पेट्रोल पहुंचने वाला है 100 रुपये लीटर के पार, आखिर कौन है गुनहगार
सरकार पेट्रोल के बेस रेट पर करीब 180% और डीजल पर 141% टैक्स वसूल रही है
क्विंट हिंदी
बिजनेस न्यूज
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देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में उछाल जारी
(फोटो-क्विंट हिंदी/श्रुति माथुर)
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बहुत हुई पेट्रोल-डीजल की मार, अबकी बार मोदी सरकार!’ साल 2014 में चुनाव के दौरान बीजेपी ने बड़े जोर-शोर से ये नारा उछाला था, लेकिन सरकार बनने के बाद मोदी सरकार इस तरफ देखना भी नहीं चाहती है. पेट्रोल-डीजल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. जल्द ही इसकी कीमत 100 रुपये प्रति लीटर के पार चले जाने की आशंका है. तो आखिर इस आसमानी कीमत की वजह क्या है और आगे भी तेल की धार ऐसी ही तीखी बनी रहेगी क्या?
पेट्रोल में लगी आग(ग्राफिक्स-क्विंट हिंदी/श्रुति माथुर)
तेल देखो, तेल की धार देखो
साल 2021 में अब तक तेल की कीमतें 19 बार बढ़ाईं गई हैं. इस दौरान पेट्रोल 5.28 रुपये प्रति लीटर महंगा हो चुका है.
पिछले साल (दिल्ली, 15 फरवरी 2020) से तुलना करें तो पिछले एक साल में पेट्रोल 17.05 रुपये प्रति लीटर और डीजल 14.58 रुपये प्रति लीटर महंगा हो गया है.
जनवरी 2020 की तुलना में, जनवरी 2021 में पेट्रोल का रेट करीब 13.6 फीसदी ज्यादा है, जबकि इस दौरान ब्रेंट क्रूड का भाव करीब 14 फीसदी कम रहा है.
(ग्राफिक्स-क्विंट हिंदी/श्रुति माथुर)
तो किसने लगाई तेल में आग?
ग्लोबल मार्केट में ब्रेंट क्रूड 40 डॉलर (अक्तूबर 2020) से बढ़कर 63 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया है.
सऊदी अरब ने कच्चे तेल के उत्पादन में प्रतिदिन 10 लाख बैरल की कटौती करने का ऐलान किया है, जबकि ओपेक देशों ने एक दिन में कच्चे तेल का उत्पादन 97 लाख बैरल कम करने का फ़ैसला किया है. कम उत्पादन यानी ज्यादा कीमतें.
अधिकांश मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में कमजोरी से भी कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा हुआ है.
दुनिया के आर्थिक हालातों में सुधार दिख रहा है, जिससे ईंधन की डिमांड बढ़ गई है.
अमेरिका सहित कई देशों में राहत पैकेज की उम्मीद से भी इसकी कीमतें बढ़ने लगी हैं.
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक तेल संपन्न देशों ने एक आर्टिफिशियल प्राइस मैकेनिज्म (मूल्य को कृत्रिम तरीके से बढ़ानेवाला तंत्र) बनाया है, जिससे कीमतों में लगातार इज़ाफा हो रहा है.
पिछले एक साल में केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी को 19.98 रुपये से बढ़ाकर 32.98 रुपये कर दिया है.
इसी प्रकार डीज़ल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़कर 31.83 रुपये पर पहुंच गया है. जनवरी 2020 में यह करीब 15.83 रुपये था.
अगर साल 2014 से तुलना करें तो उस वक्त पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रुपये था, और डीजल पर सिर्फ 3.56 रुपये.
कई राज्यों ने भी अपना रेवेन्यू बढ़ाने के लिए पेट्रोल-डीज़ल पर सेल्स टैक्स लगाया है. दिल्ली सरकार ने पेट्रोल पर वैल्यू ऐडेड टैक्स (VAT) को 27 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया है.
वर्तमान में राज्य और केंद्र सरकारें प्रति लीटर पेट्रोल के बेस रेट पर करीब 180 फीसदी टैक्स वूसलती हैं, इसी प्रकार डीज़ल पर यह करीब 141 फीसदी है.
