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रिजर्व बैंक के हालिया आंकड़े बताते हैं कि इस साल फरवरी के आखिरी दिनों में सर्कुलेशन में उतना ही कैश है, जितना नोटबंदी से पहले नवंबर, 2016 में था. रिजर्व बैंक के मुताबिक, 23 फरवरी 2018 को अर्थव्यवस्था में करेंसी का कुल सर्कुलेशन 17.82 लाख करोड़ है, नवंबर 2016 में ये आंकड़ा 17.97 लाख करोड़ था. अब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का कहना है कि करेंसी में इस उछाल का कारण राजनीतिक पार्टियों की तरफ से कैश की जमाखोरी हो सकती है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, चुनावों के समय करेंसी में इजाफे की बात सबसे पहले RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कही थी. राजन ने अप्रैल 2016 में कहा था कि चुनाव के समय में 'पब्लिक' के पास ज्यादा कैश आ जाता है.
रिपोर्ट में एसबीआई के चीफ इकनॉमिस्ट सौम्य कांति घोष के हवाले से कहा गया है कि करेंसी में इजाफा पिछले दो महीनों से ज्यादा देखने को मिला है. जनवरी में 0.45 लाख करोड़ बढ़ोतरी हुई तो फरवरी में 0.51 लाख करोड़. जबकि पिछले साल इन्हीं महीनों में ये ग्रोथ 0.1 लाख करोड़ और 0.2 लाख करोड़ था.
फरवरी के शुरुआती महीनों में जहां कैश सर्कुलेशन तेजी से बढ़ा है वहीं डिजिटल ट्रांजेक्शन में गिरावट की भी बात सामने आ रही है. फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च के पहले हफ्ते में मोबाइल वॉलेट ट्रांजेक्शन में 40-45 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है.
1.25 अरब की आबादी वाले इस देश में अभी भी करोड़ों लोग हैं जिन्हें डिजिटल ट्रांजेक्शन के बारे में कुछ भी नहीं पता, जागरूकता और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से भी डिजिटल ट्रांजेक्शन के प्रमोशन में कुछ खास फर्क नहीं दिख रहा है.
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