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भारत में ‘डिजिटल रुपया’ 2-3 वर्षों में चलन में आ सकता है. ये अनुमान इनफोसिस चेयरमैन नंदन नीलेकणी का है. क्रिप्टोकरेंसी के बढ़ते क्रेज के बारे में उनका कहना है कि भारत में अभी इस पर सहमति बनने में वक्त लगेगा. ये संभव है कि इसे निवेश के लिए एक एसेट क्लास के रूप में भविष्य में इजाजत मिल जाए, लेकिन खरीद फरोख्त और लेनदेन (Transaction) के लिए इजाजत मुश्किल है. इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि भारत की स्थिति दुनिया के और देशों से अलग है.
नीलेकणी ने ये बातें क्लबहाउस पर वेंचर कैपिटल फर्म ब्लूम वेंचर्स के एक कार्यक्रम में कही. इस कार्यक्रम में एंजल इन्वेस्टर बालाजी श्रीनिवासन भी थे, जिनकी राय थी कि भारत को क्रिप्टोकरेंसी कारोबार पर रोक नहीं लगानी चाहिए. सरकार रोक पर विचार कर रही है.
नंदन का कहना था कि क्रिप्टो जिस प्लेटफॉर्म - ब्लाकचेन- पर चलता है, उसका इस्तेमाल भारत में कई क्षेत्रों में हो रहा है, लेकिन भारत में क्रिप्टो का इस्तेमाल करेंसी के रूप में तब तक मुश्किल है, जब तक कि देश की पूरी आबादी के हित में उसके इस्तेमाल का कोई तर्क सामने ना आ जाए और उस पर आम सहमति न बन जाए.
उन्होंने याद दिलाया कि भारत ने सोने में निवेश पर 1968 तक कैसी कैसी पाबंदियां लगायी थीं. ब्लाकचेन पर आधारित क्रिप्टो कारोबार चूंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होता है, इसलिए भारत की नीति इस पर कुछ वैसी ही रहेगी जैसी कैपिटल की आवाजाही पर कंट्रोल खत्म करने की पुरानी माग पर रही है. वजह ये है कि सरकार फाइनेंसियल सिस्टम की स्थिरता को लेकर बेहद सावधान रहती है.
चीन डिजिटल यूआन लाने की तैयारी कर रहा है. अमेरिका और जापान समेत कई और देश भी डिजिटल करेंसी लाने की सोच रहे हैं. इस संदर्भ में नंदन का कहना था कि हमारा रिजर्व बैंक सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) जरूर ला सकता है, बस वक्त की बात है.
क्रिप्टो करेंसी में सब से ज्यादा चर्चित बिटकॉइन है, जो इस वक्त 55,000 डॉलर पर ट्रेड कर रहा है. निलेकणी कहते हैं कि दुनिया भर में इस वक्त ये बाजार एक ट्रिलीयन डॉलर का हो चुका है. भारत में करीब एक करोड़ लोगों ने बिटकॉइन समेत कई क्रिप्टो करेंसी में 10-15 हजार करोड़ रुपए निवेश किए हैं. एक तबका क्रिप्टो के चलन को स्वाभाविक डिजिटल क्रांति मानता है, तो दूसरा तबका इसे फैशन और स्कैम बताता है.
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