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बजट 2022- मोदी सरकार को मुश्किल स्थिति में डाल रही है फूड सब्सिडी

2022-23 में खाद्य सब्सिडी पर 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होने की उम्मीद है.

सुभाष चंद्र गर्ग
बिजनेस न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>बजट 2022- मोदी सरकार को मुश्किल स्थिति में डाल रही है फूड सब्सिडी</p></div>
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बजट 2022- मोदी सरकार को मुश्किल स्थिति में डाल रही है फूड सब्सिडी

फोटो- IANS

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सरकार मुख्य रूप से कर राजस्व तथा लोगों और व्यवसायों की ऋण उधारियों के जरिए अपने राजकोषीय व्यय को वित्त पोषित करती है. अगर यह ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक सीमित होता है तो वित्तीय स्थिति स्थिर रहती है. 2021-22 के बजट (Budget 2021-22) में सरकार के वित्तीय संसाधनों का अनुमान 35 लाख करोड़ रुपए था. इसमें जीडीपी (GDP) के 6.8% पर 15 लाख करोड़ रुपए का कर्ज शामिल है. जीडीपी के 3% ऋण पर सरकार के वित्तीय संसाधन केवल 28 लाख करोड़ रुपए होंगे.

सरकार के वित्त में ब्याज, वेतन और पेंशन भुगतान जैसे अनिवार्य खर्चों का काफी बड़ा हिस्सा है. इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है (वित्तीय वर्ष 2021-22 में 14 लाख करोड़ रुपए). इसके बाद केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं, केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं और दूसरे केंद्रीय व्यय के लिए बहुत कम जगह बचती है.

81.34 करोड़ लोगों को उच्च सब्सिडी पर अनाज मिलता है

भारत सरकार दो प्रकार की पारिवारिक इकाइयों- अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) और प्रायॉरिटी हाउसहोल्ड्स (पीएचएच) के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत चावल (3 रुपए प्रति किलो), गेहूं (2 रुपए प्रति किलो) और मोटा अनाज (1 रुपए प्रति किलो) सब्सिडी पर देती है. इस समय 2.38 करोड़ एएवाई परिवार हैं जिनमें 9 करोड़ सदस्य हैं. इन परिवारो को 35 किलो अनाज हर महीने मिलते हैं. इसके अलावा 72.43 करोड़ पीएचएच परिवार हैं जिन्हें हर महीने पांच किलो प्रति व्यक्ति अनाज मिलता है. कुल मिलाकर एनएफएसए के तहत 81.34 करोड़ लोगों को उच्च सब्सिडी पर खाद्यान्न मिलते हैं.

ग्रामीण और शहरी लोगों के लिहाज से देखें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 64.49 करोड़ और शहरी इलाकों में 18.85 करोड़ लोग इस योजना के दायरे में आते हैं. सरकार हर साल एनएफएसए के तहत 54.93 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) खाद्यान्न आबंटित करती है.

कोविड-19 के राहत उपायों के तौर पर सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत पीएचएच परिवारों को प्रति सदस्य अतिरिक्त पांच किलो चावल/गेहूं और एएवाई परिवारों को 35 किलो खाद्यान्न देना शुरू किया और वह भी मुफ्त. इससे उनकी हकदारियां दोगुनी हो गईं.

कोविड से पहले 2019-20 में चावल और गेहूं की कुल खरीद 50.1 एमएमटी थी. 2020-21 में एनएफएसए के तहत खरीद 49.2 एमएमटी थी. यानी ज्यादा बदलाव नहीं हुआ था.

हैरानी की बात यह थी कि पीएमजीकेवाई के अंतर्गत खरीद, 2020-21 में एनएफएसए से कम थी. इस साल सिर्फ 29.70 एमएमटी की खरीद की गई, जोकि सामान्य टीपीडीएस खरीद का 60% थी. चावल की खरीद 70% थी और गेहूं की 47%.

पीएमजीकेवाई को 2021-22 में भी चलाया गया. इस साल की खरीद भी 2020-21 के जैसी ही थी.

सरकार किसानों से गेहूं और चावल की खरीद एमएसपी पर करती है.

किसानों को एमएसपी चुकाने के अलावा दो और लागत है जोकि खाद्य पदार्थों की आर्थिक लागत में शामिल हैं. इन्हें प्रासंगिक व्यय यानी प्रोक्योरमेंट इंसिडेंटल और वितरण लागत कहा जाता है. खाद्य सब्सिडी के खर्चे में एक बड़ा हिस्सा इस आर्थिक लागत का है, जिसमें से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा वसूली गई कीमत को घटाया जा सकता है.

