advertisement
भारत का बैंकिंग सेक्टर कहीं दीवालियापन की ओर तो नहीं बढ़ रहा है, क्योंकि पिछले साढ़े पांच सालों में बैंकों की 367765 करोड़ की रकम आपसी समझौते के तहत डूब (राइट ऑफ) गई है. वहीं इससे कहीं ज्यादा रकम अब भी डूबते खाते में डालने की मजबूरी दिख रही है.
सूचना के अधिकार के तहत, रिजर्व बैंक की ओर से जो जानकारी उपलब्ध कराई गई है, वे चौंकाने वाली है. आरबीआई के मुताबिक, साल 2012-13 से सितंबर 2017 तक सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बैंकों ने आपसी समझौते सहित (इन्क्लूडिंग कंप्रोमाइज) के जरिए कुल 3,67765 करोड़ की रकम राइट ऑफ की है. इसमें से 27 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक है, वहीं 22 निजी क्षेत्रों के बैंक है, जिन्होंने यह रकम राइट ऑफ की है.
आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि साल 2013-14 में 40,870 करोड़,साल 2014-15 में 56,144 करोड़, साल 2015-16 में 69,210 करोड़ की राशि राइट ऑफ की गई. वहीं साल 2017-18 के सिर्फ शुरुआती छह माह अप्रैल से सितंबर के बीच 66,162 करोड़ की राशि आपसी समझौते के आधार पर राइट ऑफ की गई.
आरबीआई द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक सेक्टर) के बैंकों ने निजी क्षेत्र (प्राइवेट सेक्टर) के बैंकों के मुकाबले लगभग पांच गुना रकम राइट ऑफ की है.
बैंकिंग क्षेत्रों के जानकारों की मानें तो राइट ऑफ कराने का खेल अपने तरह का है. बैंक जब कर्ज देते हैं तो खातों को चार श्रेणी में बांटते हैं. यह खाते कर्ज की किस्त जमा करने के आधार पर तय होते है.
स्टैंडर्ड (तय समय पर किस्त देने वाला), सब स्टैंडर्ड (कुछ विलंब से किस्त अदा करने वाले), डाउट फुल (कई माह तक किस्त जमा न करने वाले) और लॉस (जिससे रकम की वापसी असंभव). कर्ज लेने वाला अपनी जो संपत्ति दिखाता है, उसके आकलन के आधार पर कर्ज मुहैया कराया जाता है. कई उद्योगों में सरकार की ओर से सब्सिडी भी दी जाती है.
जब संपत्ति का आकलन कराते हैं तो वह पहले की तुलना में काफी कम निकलती है, इस स्थिति में बैंक के पास सिर्फ एक ही चारा बचता है कि वह संबंधित संपत्ति की नीलामी से मिलने वाली रकम को लेकर समझौता करे और शेष बची रकम को राइट ऑफ कर दे.
बैंक अधिकारी बताते हैं कि कोई भी बैंक नहीं चाहता कि उसकी बैलेंस शीट में बकाया नजर आए. इसी के चलते राइट ऑफ की रकम बढ़ती जा रही है. ये स्थितियां बैंकिंग के लिए अच्छी नहीं हैं. जो रकम राइट ऑफ की गई है, वह आम उपभोक्ता के हिस्से की है. इससे उपभोक्ताओं का बैंकों से भरोसा कम होगा. इतना ही नहीं, बैंकों के दिवालियेपन की ओर बढ़ने का यह एक बड़ा संकेत माना जा सकता है.
ये भी पढ़ें- PNB को हुआ जबरदस्त घाटा, डूबते खाते में गए 28,500 करोड़ रुपये
(इनपुटः IANS)
(क्विंट और बिटगिविंग ने मिलकर 8 महीने की रेप पीड़ित बच्ची के लिए एक क्राउडफंडिंग कैंपेन लॉन्च किया है. 28 जनवरी 2018 को बच्ची का रेप किया गया था. उसे हमने छुटकी नाम दिया है. जब घर में कोई नहीं था,तब 28 साल के चचेरे भाई ने ही छुटकी के साथ रेप किया. तीन सर्जरी के बाद छुटकी को एम्स से छुट्टी मिल गई है लेकिन उसे अभी और इलाज की जरूरत है ताकि वो पूरी तरह ठीक हो सके. छुटकी के माता-पिता की आमदनी काफी कम है, साथ ही उन्होंने काम पर जाना भी फिलहाल छोड़ रखा है ताकि उसकी देखभाल कर सकें. आप छुटकी के इलाज के खर्च और उसका आने वाला कल संवारने में मदद कर सकते हैं. आपकी छोटी मदद भी बड़ी समझिए. डोनेशन के लिए यहां क्लिक करें.)
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)