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भारत 2100 तक सालाना अपनी जीडीपी का लगभग 3 से 10 फीसदी हिस्सा गंवा सकता है. अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, लंदन स्थित ग्लोबल थिंक टैंक ओवरसीज डिपार्टमेंट इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई है.
'भारत में जलवायु परिवर्तन की कीमत' शीर्षक वाली रिपोर्ट देश में जलवायु संबंधी जोखिमों की आर्थिक कीमतों का जिक्र करती है, बढ़ती असमानता और गरीबी की आशंका की ओर इशारा करती है.
यह मानते हुए कि भारत ने पिछले तीन दशकों में आय और जीवन स्तर को बढ़ाने में तेजी से प्रगति की है, इसमें कहा गया है कि तेजी से वैश्विक कार्रवाई के बिना, जलवायु परिवर्तन हाल के दशकों के विकास के फायदे को उलट सकता है.
इसमें कहा गया है कि ये नतीजे तापमान और बारिश से जुड़े बदलाव के अनुमानों और विभिन्न क्षेत्रों में श्रम उत्पादकता पर असर पर आधारित हैं. जलवायु परिवर्तन अतिरिक्त चैनलों के जरिए श्रम उत्पादकता को भी प्रभावित कर सकता है, उदाहरण के लिए मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, फाइलेरिया, जापानी एन्सेफलाइटिस और आंत के लीशमैनियासिस जैसे स्थानिक वेक्टर जनित रोगों की बढ़ती घटनाओं से.
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