2017-18 में चावल के लिए प्रोक्योरमेंट इंसिडेंटल 306.61 रुपए प्रति क्विंटल और गेहूं के लिए 141.47 रुपए प्रति क्विंटल था, जिसके 2021-22 में बढ़कर चावल के लिए 484.85 रुपए प्रति क्विंटल और गेहूं के लिए 319.84 रुपए क्विंटल होने का अनुमान है. इसी तरह 2017-18 में चावल के लिए वितरण लागत 507.73 रुपए प्रति क्विंटल और गेहूं के लिए 406.11 रुपए प्रति क्विंटल थी जिसके 2021-22 में बढ़कर चावल के लिए 1,018.94 रुपए प्रति क्विंटल और गेहूं के लिए 753.18 रुपए प्रति क्विंटल होने का अंदाजा है.

एनएसएसएफ लोन का रास्ता

हालांकि पिछले चार वर्षों में एमएसपी तुलनात्मक रूप से नहीं बढ़ी, लेकिन चावल और गेहूं की आर्थिक लागत तेजी से बढ़ी है. 2017-18 में यह चावल के लिए 3,280.31 रुपए प्रति क्विंटल और गेहूं के लिए 2,297.92 रुपए प्रति क्विंटल थी जबकि 2021-22 में इसके चावल के लिए 4,293.79 रुपए प्रति क्विंटल और गेहूं के लिए 2,993.80 रुपए प्रति क्विंटल होने का अनुमान है.

नतीजतन, 2021-22 में एनएफएसए के लिए एफसीआई की अनुमानित अंडर-रिकवरी/उपभोक्ता सब्सिडी प्रति क्विंटल, चावल के लिए 3,993.79 रुपए और पीएमजीकेवाई के लिए 4,293.79 रुपए है. इसी तरह गेहूं के लिए एनएफएसए के तहत 2,793.80 रुपए और पीएमजीकेवाई के लिए 2,993.80 रुपए है.

एफसीआई मूल खरीद लागत से कम कीमत पर बाजार में चावल औऱ गेहूं बेचती है. उदाहरण के लिए 2020-21 में गेहूं 2,000 रुपए प्रति क्विंटल पर बेचा गया था. आर्थिक लागत और एफसीआई के बाजार में बिक्री से होने वाली आय के बीच का फर्क भी सरकार की उपभोक्ता सब्सिडी के रूप में गिना जाता है.

सरकार का सब्सिडी बिल लगातार बढ़ रहा है. अपने दूसरे खर्चो को पूरा करने के मकसद से सरकार ने 2016-17 में यह तय किया था कि खाद्य सब्सिडी के एक बड़े हिस्से को ऑफ बजट कर दिया जाए. इसके लिए एफसीआई को एनएसएसएफ लोन्स दिए जाएं.

2016-17 में सरकार का खाद्य सब्सिडी बिल 2,04,835 करोड़ रुपए था, जिसे बजट से 1,05,673 करोड़ रुपए और एनएसएसएफ लोन के रूप में 70,000 करोड़ रुपए पूरा किया गया. 2019-20 तक यही तरीका अपनाया गया. उस समय सब्सिडी बिल 1,74,108 करोड़ रुपए था और इसकी एवज में बजट से 1,08,508 करोड़ रुपए मंजूर किए गए और 65,600 करोड़ रुपए का कुल एनएसएसएफ लोन दिया गया.

पीएमजीकेवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न और एफसीआई की बढ़ती आर्थिक लागत के साथ, वास्तविक खाद्य सब्सिडी बिल वित्तीय वर्ष 2020-21 में तेजी से बढ़ना तय था.

2020-21 में मूल खाद्य सब्सिडी का बजटीय अनुमान 1,88,467 करोड़ रुपए था. इसके लिए बजट से 1,15,320 करोड़ रुपए दिए गए और इसके अलावा 73,147 करोड़ रुपए एनएसएसएफ लोन के रूप में दिए गए. लेकिन संशोधित अनुमानों में खाद्य सब्सिडी बढ़कर 4,22,415 करोड़ रुपए हो गई.

संशोधित अनुमानों में यह राशि इसलिए बढ़ी ताकि एफसीआई एनएसएसएफ को 1,18,712 लाख करोड़ रुपए का रीपमेंट कर सके. इसकी यह वजह भी थी कि 2020-21 में पूरा खाद्य सब्सिडी बिल 3,03,703 करोड़ रुपए था.

