Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Business Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019नोटबंदी के 100 दिन: क्या इशारा कर रहे हैं इकोनॉमी के इंडिकेटर्स

नोटबंदी के 100 दिन: क्या इशारा कर रहे हैं इकोनॉमी के इंडिकेटर्स

सरकार ने टैक्स दायरा बढ़ने की बात कही तो आलोचकों ने इसे बेवकूफी भरा कदम बताया.

द क्विंट
बिजनेस
Published:
आरबीआई से मिली जानकारी के मुताबिक 10 दिसंबर तक 12.44 लाख करोड़ रुपये बैंकों में पहुंच गए (फोटो: iStock)
i
आरबीआई से मिली जानकारी के मुताबिक 10 दिसंबर तक 12.44 लाख करोड़ रुपये बैंकों में पहुंच गए (फोटो: iStock)
null

advertisement

नरेंद्र मोदी सरकार को 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोट वापस लिए हुए 100 दिन बीत चुके हैं. सरकार और उसके समर्थकों ने दावा किया था कि इससे टैक्स का दायरा बढ़ेगा, जबकि आलोचकों का कहना था कि यह बेवकूफी भरा कदम है और इससे सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को नुकसान ही पहुंचेगा. दोनों ही खेमे अपनी-अपनी बात पर अड़े हैं, लेकिन आंकड़े क्या कह रहे हैं? अधिकतर आर्थिक और बैंकिंग आंकड़ों का कोई मतलब निकालना मुनासिब नहीं होगा. वे दिसंबर के लो लेवल से तो बेहतर दिख रहे हैं, जब कैश की सप्लाई सबसे कम थी लेकिन अभी तक नोटबंदी के पहले वाले लेवल तक नहीं पहुंच पाए हैं.

कहां स्टेबल होगी इकोनॉमी?

भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक कैश से चलती रही है. ऐसे में कैश कम करने से उस पर असर तय था. सरकार का कहना है कि यह दिक्कत अस्थायी है, जबकि निजी क्षेत्र के एक्सपर्ट्स का कहना है कि नोटबंदी के चलते वित्त वर्ष 2017 में जीडीपी ग्रोथ 6.5% रह जाएगी, जो वित्त वर्ष 2016 में 7.9% थी. वित्त वर्ष 2018 में आर्थिक रिकवरी पर सभी सहमत हैं. रिजर्व बैंक ने अगले वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ का लक्ष्य 7.4% रखा है, जबकि इस साल के लिए 6.9%. अभी की तस्वीर क्या है?

निक्केई का मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) दिसंबर में 49.6 पर चला गया था. 11 महीनों में पहली बार यह निगेटिव जोन में पहुंचा था. लेकिन जनवरी में यह 50.4 पर रहा, जो पॉजिटिव ग्रोथ का संकेत है. सवाल यह है कि यह इंडेक्स कहां जाकर स्थिर होगा और क्या यह नोटबंदी से पहले वाले लेवल तक पहुंच पाएगा? अक्टूबर 2016 यानी नोटबंदी से पहले मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई 54.4 के साथ 22 महीने की ऊंचाई पर था.  

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (इंडस्ट्रियल प्रॉडक्शन इंडेक्स यानी आईआईपी) नवंबर में तो मजबूत बना रहा, लेकिन दिसंबर में यह माइनस 0.4% रहा था. अगर आईआईपी भी मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई की राह पर चलता है तो इसमें जनवरी में रिकवरी होनी चाहिए. वहीं, कंज्यूमर प्राइस इन्फ्लेशन से डिमांड के कमजोर होने का पता चलता है.

सप्लाई चेन पर भी पड़ा असर?

