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वीडियोकॉन ने कहा,नोटबंदी की वजह से दब गए हजारों करोड़ के कर्ज में

वीडियोकॉन ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने और ब्राजील सरकार के रवैये से भी इसे नुकसान हुआ 

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टीवी, टेलीकॉम और तेल-गैस कारोबार में सक्रिय है वीडियोकॉन ग्रुप 
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टीवी, टेलीकॉम और तेल-गैस कारोबार में सक्रिय है वीडियोकॉन ग्रुप 
फोटो - ब्लूमबर्ग क्विंट 

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वीडियोकोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने 39000 करोड़ रुपये के भारी-भरकम कर्ज में दबे होने का ठीकरा मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले फर फोड़ा है. कंज्यूमर अप्लायंस कंपनी वीडियोकॉन ने अपने कर्ज के लिए मोदी सरकार के अलावा सुप्रीम कोर्ट और ब्राजील की सरकार को भी जिम्मेदार ठहराया है.

दिवालिया होने की प्रक्रिया से गुजरेगी वीडियोकॉन

वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज दिवालिया घोषित किए जाने की प्रक्रिया में है. पिछले सप्ताह नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने वीडियोकॉन को कर्ज देने वाले बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की अपील मंजूर कर ली थी. स्टेट बैंक की अगुआई में कर्जदाताओं ने ट्रिब्यूनल में दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की अपील की थी.

इस प्रक्रिया के तहत कंपनी के लिए अगले छह महीने में नए मालिकों की तलाश शुरू की जाएगी. इस फैसले के बाद वीडियोकॉन कंपनी पर वापस नियंत्रण के लिए अपील दायर की थी. स्टॉक एक्सचेंजों की दी गई सूचना में इसका जिक्र है.

हाल में वीडियोकॉन ग्रुप के चीफ (सबसे दाएं) वेणुगोपाल धूत का नाम आईसीआईआई बैंक विवाद में आया है(फोटो: क्विंट)
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सुप्रीम कोर्ट और ब्राजील सरकार पर भी आरोप

वीडियोकॉन की ओर से स्टॉक एक्सचेंजों को दी गई गई सूचना में कहा गया है कि नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू होने की वजह से कैथोड रे ट्यूब (CRT)टेलीविजन बनाने के लिए जरूरी सप्लाई रूक गई और इसे अपना यह कारोबार बंद करना पड़ा. जबकि इसका तेल और गैस कारोबार ब्राजील में लालफीताशाही में फंस गया.

सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्पेक्ट्रम लाइसेंसों में गड़बड़ी के बाद टेलीकॉम लाइसेंसों को रद्द किए जाने की वजह से इसका टेलीकॉम कारोबार भी घाटे में चला गया. कंपनी की स्थिति खराब होने की वजह से पिछले पांच साल में वीडियोकॉन के शेयर में 96 फीसदी की जबरदस्त गिरावट आई है. मंगलवार को बांबे स्टॉक एक्सचेंज में इसका शेयर सिर्फ 7.56 रुपये पर कारोबार कर रहा था.

वीडियोकॉन का तेल और गैस कारोबार को ब्राजील सरकार की हरी झंडी नहीं मिली. वीडियोकॉन ब्राजील पेट्रोलियम लिमिटेड के साथ अपना वेंचर शुरू करना चाहती थी. फरवरी 2012 में भारत में जब सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग टेलीकॉम कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए तो इसका रेवेन्यू स्त्रोत खत्म हो गया.

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