चार साल तक इस तरीके से खाद्य सब्सिडी का बोझ कम किया गया. लेकिन आखिर में सरकार ने इस इस परंपरा से निजात पाई.
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यह बिल इस साल 4 लाख करोड़ से अधिक होगा

सरकार ने 2021-22 के बजट में खाद्य सब्सिडी के लिए 2,42,616 करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान किया. यह प्रावधान इसलिए किया गया क्योंकि यह माना जा रहा था कि साल में कभी न कभी पीएमजीकेवाई की मुफ्त खाद्यान्न आपूर्ति थमेगी. हालांकि सराकर ने पूरे साल मुफ्त राशन बांटना जारी रखा.

एनएफएसए और पीएमजीकेवाई, दोनों के तहत 2021-22 के दौरान जबरदस्त खरीद की गई. इन दोनों योजनाओं के तहत गेहूं और चावल का कुल वितरण 85 एमएमटी से ज्यादा होने की उम्मीद है. इससे सरकार को 3 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा चुकाने होंगे. एनएफएसए और पीएमजीकेवाई वितरण के बावजूद एफसीआई अपने पास ज्यादा स्टॉक रखता है और एमएसपी की लागत से कम पर बाजार में उसे बेचता है. खाद्य सचिव पहले से ही यह संकेत दे रहे हैं कि 2021-22 के लिए खाद्य सब्सिडी बिल 4 लाख करोड़ रुपए से अधिक होगा.

कड़े नीतिगत विकल्प

एनएफएसए और पीएमजीकेवाई के तहत पिछले दो वर्षों में प्रति वर्ष 80-90 एमएमटी वितरित करने के बावजूद एफसीआई के स्टॉक्स में 2020-21 और 2021-22 में तेजी आई है. आमतौर पर केंद्रीय पूल में कुल स्टॉक जनवरी के अंत में सबसे कम और जून के अंत में सबसे अधिक होता है. जून का स्टॉक 2018 में 68.12 एमएमटी से बढ़कर 2021 में 90.0 एमएमटी हो गया. जनवरी का स्टॉक भी 2018 में 35.93 मीट्रिक टन से बढ़कर 55.3 एमएमटी हो गया है.

2022-23 में कोविड-19 के काफी कम होने की उम्मीद है. सरकार अप्रैल 2022 से पीएमजीकेवाई को बंद करने पर विचार कर सकती है. हालांकि अगर इस योजना के तहत 35-40 एमएमटी गेहूं और चावल का निपटारा नहीं किया गया तो भी ये अनाज एफसीआई के स्टोर में रहेगा और वह उम्मीद करेगी कि सरकार इसका बिल चुकाए. एफसीआई के पास इसे बाजार में बेचने या निर्यात करने का भी विकल्प नहीं है.

जो विकल्प है, उसे चुनो वरना छोड़ दो

इन हालात में सरकार के पास दो ही उपाय हैं. वह कुछ वक्त तक पीएमजीकेवाई को जारी रख सकती है या एनएफएसए के तहत आबंटन बढ़ा सकती है, जैसे 8/10 किलो प्रति व्यक्ति और 50/70 किलो प्रति एएवाई परिवार. एक बात और है. इसके अलावा अब भी 50 करोड़ भारतीयों को सरकारी योजनाओं के तहत खाद्यान्न नहीं मिलते. सरकार सब्सिडीयुक्त राशन देने की एक और योजना ला सकती है, शायद कुछ ऊंची कीमत पर, जैसे गेहूं 5 रुपए प्रति किलो और चावल 8 रुपए प्रति किलो के हिसाब से दिया जाए. सरकार जो भी करे, 2022-23 के दौरान खाद्य सब्सिडी बिल 3.5/4 लाख करोड़ रुपए से कम होने की उम्मीद न के बराबर है.

2022-23 में कर राजस्व वृद्धि के मद्धम होने की उम्मीद है और सरकार 6% या उससे अधिक के राजकोषीय घाटे को संभालने की स्थिति में नहीं. ऐसे में खाद्य सब्सिडी सरकार की वित्तीय स्थिति को डांवाडोल करती रहेगी और उसके लिए मुश्किलें पैदा करती रहेगी.

(लेखक भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव और अर्थशास्त्र एवं वित्तीय मामलों के रणनीतिकार हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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