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भारत में लगातार गिरते रुपये (Rupee Falling) और मजबूत होते डॉलर (Dollar) के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने मंगलवार, 17 मई को बताया कि रुपये को मजबूत बनाने के लिए मार्च में 20.1 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा बाजार में बेचे गए हैं. यानि 20 अरब डॉलर.
लेकिन डॉलर बेचने से रुपये को कैसे मजबूती मिलती है, ये समझते हैं.
लगातार गिरते रुपये का मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध है जिसके अभी और लंबा चलने की आशंका है. इसके अलावा अमेरिका की फेडरल बैंक जो ब्याज दरें बढ़ा रहा है, उससे ग्लोबल ग्रोथ में सुस्ती आने का डर भी एक वजह बना है. क्रूड आयल की कीमतों में भी उछाल है ही.
इसके अलावा विदेशी निवेशक भारत के बाजार से पैसा निकाल रहे हैं, जिसकी वजह से भी डॉलर की डीमांड बढ़ रही है और परिणामस्वरूप रुपया कमजोर हो रहा है.
केंद्रीय बैंक के पास बैंकिंग सिस्टम पर ध्यान रखने के अलावा महंगाई को नियंत्रण करने या बाजार में लिक्विडिटी मैनेज (करंसी सप्लाय) करने की जिम्मेदारी भी होती है. लिक्विडिटी मैनेजमेंट का मतलब ये है कि बाजार में कितनी नगदी होगी. रुपये को डॉलर के मुकाबले मजबूती देने के लिए आरबीआई स्पॉट मार्केट में डॉलर्स की बिक्री करती है. इस प्रक्रिया को डॉलर-रुपी स्वाप (Dollar-Rupee Swap) कहते हैं. नाम से ही मतलब साफ समझ आ रहा है. बाजार से भारी मात्रा में रुपया वापस लेकर डॉलर की सप्लाय करना.
आरबीआई इस प्रक्रिया के तहत डॉलर को भारतीय स्पॉट मार्केट में बेचता है. स्पॉट मार्केट वो व्यवस्था है जहां फाइनेंशियल इंस्ट्रुमेंट, करंसी को ट्रेड किया जाता है. स्पॉट मार्केट में जो भी ट्रेड होता है उसकी डिलिवरी भी जल्द से जल्द की जाती है. और यहां जिस दिन ट्रेड होता है उस दिन के प्राइस पर सेटलमेंट किया जाता है. RBI ये कदम 2008 में भी उठा चुका है.
बता दें कि आरबीआई को अपने रिजर्व में 600 बिलियन डॉलर रखने होते हैं. पिछले साल सितंबर 2021 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चतम स्तर 642.51 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था, जिसके बाद से इसमें लगातार गिरावट हो रही है. रिजर्व बैंक के अनुसार 29 अप्रैल को विदेशी मुद्रा भंडार 2.695 अरब डॉलर गिरकर 597.73 अरब डॉलर रह गया है.
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