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आंकड़े क्‍यों कह रहे हैं, इकोनॉमिक ग्रोथ पर नोटबंदी का असर नहीं?

अनुमान के उलट इकोनॉमिक ग्रोथ पर नोटबंदी का असर नहीं पड़ा. दिसंबर क्वॉर्टर में आर्थिक तरक्की की रफ्तार 7.1% रही.

टीसीए श्रीनिवास राघवन
बिजनेस
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(फोटो: iStock)
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पिछले हफ्ते सीएसओ (सेंट्रल स्टेटिस्टिकल आॅर्गनाइजेशन) ने अक्टूबर-दिसंबर 2016 क्वॉर्टर के जीडीपी डेटा रिलीज किए. पिछले साल 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की 86% करेंसी को अमान्य घोषित किया था. अचानक कैश खत्म होने के बाद डिमांड कम हुई थी और इसी वजह से सबने इकोनॉमिक ग्रोथ सुस्त पड़ने की आशंका जाहिर की थी. कमाल की बात यह है कि ऐसा नहीं हुआ.

सीएसओ ने कहा कि लोगों के अनुमान के उलट इकोनॉमिक ग्रोथ पर नोटबंदी का कोई असर नहीं पड़ा और दिसंबर क्वॉर्टर में आर्थिक तरक्की की रफ्तार 7.1 पर्सेंट रही.

इससे सभी सन्न हैं. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि आंकड़े सही नहीं हैं. दूसरी पार्टियां कह रही हैं कि सीएसओ की बात सुनकर उनकी आंखें फटी की फटी रह गई हैं.

इन आंकड़ों पर अर्थशास्त्री भी सिर धुन रहे हैं और टेलीविजन चैनलों के एंकरों का गला चीखने से बैठ गया है.

नरेंद्र मोदी ने हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड के अर्थशास्त्रियों यानी अमर्त्य सेन और मनमोहन सिंह की आलोचना की है, जिन्होंने नोटबंदी को गलत कदम बताया था. वहीं वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बताया कि वे तो पहले से ही ऐसा कह रहे थे. दूसरे मंत्री भी खुशी से झूम रहे हैं. यह ऐसा खेल है, जिसमें बीजेपी को जिताने की कोशिश की जा रही है. कम से लग तो ऐसा ही रहा है.

हालांकि अभी मैच की समीक्षा चल रही है और नोटबंदी का इकोनॉमी पर असर जानने के लिए हमें कुछ और महीनों तक इंतजार करना होगा. वजह यह है कि अभी हमें इनफॉर्मल इकोनॉमी यानी उन कंपनियों पर नोटबंदी के असर की जानकारी नहीं है, जो टैक्स के दायरे से बाहर हैं. देश की कैश से चलने वाली 95% अर्थव्यवस्था में इसका ही योगदान है.

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जीडीपी में ट्विस्ट

क्यों न उससे पहले हम यह जान लें कि जीडीपी ग्रोथ को कैसे मापा जाता है? यकीन मानिए, यह बहुत पेचीदा काम है. धर्मशास्त्रों में दूसरी चीजों के साथ आपको हिंदुत्व का बुनियादी सिद्धांत भी मिलता है- जो आपकी आंखों के सामने है और आंखों के सामने नहीं है, वे आपस में एक-दूसरे में बदल सकते हैं. धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि सच्‍चाई इस बात पर निर्भर करती है कि आप उसे किस तरह से देखते हैं.

इसी संदर्भ में कॉलेज में कोर्स की किताब में पढ़ा हुआ नेशनल एकाउंटिंग का सबक मुझे अचानक याद आया. इसमें लिखा था,

टैक्स को छोड़कर फैक्टर कॉस्ट जीडीपी है. मार्केट प्राइसेज पर जीडीपी में टैक्स को शामिल किया जाता है, लेकिन इसमें सब्सिडी की गणना नहीं होती.

जिस तरह से आदि हिंदुओं को इस बात का अहसास था कि सच्‍चाई इस बात पर निर्भर करती है कि आपने पंडितों को कितनी दक्षिणा दी थी. उसी तरह से मार्केट प्राइसेज वाले तरीके में अधिक टैक्स कलेक्शन से जीडीपी ग्रोथ बढ़ जाती है.

अक्टूबर-दिसंबर 2016 क्वॉर्टर में यही हुआ है. इस तिमाही में सरकार की टैक्स से आमदनी बढ़ी थी.

उलझा हुआ सवाल

मैंने अर्थशास्त्रियों से पूछा कि मान लीजिए कि रेस्टोरेंट जाने पर सरकार 100 रुपये का टैक्स लगा देती है, लेकिन किसी भी वजह से आपके टैक्स चुकाने और रेस्टोरेंट में प्रवेश करने के बाद आपके सामने कुछ भी नहीं परोसा जाता है. ऐसे में आपने एंट्री टैक्स चुकाया है, लेकिन आपको सर्विस टैक्स नहीं देना होगा, क्योंकि रेस्टोरेंट ने कोई सर्विस दी ही नहीं है. ऐसे में क्या जीडीपी बढ़ेगा, कम होगा या पहले जितना रहेगा? इस पर ईमेल का आदान-प्रदान हुआ. आखिर में यह पाया गया कि इस सवाल का जवाब अर्थशास्त्रियों के पास नहीं था.

हालांकि सच यह है कि जब मार्केट प्राइस पर जीडीपी को कैलकुलेट किया जाता है, तो भले ही प्रॉडक्शन में बढ़ोतरी न हो (जिस तरह कोई सर्विस नहीं दी गई), लेकिन 100 रुपये के एंट्री टैक्स से उसमें इतनी बढ़ोतरी होगी. अगर यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाए, तो इसका असर ग्रोथ पर दिखेगा, भले ही यह बहुत अधिक न हो.

इसलिए असल सवाल यह है कि क्या सरकार की आमदनी जीडीपी में जुड़नी चाहिए या नहीं. अगर ऐसा होता है, तो कम से कम थ्योरी में ग्रोथ बढ़ जाएगी, जबकि वास्तविक प्रोडक्शन में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी.

प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम ने जब 2008-11 के राहत पैकेज को जब वापस लेना शुरू किया था, तब इनडायरेक्ट टैक्स बढ़ाकर उन्होंने ऐसा ही किया था. इससे सरकार की आमदनी जीडीपी की ग्रोथ के मुताबिक बढ़ी. लेकिन प्रोडक्शन में वैसी बढ़ोतरी नहीं हुई. जब मैंने अर्थशास्त्रियों का ध्यान इस बात पर दिलाया, तो उनमें से एक ने कहा कि कॉन्स्टेंट प्राइस पर भी जीडीपी में बढ़ोतरी हुई है, इसलिए रहस्य से पर्दा नहीं हटता. उनकी बात सच है. फिस्कल डेफिसिट को कम रखने के लिए चिदंबरम ने वादे के मुताबिक सभी सब्सिडी का भुगतान नहीं किया था.

बुनियादी बात यह है कि अगर मार्केट प्राइस पर जीडीपी को कैलकुलेट करना है, तो इनडायरेक्ट टैक्स रेवेन्यू का बड़ा रोल होगा. अभी वैसा ही हो रहा है.

(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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