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देश में नौकरियों का बाजार सूना है. रोजगार के बाजार में मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के लिए भी जॉब नहीं हैं. इस वजह से बिजनेस स्कूलों की रौनक घट गई है और इंजीनियरिंग कॉलेज लगातार बंद हो रहे हैं. देश में हर साल एक करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा करने वाली सरकार भले ही बढ़ती बेरोजगारी की कड़वी सच्चाई को न कबूल करे लेकिन मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग स्कूलों की बदहाली बढ़ती बेरोजगारी की कहानी बयां कर रही हैं.
एसोचैम के हाल के सर्वे में कहा गया है कि नोटबंदी, अटके प्रोजेक्ट और लगातार खराब कारोबारी माहौल की वजह से बी कैटेगरी के बिजनेस स्कूल से निकल रहे स्टूडेंट्स के सामने नौकरियों का संकट पैदा हो गया है. इन स्कूलों से निकलने वाले सिर्फ 20 फीसदी स्टूडेंट्स के पास ही जॉब ऑफर्स हैं. 2015 से एनसीआर समेत देश के बड़े शहरों में 250 बिजनेस स्कूल बंद हो चुके हैं.
यही हाल देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों का है. देश के 300 इंजीनियिरिंग स्कूलों में एडमिशन 50 फीसदी भी पूरा नहीं हो रहा है. नौकरियों के बाजार में इंजीनियरों की मांग न होने की वजह से पैरेंट्स और स्टूडेंट्स को लग रहा है उनके चार-पांच साल और लाखों रुपये बर्बाद हो गए.
देश की अर्थव्यवस्था इन दोनों कदमों के नकारात्मक असर से अभी भी निकल नहीं पा रही है. इसका असर रोजगार पर पड़ रहा है. बिजनेस स्कूलों से निकले स्टूडेंटस के के लिए नौकरियों का टोटा और इंजीनियिरंग स्कूलों का बंद होना बाजार में रोजगार कम होने की कहानी ही कह रहे हैं.
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