राज्य सरकारों द्वारा लगाये जाने वाला टैक्स (वैट), एक्साइज ड्यूटी के उलट पेट्रोल या डीजल की कीमत पर लगता है इसकी मात्रा पर नहीं. यानी पेट्रोल-डीजल की कीमत जितनी ज्यादा होगी, राज्य सरकारों को उतना ही ज्यादा राजस्व मिलेगा.
लेकिन कीमत तो बाजार तय करता है ना....
18 अक्टूबर 2014 को केंद्र सरकार ने डीजल 3.37 रुपये सस्ता करते हुए इसे डिरेगुलेट करने का ऐलान किया था.
तब इसे पेट्रोलियम में निजी क्षेत्र की भागीदारी के कदम के तौर पर एनडीए सरकार के सबसे बड़े आर्थिक सुधार के तौर पर देखा गया था.
डिरेगुलेट करने का मतलब ये है कि इसकी कीमत सरकार तय नहीं करेगी, अब इसे सीधे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत से लिंक किया जाएगा। यानी ब्रेंट क्रूड की बेंचमार्क प्राइस कम होगी तो हमारे यहां भी तेल सस्ता होगा.
जून 2017 में सरकार dynamic fuel pricing लेकर आई. अब पेट्रोल और डीजल की कीमत पिछले दिन की क्रूड ऑयल प्राइस और डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत के हिसाब से हर रोज रिवाइज किया जाने लगा.
कहा गया कि तेल की कीमत में सबसे छोटे बदलाव का फायदा डीलर और कंज्यूमर को हर रोज मिलेगा. लेकिन इसका फायदा सिर्फ सरकार ने उठाया. अप्रैल 2020 में तेल की कीमत $21/बैरल पहुंच गई थी, लेकिन डीजल-पेट्रोल की कीमतें जस की तस बनी रहीं.
dynamic fuel pricing लागू करने के बाद से सरकार ने डीजल-पेट्रोल पर 13 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई है और सिर्फ दो बार ड्यूटी कम की है.आ
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पिछले साल की तुलना में इस साल जनवरी में अमेरिका, चीन और ब्राजील के ग्राहकों ने क्रमश: 7.5 फीसदी, 5.5 फीसदी और 20.6 फीसदी सस्ते दर पर ईंधन खरीदा है. जबकि भारत में लोगों ने 13 फीसदी ज्यादा कीमत चुकाई है. भारत में पेट्रोलियम पर लगने वाला कुल टैक्स 69.3% है, जबकि जर्मनी और फ्रांस में 63%, जापान में 47% और कनाडा में 33% है. ये सभी आयातक देश हैं.
(ग्राफिक्स-क्विंट हिंदी/श्रुति माथुर)
मेरी जेब पर कितना असर
पहले से ही सिकुड़ रही अर्थव्यवस्था पर पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से और भी चोट पड़ सकती है.
इसकी वजह से महंगाई में भी बढ़ोतरी होगी. क्योंकि थोक-मूल्य सूचकांक(WPI) में पेट्रोल-डीजल की हिस्सेदारी करीब 5.8 फीसदी होती है.
भारत में दो-तिहाई माल ढुलाई ट्रकों के जरिये होती है जो डीजल से चलते हैं. इससे सामानों की कीमतों में इज़ाफा होगा.
निर्माण और कृषि संबंधी कई गतिविधियों के लिए भी डीजल अहम है. इससे किसानों की लागत बढ़ जाएगी और इसलिए कृषि-उत्पादों की कीमतें भी.
डीजल का महंगा होना, धान और गन्ना के किसानों के लिए खास तौर पर बुरी खबर है. अनुमान है कि सरकार के इस कदम से किसान की लागत तीस फीसदी तक बढ़ गई है. प्रति एकड़ के हिसाब से देखें तो 1200 से 1600 रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा है.