नोटबंदी का असर क्या सप्लाई चेन पर भी पड़ा है? खासतौर पर असंगठित क्षेत्र के सप्लाई चेन पर इसके असर का पता नहीं चल पाया है. इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. यह भी पता लगाना मुश्किल है कि नोटबंदी के चलते असंगठित बिजनेस, संगठित क्षेत्र यानी फॉर्मल इकोनॉमी की तरफ शिफ्ट हो रहा है? इंडिपेंडेंट एनालिस्ट वी अनंत नागेश्वरन ने ब्लूमबर्गक्विंट को पिछले हफ्ते दिए इंटरव्यू में कहा था,

मैं आगे चलकर यह देखना चाहूंगा कि संगठित क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र में रोजगार का अनुपात क्या रहता है? मैं टैक्स के दायरे में आने वाले इनकम टैक्स असेसीज की संख्या भी देखना चाहूंगा. क्या महंगाई दर बढ़े बिना तेज ग्रोथ हासिल की जा सकेगी? इन बातों का पता चलने में कई साल लगेंगे, यही दिक्कत है और तब लोग इसे नोटबंदी से नहीं जोड़ेंगे.

नोटबंदी से खर्च पर लगेगी लगाम?

नोटबंदी की घोषणा के बाद एक आशंका यह थी कि अगर पुराने कैश का बड़ा हिस्सा खत्म हुआ तो लोगों के दिमाग में संपत्ति घटने की बात घर कर जाएगी. हालांकि, करेंसी का बड़ा हिस्सा बैंकों में जमा कराया गया, इसलिए यह डर कम हुआ है. अधिकतर अर्थशास्त्री अब इस आशंका को निराधार बता रहे हैं. नोटबंदी के झटके से शेयर बाजार की जल्द रिकवरी से भी इस मामले में राहत मिली है.

हालांकि, देश में काफी संपत्ति रियल एस्टेट मार्केट में है. वह अभी भी मुश्किल में है और उसमें रिकवरी का कोई संकेत नहीं दिखा है. पिछले हफ्ते देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ ने अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही के नतीजों का ऐलान किया था. उसकी बिक्री साल भर पहले की इसी तिमाही की तुलना में 29% कम हुई थी. वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में करीब 50% कैंसलेशन भी डराने वाली बात है. डीएलएफ के परफॉर्मेंस से रियल एस्टेट मार्केट की हालत का पता चलता है.

नाइट फ्रैंक का कहना है कि अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही रियल एस्टेट के लिए पिछले 6 साल में सबसे बुरे तीन महीने रहे हैं. इस तिमाही में बिक्री 44% कम हुई और नए लॉन्च में इससे पिछली तिमाही की तुलना में 61% की गिरावट आई.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

क्या नकद फिर से बनेगा ‘नारायण’

13 मार्च 2017 को बैंकों और एटीएम से पैसा निकालने की सारी बंदिशें खत्म हो जाएंगी. इससे पता चलता है कि महीने भर में सिस्टम में पर्याप्त करेंसी होगी. लेकिन यहां ‘पर्याप्त’ का क्या मतलब है? क्या उतने नोट सर्कुलेशन में आएंगे, जितने नोटबंदी से पहले थे. रिजर्व बैंक के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, 10 फरवरी तक 10.97 लाख करोड़ की करेंसी सर्कुलेशन में थी, जो नोटबंदी के पहले के 17.97 लाख करोड़ का 61% है.

मार्च तक अर्थशास्त्री इसके 70% तक पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं. कैश के बढ़ने के साथ डिजिटल ट्रांजेक्शन में सुस्ती आ रही है. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर में 105.4 लाख करोड़ के डिजिटल ट्रांजेक्शंस हुए थे, जो जनवरी में घटकर 98 लाख करोड़ पर आ गए. बैंकिंग सेक्टर में डिपॉजिट भी नोटबंदी के पहले वाले लेवल पर बना हुआ है. 

105 लाख करोड़ का बैंकिंग डिपॉजिट पिछले साल की तुलना में 13 पर्सेंट ज्यादा है. इसमें से कितना बैंकों के पास बचा रह जाएगा, इसका पता तभी चलेगा जब कैश निकालने की बंदिशें खत्म हो जाएंगी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT