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आखिरकार नरेश गोयल और उनकी पत्नी को ना-ना करते जेट एयरवेज के बोर्ड से निकलना पड़ा. गोयल अब देश की सबसे बड़ी प्राइवेट एयरलाइंस के चेयरमैन नहीं रहे. एयरलाइंस में उनकी हिस्सेदारी 51 फीसदी से घट कर 25.5 फीसदी रह गई है. जेट को कर्ज देने वाले बैंकों के कंसोर्शियम के पास अब इसकी 50 फीसदी हिस्सेदारी है उसने इमरजेंसी फंड के तौर पर 1500 करोड़ रुपये दिए हैं. अब जेट को बचाने की जिम्मेदारी बैंकों के पास है. बड़ा सवाल है कि आखिर जेट का खरीदार कौन होगा? क्या जेट को आसानी से खरीदार मिल जाएंगे.
क्या 10 हजार करोड़ के कर्ज में डूबी और 23 हजार कर्मचारियों वाली जेट एयरवेज को आसानी से खरीदार मिल जाएगा. जेट को कर्ज देने वाले बैंकों को पूरा कॉन्फिडेंस है कि इसके लिए घरेलू या विदेशी कंपनियां मिल जाएंगी.दो महीने में इसके लिए खरीदार की तलाश शुरू हो जाएगी और नियम के मुताबिक नरेश गोयल और जेट की पार्टनर रही एतिहाद एयरलाइंस भी इसके लिए बोली लगा सकती है.
सूत्रों के मुताबिक प्रॉस्पेक्टिव खरीदारों में सबसे बड़ा नाम टाटा सन्स का है. टाटा ग्रुप को अपनी दो एयरलाइंस विस्तारा और एयर एशिया के लिए नेटवर्क की जरूरत है. ऐसी खबरें भी थीं कि नरेश गोयल भी जेट को कर्ज से उबारने के लिए उनके पास पहुंचे थे लेकिन सौदा नहीं पटा. इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि टाटा का लिए अब सही मौका है और जेट में बड़ी हिस्सेदारी खरीद सकती है.
जेट को खरीदने वाला दूसरी बड़ी खिलाड़ी कतर एयरवेज हो सकती है. कतर एयरवेज यहां लोकल एयरलाइंस खड़ा करना चाहती है लेकिन उसकी अर्जी सरकार के पास पेंडिंग है. नरेश गोयल के बेटे एक बार कतर एयरवेज के ग्लोबल सीईओ को प्रजेंटेशन दे चुके हैं.
एयरलाइंस इंडस्ट्री में एक सवाल ये भी उठ रहा है कि जब सरकार एयर इंडिया को नहीं बेच सकी तो बैंकों के कंसोर्शियम को जेट एयरवेज के लिए खरीदार मिल जाएगा. लेकिन जानकारों का कहना है एयरइंडिया विशालकाय कंपनी है. इसके ड्यू डिलिजेंस में ही महीनों लग जाएंगे. जबकि जेट एयरवेज का मामला कॉम्प्लेक्स नहीं है. इसके खाते सार्वजनिक हैं. इसलिए दो महीने बाद जब जेट की खरीदने के लिए बिड मंगाए जाएंगे तो घरेलू और विदेशी कंपनियों दोनों इसमें दिलचस्पी दिखाएंगी.
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