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पेट्रोल-डीजल के दाम में फंस गई सरकार, अभी और बढ़ेंगे दाम 

पेट्रोल-डीजल की  कीमतें चार साल के शिखर पर पहुंच चुकी हैं

दीपक के मंडल
बिजनेस न्यूज
Updated:
महंगे पेट्रोल के लिए जो बीजेपी मनमोहन सिंह पर हमले करती थी वह अब मोदी सरकार में इस मामले में चुप्पी साधे है. 
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महंगे पेट्रोल के लिए जो बीजेपी मनमोहन सिंह पर हमले करती थी वह अब मोदी सरकार में इस मामले में चुप्पी साधे है. 
(फोटो: Reuters)

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पिछले चार साल के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के बाद कीमतें अब फिर उफान की ओर हैं. लेकिन इन चार साल के दौरान यानी मोदी सरकार में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ते तेल के बावजूद देश में लोगों ने महंगा पेट्रोल और डीजल खरीदा. घरेलू मार्केट में पेट्रोल डीजल की कीमतें अब चार साल के शिखर पर पहुंच चुकी हैं.

पिछले चार साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 28 डॉलर प्रति बैरल तक भी गिर चुकी हैं. लेकिन अब बढ़ते हुए 80 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुकी है. कहने का मतलब ये कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता हो महंगा, देश के लोगों को महंगा पेट्रोल-डीजल ही क्यों खरीदना पड़ता है. महंगे पेट्रोल की वजहों के बारे में जानना जरूरी है.

केंद्र, राज्य का टैक्स और डीलर कमीशन

पेट्रोल-डीजल पर केंद्र और राज्य दोनों टैक्स वसूलते हैं. डीलर कमीशन भी वसूला जाता है. उदाहरण के लिए 19 मार्च 2018 को दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 72.19 रुपये थी. डीलर कमीशन और टैक्स लगाए जाने से पहले इसकी कीमत 33.78 रुपये प्रति लीटर बैठती थी. इसका मतलब यह है हर लीटर पर 38.41 रुपये टैक्स और डीलर कमीशन के तौर पर वसूले गए. 38.41 रुपये में से 3.58 रुपये डीलर कमीशन था. इस टैक्स में 19.48 रुपये केंद्र का था और 15.35 रुपये राज्य का टैक्स. कुल मिला कर प्रति लीटर पेट्रोल की रिटेल कीमत में टैक्स और कमीशन की हिस्सेदारी 53 फीसदी थी.

साफ है कि अगर किसी प्रोडक्ट पर 53 फीसदी का टैक्स और कमीशन हो तो वह महंगा होगा ही. दरअसल इस भारी कमाई की वजह से ही केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजल पर हैवी टैक्स का मोह नहीं छोड़ पा रही हैं.
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कमजोर रुपये से हालात और खराब

रुपये में लगातार आ रही कमजोरी पेट्रोल-डीजल को और महंगा कर रही है. देश में हम अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करते हैं. मई 2014 में डॉलर के मुकाबले रुपया 58-59 के स्तर पर था. रुपया अब 68 पार कर चुका है.पिछले चार साल में रुपया 17 फीसदी कमजोर हो चुका है. यानी हर साल चार फीसदी की दर से रुपया कमजोर हो रहा है. जाहिर है अब हमें तेल आयात करने के लिए महंगा डॉलर खरीदना पड़ रहा है. सरकार इस दबाव की वजह से पेट्रोल-डीजल के दाम घटाना भी चाहे तो नहीं घटा सकती.

कम जीएसटी कलेक्शन का दबाव

सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में सेंट्रल जीएसटी के तौर पर 6,03,900 करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा था. यानी हर महीने 50,325 करोड़ रुपये. लेकिन जब मार्च में फरवरी के जीएसटी के कलेक्शन का आंकड़ा आया तो यह सिर्फ 27,085 करोड़ रुपये था. इसलिए सरकार पर टैक्स कलेक्शन के मोर्चे पर दबाव है. जाहिर है सरकार को अपने खजाने की चिंता होगी. कम जीएसटी कलेक्शन को देखते हुए वह पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाना अफोर्ड नहीं कर सकती है.साफ है कि पेट्रोल-डीजल की कीमत पर ये तीनों हालात विलेन बने हुए हैं

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Published: 21 May 2018,07:17 PM IST

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