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आरबीआई बोर्ड की बैठक आज बहुत ही अहम बैठक हो रही है जिसमें तय होगा गवर्नर उर्जित पटेल का दबदबा कायम रहेगा या फिर उनके कई अधिकारों में कमी हो सकती है. सरकार और आरबीआई को बीच इन दिनों जो झगड़ा चल रहा है, बैठक उसका फाइनल माना जा रहा है.
बैठक में बैंकिंग रेगुलेशन से लेकर आरबीआई की बैलेंसशीट और मुनाफे में सरकार की हिस्सेदारी जैसे तमाम विवादों पर चर्चा होगी. आइए जानते हैं की विवाद की वजह क्या है?
आरबीआई की बैलेंसशीट में कितनाे रुपये होने चाहिए यह पुरानी बहस है. पूर्व चीफ इकनॉमिनक एडवाइजर अरविंद सुब्रमण्यम ने इस पुरानी बहस को हवा दी थी. उनका कहना था कि आरबीआई ओवर कैपिटलाइज्ड है.
सरकार का मानना है कि रिजर्व बैंक पास 3.6 लाख करोड़ रुपये का रिजर्व है, जो बहुत ज्यादा है. इसे सरकार को सरप्लस ट्रांसफर कर देना चाहिए. जबकि आरबीआई का कहना है कि अर्थव्यवस्था में किसी भी इमरजेंसी से निपटने के लिए आरबीआई का रिजर्व मजबूत होना चाहिए.
पीसीए यानी Prompt corrective action कमजोर बैंकों की स्थिति और खराब होने से बचाने का एक टूल है. हालांकि इसका प्रावधान पहले से है लेकिन आरबीआई ने 2017 में नए मानक जारी किए थे ताकि फ्रेमवर्क को ज्यादा तार्किक बनाया जा सके.
जिस वक्त यह फ्रेमवर्क बना था, सरकार ने आपत्ति नहीं की थी. लेकिन अब उसे लग रहे है कि नए पीसीए मानक अर्थव्यवस्था में कर्ज प्रवाह को रोक रहे हैं. लिहाजा इसके मानकों को आसान बनाना चाहिए. आरबीआई का कहना है कि कमजोर बैंकों और एनपीए की बढ़ती समस्याओं को देखते हुए कड़े पीसीए फ्रेमवर्क जरूरी हैं.
सरकार चाहती है कि बेसल-3 मानकों को हल्का किया जाए. दरअसल यह बैंकों का अंतरराष्ट्रीय पूंजी मानक है. सरकार का मानना है कि यह बैंकों का कैपिटल और एसेट रेश्यो बेसल मानकों के मुताबिक 8 होना चाहिए न कि 9. इससे बैंक 55 हजार करोड़ की कैपिटल सेविंग कर सकते हैं. लेकिन आरबीआई का कहना है कि बैंकों के बैलेंसशीट को वास्तविक तौर पर मजबूती देने के लिए उनके पास ज्यादा पूंजी होना चाहिए. इसके साथ ही सरकार चाहती है कि फंसे हुए कर्ज से जुड़े नियमों में भी छूट दी जाए. आरबीआई इसके लिए राजी नहीं है.
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों यानी NBFC के लिए लिक्विडिटी की समस्या एक बड़ा मुद्दा है. आरबीआई का कहना है कि सिस्टम में पर्याप्त लिक्विडिटी है. लेकिन सरकार का कहना है कि आरबीआई एक कदम आगे बढ़ कर एनबीएफसी की मदद करे. सरकार का कहना है कि बाजार में कर्ज मुहैया कराने में एनबीएफसी की भूमिका बढ़ती जा रही है. अगर एनबीएफसी के पास लिक्विडिटी की कमी होगी तो बाजार में क्रेडिट फ्लो खत्म हो जाएगा.
नोटबंदी और जीएसटी से छोटे और मझोले उद्योग काफी मुश्किल का सामना कर रहे हैं. ऐसे में एनबीएफसी के लिए लिक्विडिटी की कमी ज्यादा मुश्किल पैदा करेगी. विश्लेषकों का कहना है कि आरबीआई एनबीएफसी के लिए लिक्विडिटी आसान बना सकता है लेकिन उसे किसी बेलआउट से बचना चाहिए.
विश्लेषकों का कहना है कि आरबीआई और सरकार के बीच मतभेद नई बात नहीं है. लेकिन दोनों के बीच इन दिनों जो संवादहीनता की स्थिति है वह चिंता पैदा करती है. अगर बैक चैनल की बातचीत में तनाव खत्म नहीं होते तो मामले सेंट्रल बोर्ड में निपटाए जाने चाहिए.
बहरहाल, मौजूदा झगड़ा सरकार की ओर केंद्रीय बैंक की निगरानी के लिए ज्यादा ताकत हासिल करने की कोशिशों की वजह से पैदा हुआ है. वह रिजर्व बैंक के बोर्ड को ज्यादा ताकतवर बनाना चाहती है. जबकि अब तक यह सलाहकार की भूमिका में हुआ करता था. देखना है कि आज की बैठक में सरकार और आरबीआई के बीच कितनी सहमति बन पाती है.
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