advertisement
सऊदी अरब, ईरान और रूस के बीच प्राइस वॉर की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त गिरावट आई है. पिछले सोमवार को ब्रेंट क्रूड के दाम गिर कर 31.13 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए, जो इस साल की शुरुआत में 64 डॉलर प्रति बैरल थे. इस भारी गिरावट के बाद देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें अब भी काफी ज्यादा है. दिल्ली में पेट्रोल 70 रुपये और डीजल 62 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा पर बिक रहा है.
कीमतों की तुलना करें तो क्रूड अब मिनरल वॉटर से भी सस्ता हो गया है. एक बैरल में 159 लीटर कच्चा तेल होता है. इस तरह एक लीटर कच्चे तेल की कीमत लगभग 13-14 रुपये पड़ेगी, जबकि एक लीटर के मिनरल वॉटर बोतल के लिए कम से कम 15 से 20 रुपये देने पड़ते हैं.
पेट्रोलियम प्रोडक्ट के दाम बाजार से जुड़ने के बाद यह उम्मीद जताई जा रही थी कि जब-जब इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड के दाम गिरेंगे तो इंडियन मार्केट में पेट्रोल-डीजल सस्ते हो जाएंगे. साल 2014 के आखिर से क्रूड के दाम इंटरनेशनल मार्केट में कई बार गिरे हैं . लेकिन पेट्रोल-डीजल की रिटेल कीमतों में इस गिरावट के हिसाब से कमी नहीं आई.
अब तक के रिकार्ड देखें तो लगता नहीं कि रिटेल खरीदारों को फायदा होगा. बड़ा सवाल ये है कि आखिर इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद भारत में उस अनुपात में पेट्रोल-डीजल की कीमतें क्यों नहीं घटतीं? इसकी दो बड़ी वजह है-
पहले बात करते हैं भारी-भरकम टैक्स पर. एक लीटर पेट्रोल की जो कीमत आप अदा करते हैं उस पर कितना टैक्स लगता है उस पर एक नजर-
राज्यो में वैट की दरें अलग-अलग हैं. यह रेंज 15 रुपये से लेकर 33-34 रुपये तक है. इसलिए राज्यों पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी अलग-अलग हैं.
एक लीटर डीजल पर यह टैक्स लगभग 28 रुपये का पड़ता है. यानी पेट्रोल-डीजल की कीमत का आधा से ज्यादा हिस्सा टैक्स का है. साल 2014 से 2019 के बीच यानी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी के बावजूद भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर लगने वाली टैक्स दरें ऊंची रहीं. नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच एक्साइज ड्यूटी रिकार्ड नौ बार बढ़ाई गई.
अब दूसरी वजह यानी रुपये की कमजोरी की बात करते हैं. इकनॉमी में लगातार गिरावट के साथ ही हमारा रुपया भी लगातार कमजोर होता जा रहा है. दिसंबर 2015 में हम एक डॉलर के बदले 64.8 रुपये अदा करते थे. लेकिन आज की तारीख में 74 रुपये से भी ज्यादा अदा कर रहे हैं. सीधे-सीधे 15 फीसदी अधिक कीमत देनी पड़ रही है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय क्रूड हमारे लिए सस्ता होकर भी महंगा पड़ रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार के लिए यह बोझ बना हुआ है.
भारत अपनी जरूरत के 83 फीसदी से अधिक कच्चा तेल आयात करता है और इसके लिए इसे हर साल 100 अरब डॉलर देने पड़ते हैं. कमजोर रुपया भारत का आयात बिल और बढ़ा देता है और सरकार इसकी भरपाई के लिए टैक्स दरें ऊंची रखती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)