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गोल्डमैन सैक्स की डाउनग्रेडिंग और ट्रंप की चेतावनी से बाजार ढहा

सेंसेक्स  500 प्वाइंट और निफ्टी 137 प्वाइंट गिरा 

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बिजनेस न्यूज
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बाजार को सरकार के कदमों पर भरोसा नहीं. 
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बाजार को सरकार के कदमों पर भरोसा नहीं. 
फोटो: रॉयटर्स 

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पिछले चार साल से ज्यादा वक्त में पहली बार गोल्डमैन सैक्स की ओर से भारतीय शेयरों की डाउनग्रेडिंग के बाद सेंसेक्स 500 प्वाइंट से ज्यादा गिर गया. जबकि निफ्टी में 137 प्वाइंट की गिरावट आई. सेंसेक्स और निफ्टी दोनों सोमवार को गिर कर खुले और उसके बाद चीनी सामानों पर अमेरिका की ओर से नए टैरिफ लगाने की धमकी का असर दिखने लगा. वित्तीय और दवा कंपनियों की शेयरों में गिरावट दर्ज की गई.

बाजार में गिरावट की बड़ी वजहें

  • गोल्डमैन सैक्स की ओर से भारतीय शेयरों की डाउनग्रेडिंग
  • चीन के सामानों पर ट्रंप की ओर से फिर टैरिफ लगाने की चेतावनी
  • रुपये को थामने की सरकार की कोशिश पर भरोसा नहीं
  • रुपये में कमजोरी खत्म होने के आसार नहीं, फिर गिरावट

फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनियों के शेयरों में बड़ी गिरावट

निफ्टी के 11 सेक्टर सूचकांकों में से वित्तीय सर्विस सूचकांक में सबसे ज्यादा 1.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. सबसे ज्यादा उछाल 1.1 फीसदी की निफ्टी रियल्टी इंडेक्स में दर्ज की गई. सोमवार सेंसेक्स 505 प्वाइंट गिर कर 38,000 के स्तर पर पहुंच गया. बाजार पर लगातार संकट में चल रहे रुपये का पूरा असर दिखा. सरकार की ओर से गिरावट को थामने की कोशिश के वादे के बावजूद बाजार का इस पर भरोसा नहीं दिखा.

दूसरी ओर निफ्टी में 137 प्वाइंट की गिरावट दर्ज की गई और यह 11,400 के नीचे जाकर बंद हुआ. अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर तेज होने की आशंका से एशिया और यूरोपीय बाजारों में गिरावट का असर भी भारतीय बाजारों में दिखा. सबसे ज्यादा गिरावट एचडीएफसी लिमिटेड और एचडीएफसी बैंक में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई. इसके अलावा दूसरी वित्तीय कंपनियों के शेयरों में भी गिरावट देखी गई.

फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर्स ने 1090.56 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों यानी डीआईआई ने सिर्फ 115.14 करोड़ रुपये के शेयरों की खरीदारी की.

रुपया भी गिरा


सोमवार को रुपये में फिर बड़ी गिरावट दर्ज की गई. रुपया डॉलर के मुकाबले 76 पैसे टूटकर 72.61 पर आ गया. इससे साफ हो गया कि मसाला बॉन्ड्स पर विदहोल्डिंग टैक्स हटाने, फॉरन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंस् (FPIs) को राहत देने, चालू खाता घाटे को नियंत्रण में रखने और रुपये में गिरावट थामने के लिए गैर-जरूरी सामानों के आयात में कटौती जैसे सरकारी प्रयासों पर भी बाजार का भरोसा नहीं दिखा. इससे रुपये को थामने की कोशिश असफल रही.

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