडानी पावर, एस्सार पावर, जीएमआर ग्रुप, लैंको ग्रुप और जयप्रकाश पावर वेंटीलेट लिमिटेड सहित अन्य कंपनियों के पास है.
बिजली मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि विद्युत मंत्रालय कुछ आर्थिक रूप से तंगहाल पावर प्लांट के लिए समय सीमा बढ़ाना चाहता है, जिन्होंने वायु प्रदूषण को रोकने के लिए रेट्रोफिट उपकरण का ऑर्डर दे दिया है.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)