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हीरो का नाम किसने नहीं सुना होगा. टेलीविजन पर चलने वाले उस विज्ञापन की एक टैगलाइन (देश की धड़कन) आज भी लोगों के जहन में है. इस हीरो कंपनी की कामयाबी की इबारत लिखने में अहम भूमिका निभाने वाले सुनील कांत मुंजाल ने चार भाइयों के कामयाबी के इस सफर को किताब की शक्ल दी है.
The Making of Hero पहले सिर्फ अंग्रेजी में थी. लेकिन, देश की हर धड़कन तक पहुंचाने के लिए अब इस किताब का हिंदी अनुवाद (हीरो की कहानी, चार भाइयों का औद्योगिक चमत्कार) भी आ गया है. क्विंट से बातचीत में उद्योगपति सुनील कान्त ने इस किताब के साथ-साथ अपने उस विजन के बारे में भी बताया, जो महामारी के बाद बदली हुई परिस्थितियों में भी बिल्कुल फिट बैठता है. उन्होंने बताया कि टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने से नौकरियां जाने का डर पूरी तरह बेबुनियाद नहीं है, लेकिन इस खतरे से उबरने के भी तरीके हैं.
सुनील कहते हैं कि ‘हीरो की कहानी’ सिर्फ एक कंपनी, एक परिवार के साथ भारत की अर्थव्यवस्था के विकास की भी कहानी है. 1920 के दशक में ये कहानी शुरू हई, जब उनके पिता बृजमोहन लाल मुंंजाल को बंटवारे में अपना घर-बार छोड़कर आना पड़ा था.
सुनील कांत के मुताबिक, कोरोना के बाद जो परिस्थितियां आईं, वो मानव इतिहास में नहीं देखी गईं. हमें ये सीखना चाहिए कि हम जो प्लानिंग कर रहे हैं, उसका दूसरा विकल्प भी हमारे पास होना चाहिए. अगर परिस्थितियां जैसी चल रही हैं, वैसी ही नहीं चलीं, तो हम क्या करेंगे? ये सोचकर आगे बढ़ना चाहिए.
हमें बिजनेस को भी एक नए नजरिए से देखना शुरू करना चाहिए. टेक्नोलॉजी हमारी जिंदगी और काम के हर पहलू में मददगार हो सकती है. ये जरूरी है कि हम इफिशिएंसी और नए कॉस्ट मॉडल पर भी काम करें. तकनीक और मटेरियलस्टिक पहलुओं के अलावा भावनात्मक पहलू को लेकर भी कोरोना ने काफी कुछ सिखाया है. महामारी के बाद लोगों ने रिश्तों की कद्र करना शुरू कर दी है.
सुनील कहते हैं कि हम लगातार ऐसे उद्यमियों की तलाश में रहते हैं जिनके पास एक अच्छा आइडिया है. हम उन्हें हर तरह से सपोर्ट करते हैं. इसीका एक उदाहरण 'नायका' है. इस कंपनी ने काफी तरक्की की. हमारी सबको सलाह होती है कि अगर आप टेक्नोलॉजी को जल्द से जल्द अपनाएं तो काफी आगे बढ़ सकते हैं.
सुनील कांत का मानना है कि स्टार्टअप्स से ही नई नौकरियां बढ़ेंगी. पुरानी कंपनियों में नई जॉब्स का क्रिएशन काफी कम होता है. नई नौकरियों की राह स्टार्टअप्स से ही खुलेगी. लेकिन, स्टार्टअप कल्चर को बढ़ावा देने के लिए हमारे लिए सबसे ज्यादा जरूरी है फैलियर को स्वीकार करने का कल्चर शुरू करना. अभी हमारे देश में फेलियार को स्वीकार नहीं किया जाता.
आमतौर पर ये माना जाता है कि टेक्नोलॉजी की तरफ जाने से नौकरियां कम हो जाएंगी. लेकिन, अगर हम टेक्नोलॉजी को स्वीकार नहीं करते हैं तो वैश्विक प्रतिस्पर्धा में हम पीछे रह जाएंगे. दुनिया भर के अंदर हमारे लोग बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों को लीड कर रहे हैं.
इसका कोई कारण नहीं बनता कि हम यहां टेक्नोलॉजी को स्वीकार नहीं कर सकते. हां, ये बात सच है कि कुछ सेक्टर्स में नौकरियां कम होंगी, लेकिन हमें वर्कर्स को रीट्रेन कर नए काम सिखाने होंगे. क्योंकि अगले 10-15 सालों के अंदर 50-65% काम ऐसे होंगे, जो आज नहीं हैं.
बस हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम ऐसे उद्योगों को बढ़ावा दें, जिनकी वजह से और कई सारे नए उद्योग शुरू हों और ज्यादा लोगों को रोजगार मिले. उदाहरण के लिए मैन्युफेक्चरिंग का उद्योग शुरू करने से सर्विस प्रोवाइडर, लॉजिस्टिक प्रोवाइडर जैसे क्षेत्रों में नई नौकरियां शुरू हो जाती हैं. पुरानी इंडस्ट्री को मॉडर्न करने के साथ ही हमारे पास आईटी हार्डवेयर, क्लीन एनर्जी, लॉजिस्टिकक्स जैसे नए विकल्प भी हैं.
युवाओं को अपना दिमाग खुला रखना है. कोरोना महामारी ने उनके लिए कई अवसर पैदा किए हैं. पूरी दुनिया अब खुली हुई है. अब उन देशों से प्रेरणा लेकर अपने देश में काम शुरू कर सकते हैं, जो टेक्नोलॉजी के मामले में हमसे 10-15 साल आगे हैं.
सुनील कहते हैं कि दुनिया भर में इंडस्ट्री की सोच अब बदल रही है. अब कॉर्पोरेट सिर्फ फायदे के बारे में नहीं सोच रहा. एक बेहतर कंपनी वह मानी जाती है जो प्रॉफित तो बनाए, लेकिन साथ में समाज के फायदे और इस प्लैनिट के फायदे के बारे में भी सोचे. जिस दिन सभी बड़ी कंपनियां ऐसा सोचने लगेंगी, हम काफी बेहतर कर पाएंगे. लेकिन, इस काम के लिए जबरदस्ती करना थोड़ा मुश्किल होता है. हमारी कोशिश इस दिशा में होनी चाहिए कि कंपनियां अपनी मर्जी से ही समाज के लिए काम करें.
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