Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Business Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Consumer Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019स्मॉल सेविंग्स स्कीम में पैसा लगाने वालों पर ये सितम क्यों? 

स्मॉल सेविंग्स स्कीम में पैसा लगाने वालों पर ये सितम क्यों? 

सरकार  ने छोेटी बचत योजनाओं की ब्याज दरें घटा कर निराश किया है

दीपक के मंडल
कंज्यूमर
Updated:
सरकार लगातार छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती कर रही है
i
सरकार लगातार छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती कर रही है
(सांकेतिक फोटो: iStock)

advertisement

एक जनवरी से  पीपीएफ, एनएससी और किसान विकास पत्र जैसी स्मॉल सेविंग्स स्कीमों की ब्याज दरों में एक और कटौती कर दी. 20 बेसिस प्वाइंट यानी 0.2 फीसदी की कटौती छोटी लग सकती है लेकिन यह याद रहे कि स्मॉल सेविंग्स स्कीमों में पिछले 20 महीनों से लगातार कटौती की जा रही है. इस दौरान पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) की ब्याज दरों में 1.10 फीसदी और एक साल की डिपोजिट दरें 1.80 फीसदी घट चुकी है. सुकन्या समृद्धि योजना जिस पर कभी 9.2 फीसदी ब्याज मिलता था वह अब घट कर 8.1 फीसदी पर आ गया है.

लॉजिक क्या है

स्मॉल सेविंग्स स्कीमों की ब्याज दरों को सरकारी बांड के यील्ड से जोड़ने का तर्क ठीक है. लेकिन बांड पर मिलने वाला रिटर्न (यील्ड) रिजर्व बैंक की मौद्रिक और सरकार के राजकोषीय नीति के अलावा कई बाहरी कारणों जैसे अमेरिकी सेंट्रल बैंक की ब्याज दरों पर निर्भर करती है और इन पर छोटी बचत करने वालों को कोई वश नहीं है. ऐसे में नुकसान तो छोटी-छोटी रकम जोड़कर लंबी अवधि के लिए पैसे जमा करने वालों को तो होगा ही न.

यह सही है कि स्मॉल सेविंग्स स्कीमों  को एक बेंचमार्क से जोड़ा जाए.  सरकारी बांड सिस्टम में ब्याज दर का सही पैमाना है. इस लिहाज से सैद्धांतिक रुप से तो इस फैसले की सराहना होनी चाहिए. लेकिन यह गौर करने की जरूरत है कि स्मॉल सेविंग्स स्कीमों  में पैसा लगाने वाले ज्यादातर लोग ऐसे होते हैं जिनके पास बचत करने के कम रास्ते होते हैं. ऐसे में इन स्कीमों में पैसा लगाने वालों को ब्याज दर घटने से घाटा होना ही है.

छोटी बचत योजनाओं में ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला क्या थमेगा?तरुण अग्रवाल\क्विंट हिंदी 

छोटी बचत योजनाओं का बड़ा रोल

स्मॉल सेविंग्स स्कीमों की अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता. स्मॉल सेविंग्स लोगों में बचत की आदत डालती हैं. ये लंबी अवधि के निवेश होते हैं इसलिए सरकार को अपनी विकास योजनाओं के लिए इससे फंड भी हासिल होता है. ये स्कीमें रिटायर हो चुके और डिपोजिट पर मिलने वाले ब्याज पर निर्भर बुजुर्ग पीढ़ी का सहारा बनती हैं. देश में किसी कारगर सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के अभाव में यह बचत ही बुजुर्गों की आय को महंगाई से बचाती है.जिन लोगों को महंगाई सूचकांक के आधार पर पेंशन मिलती है उनके लिए स्मॉल सेविंग्स स्कीमों की ब्याज दरें घटना किसी बुरे सपने से कम नहीं है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

दोहरी मार

सरकार का जीएसटी संग्रह लगातार कम होता जा रहा है. दूसरी ओर, राजकोषीय घाटे के प्रबंधन में सरकार कमजोर दिखने लगी है. हालांकि अभी भी यह कहा जा रहा है कि सरकार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को 3.2 फीसदी से आगे नहीं बढ़ने देगी. लेकिन हाल में सरकारी सिक्यूरिटीज से 50 हजार करोड़ रुपये जुटाने के फैसले से उसके इस लक्ष्य के प्रति संदेह जताए जाने लगे हैं. इसके अलावा महंगाई में इजाफा शुरू हो गया है और आरबीआई ब्याज दरों में कटौती का जोखिम नहीं उठाएगा.

मतलब यह कि महंगाई दर बढ़ने की आशंका है और उसी समय में यह बुरी खबर की स्मॉल सेविंग स्कीम्स पर कम रिटर्न मिलेगा. नए साल की शुरूआत में तो यह बड़ा झटका हुआ ना.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 29 Dec 2017,09:14 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT