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जीएसटी लागू हुए चार महीने हो गए हैं लेकिन कारोबारियों का 500 अरब रुपये का रिफंड सरकार के पास अटका हुआ है. बकाया रिफंड का सबसे ज्यादा असर निर्यातकों पर पड़ा है. निर्यातकों की परिचालन पूंजी घटती जा रही है और इस वजह से उन्हें मजदूरों को निकालना पड़ रहा है. खराब हालात की वजह से तिरुपुर एक्सपोर्ट हब में अब तक 10,000 श्रमिक बेरोजगार हो चुके हैं. इस एक्सपोर्ट हब में पांच लाख लोग काम करते हैं.
रिफंड न मिलने से सबसे ज्यादा असर छोटे निर्यातकों और असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है. खास कर टेक्सटाइल और ज्वैलरी एक्सपोर्ट सेक्टर पर. जुलाई से ये दोनों सेक्टर सप्लाई चेन में दिक्कत का सामना कर रहे हैं. सरकार ने रिटर्न फाइलिंग की डेडलाइन लगातार बढ़ाई है. बड़े पैमाने पर रिटर्न की समीक्षा भी हो रहा है लेकिन रिफंड मिलने की रफ्तार अब भी धीमी है.
भारत के निर्यात में दो तिहाई हिस्सेदारी जेम्स एंड ज्वैलरी, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग गुड्स, खाद्य पदार्थ और रिफाइंड ईंधन की है. टैक्स फाइलिंग की तारीखों को आगे बढ़ाने और बड़े पैमाने पर रिफंड की समीक्षा के बावजूद कारोबारियों को रिफंड मिलने की रफ्तार धीमी है.
दक्षिण भारत में फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गेनाइजेशन (FIEO) के रीजनल चेयरमैन ए शक्तिवेल ने कहा,
सरकार ने निर्यातकों को राहत देने के लिए जो कदम उठाए हैं उनके नतीजे आने में वक्त लगेगा. इस बीच, कई छोटे निर्यातक नया ऑर्डर नहीं ले पा रहे हैं. टैक्स देने के बाद उनके पास फंड नहीं बचा है.
अक्टूबर में देश का निर्यात 15 महीने में पहली बार गिरा. इसमें 1.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 23.1 अरब डॉलर पर आ गया. सरकार ने भले ही जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी में कुछ सुधार किए हों लेकिन हालात सुधरते नहीं दिखते. पिछले महीने व्यापार घाटा बढ़ कर 14 अरब डॉलर पर पहुंच गया. अगर भारत में सबसे ज्यादा आयात होने वाले कच्चे तेल के दाम बढ़ते हैं तो निर्यात में और गिरावट आएगी और व्यापार घाटा भी बढ़ेगा.
इनपुट : ब्लूमबर्ग से
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