भारत की एक बड़ी आबादी दोपहिया वाहनों से भी सफर करती है जो पेट्रोल से चलते हैं. मध्य और निम्न आय वर्ग के लिए बोझ बढ़ जाएगा.ईंधन की कीमत बढ़ने से आम आदमी के पास खर्च करने के लिए पैसे कम रहेंगे. इससे बाजार मांग में कमी आएगी और मांग घटने से आपूर्ति भी प्रभावित होगी.
तो सरकार को भी घाटा हो रहा होगा?
केन्द्र सरकार ने 14 मार्च 2020 को पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में 3 रुपये का इजाफा किया था. फिर 5 मई को पेट्रोल पर 10 रुपया और डीजल पर 13 रुपये बढ़ाये. इन दो इजाफे से ही केंद्र सरकार को दो लाख करोड़ की अतिरिक्त आय हुई.
पेट्रोलियम ईंधन के लिए भारत बुरी तरह आयात पर निर्भर है. भारत अपनी जरूरत का 84% तेल और 53% गैस आयात करता है.
हम हर रोज एक मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करते हैं और पांच मिलियन बैरल तेल की खपत.
अर्थशास्त्रियों की एक रिपोर्ट के मुताबिक कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारत के सालाना आयात बिल में आठ अरब डॉलर के लगभग बढ़ोतरी हो जाती है.
इससे देश की जीडीपी में 16 आधार अंकों की कमी होती है और वित्तीय घाटा आठ आधार अंक बढ़ जाता है.
(ग्राफिक्स-क्विंट हिंदी/श्रुति माथुर)
अब आगे क्या?
अप्रैल तक कच्चा तेल 75 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकता है। इससे भारतीय बाजार में पेट्रोल-डीजल समेत रसोई गैस की कीमत में और बढ़ोतरी होगी.
कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी का मतलब है पेट्रोल और डीजल के दाम में 5.8 रु प्रति लीटर की वृध्दि अनुमानतः इससे कुल महंगाई में करीब 34 आधार अंकों की बढ़ोतरी हो सकती है.
वित्त मंत्री ने आम बजट में पेट्रोल पर ढाई रुपये और डीजल पर चार रुपये प्रति लीटर कृषि सेस लगाने का निर्णय लिया है. फिलहाल जनता पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा, क्योंकि नये सेस के बराबर ही दोनों ईंधनों के एक्साइज ड्यूटी में कटौती कर दी जाएगी.
इसमें केन्द्र को फायदा है और राज्य सरकारों को नुकसान. दरअसल टैक्स की आय राज्यों के साथ साझा करनी पड़ती है जबकि सेस के मामले में ऐसा जरूरी नहीं है. इस कमी को पूरा करने के लिए राज्य सरकारें देर-सबेर अपना बोझ जनता पर ही डालेंगी.
तो करना क्या चाहिए?
2019-20 में देश में पेट्रोलियम का महज 32,173 TMT हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ, जो बीते 18 साल में सबसे कम था. अगर उत्पादन बढ़े तो कीमतें कम हो सकती हैं.
चीन में दुनिया की हर नामचीन कंपनी जैसे ExxonMobil, Royal Dutch Shell Plc, B.P. और Saudi Aramco काम कर रही है, लेकिन भारत में कोई ऐसी कंपनी ने निवेश नहीं किया. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.
·अमेरिका और चीन के पास एक से डेढ़ बिलियन बैरल की स्टोरेज कैपेसिटी है, और हमारी रिजर्व कैपेसिटी 5.33 मिलियन बैरल यानी सिर्फ 9 दिन की जरूरत लायक भर है.
अगर हमारी तेल कंपनियां भी साल भर की खपत के बराबर स्टोरेज कैपिसिटी तैयार कर लें तो तेल की कीमतों में गिरावट का फायदा उठा सकती हैं.
रेटिंग एजेंसी Moody's Investors Service के मुताबिक हमारी छह PSU अब fallen angels की केटेगरी में आ गई हैं। ये सभी कंपनियां पेट्रोलियम सेक्टर में हैं.
कंपनियों को fallen angels का टैग देने का मतलब है कि इनके शेयर अब खरीदने या रखने लायक नहीं रहे। निवेश के नजरिए से ये सबसे निचला पायदान है. इनकी स्थिति सुधारनी होगी.