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मलविंदर सिंह और शिविंदर सिंह भाइयों ने दौलत खूब कमाई पर उसे गंवाने में भी उतनी ही तेजी दिखाई. उन्होंने शौक ही शौक में चार्टर्ड एयरलाइंस बिजनेस खोला और 1200 करोड़ रुपए उड़ाकर जमीन पर ला दिया.
दोनों भाइयों के पास बड़ा कारोबार था लेकिन पहले दवा कंपनी रैनबैक्सी बेची, फिर हॉस्पिटल और वित्तीय कारोबार का धंधा बेचने की नौबत भी आ गई.
दोनों भाइयों ने लिगारे एविएशन कंपनी बनाई जो विमान और हेलीकॉप्टर किराए पर देती थी. लेकिन इस धंधे में उन्होंने राधा स्वामी सत्संग के गुरु गुरिंदर सिंह ढिल्लों के दोनों बेटों को गुरप्रीत और गुरकीरत को पार्टनर बना लिया.
भाइयों का अरबों डॉलर का ग्रुप पहले कर्ज के जाल में फंसा और फिर दोनों भाइयों के हाथ से ही निकल गया.
ब्लूमबर्ग ने परिवार के सदस्यों और सरकारी रिकॉर्ड के हवाले से बताया है कि कर्ज देने वालों ने भाइयों से फोर्टिस हेल्थकेयर और रेलिगेयर एंटरप्राइज छीनकर अपने कब्जे में ले ली. दोनों भाइयों पर रकम खुर्द-बुर्द करने का आरोप है. साथ ही उनपर दाइची सैंक्यो के 3500 करोड़ रुपए की उधारी भी है.
दोनों भाइयों ने जब 2006 में चार्टर्ड एयरलाइंस को खऱीदा तब वो अरबपति थे. उन्होंने दो साल बाद रैनबैक्सी 4.6 अरब डॉलर में जापान की डाइची सैंक्यो को बेच दी. रेन एयर सर्विस को रैनबैक्सी की सब्सिडियरी विद्युत इन्वेस्टमेंट ने खरीदा.
लेकिन इस बात से दोनों भाइयों की आर्थिक हालत बिगड़नी शुरू हो गई और कुछ सालों में वो कर्ज के बोझ में दब गए.
रेलिगेयर वोयाज बनी और 13 दिन के अंदर इसने रेन एयर को 2.6 करोड़ रुपए में खरीद लिया. इसके बाद कंपनी का नाम बदलकर लिगारे एविएशन रख दिया गया.
अगले 5 साल में 2.6 करोड़ रुपए की कंपनी 668 करोड़ रुपए की हो गई. लेकिन इस पर 641 करोड़ का कर्ज भी हो गया.
गुरुजी की फेमिली को नुकसान ना हो इसके लिए सिंह भाइयों ने लिगारे एविएशन में उनका हिस्सा खरीद लिया.
ब्लूमबर्ग क्विंट ने मुताबिक उसने ढिल्लों और गोधवानी परिवार से जानकारी मांगी है जिसका जवाब अभी तक नहीं मिला है.
(इनपुट ब्लूमबर्ग क्विंट)
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