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नरेंद्र मोदी सरकार को 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोट वापस लिए हुए 100 दिन बीत चुके हैं. सरकार और उसके समर्थकों ने दावा किया था कि इससे टैक्स का दायरा बढ़ेगा, जबकि आलोचकों का कहना था कि यह बेवकूफी भरा कदम है और इससे सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को नुकसान ही पहुंचेगा. दोनों ही खेमे अपनी-अपनी बात पर अड़े हैं, लेकिन आंकड़े क्या कह रहे हैं? अधिकतर आर्थिक और बैंकिंग आंकड़ों का कोई मतलब निकालना मुनासिब नहीं होगा. वे दिसंबर के लो लेवल से तो बेहतर दिख रहे हैं, जब कैश की सप्लाई सबसे कम थी लेकिन अभी तक नोटबंदी के पहले वाले लेवल तक नहीं पहुंच पाए हैं.
भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक कैश से चलती रही है. ऐसे में कैश कम करने से उस पर असर तय था. सरकार का कहना है कि यह दिक्कत अस्थायी है, जबकि निजी क्षेत्र के एक्सपर्ट्स का कहना है कि नोटबंदी के चलते वित्त वर्ष 2017 में जीडीपी ग्रोथ 6.5% रह जाएगी, जो वित्त वर्ष 2016 में 7.9% थी. वित्त वर्ष 2018 में आर्थिक रिकवरी पर सभी सहमत हैं. रिजर्व बैंक ने अगले वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ का लक्ष्य 7.4% रखा है, जबकि इस साल के लिए 6.9%. अभी की तस्वीर क्या है?
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (इंडस्ट्रियल प्रॉडक्शन इंडेक्स यानी आईआईपी) नवंबर में तो मजबूत बना रहा, लेकिन दिसंबर में यह माइनस 0.4% रहा था. अगर आईआईपी भी मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई की राह पर चलता है तो इसमें जनवरी में रिकवरी होनी चाहिए. वहीं, कंज्यूमर प्राइस इन्फ्लेशन से डिमांड के कमजोर होने का पता चलता है.
नोटबंदी का असर क्या सप्लाई चेन पर भी पड़ा है? खासतौर पर असंगठित क्षेत्र के सप्लाई चेन पर इसके असर का पता नहीं चल पाया है. इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. यह भी पता लगाना मुश्किल है कि नोटबंदी के चलते असंगठित बिजनेस, संगठित क्षेत्र यानी फॉर्मल इकोनॉमी की तरफ शिफ्ट हो रहा है? इंडिपेंडेंट एनालिस्ट वी अनंत नागेश्वरन ने ब्लूमबर्गक्विंट को पिछले हफ्ते दिए इंटरव्यू में कहा था,
नोटबंदी की घोषणा के बाद एक आशंका यह थी कि अगर पुराने कैश का बड़ा हिस्सा खत्म हुआ तो लोगों के दिमाग में संपत्ति घटने की बात घर कर जाएगी. हालांकि, करेंसी का बड़ा हिस्सा बैंकों में जमा कराया गया, इसलिए यह डर कम हुआ है. अधिकतर अर्थशास्त्री अब इस आशंका को निराधार बता रहे हैं. नोटबंदी के झटके से शेयर बाजार की जल्द रिकवरी से भी इस मामले में राहत मिली है.
हालांकि, देश में काफी संपत्ति रियल एस्टेट मार्केट में है. वह अभी भी मुश्किल में है और उसमें रिकवरी का कोई संकेत नहीं दिखा है. पिछले हफ्ते देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ ने अक्टूबर-दिसंबर 2016 तिमाही के नतीजों का ऐलान किया था. उसकी बिक्री साल भर पहले की इसी तिमाही की तुलना में 29% कम हुई थी. वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों में करीब 50% कैंसलेशन भी डराने वाली बात है. डीएलएफ के परफॉर्मेंस से रियल एस्टेट मार्केट की हालत का पता चलता है.
13 मार्च 2017 को बैंकों और एटीएम से पैसा निकालने की सारी बंदिशें खत्म हो जाएंगी. इससे पता चलता है कि महीने भर में सिस्टम में पर्याप्त करेंसी होगी. लेकिन यहां ‘पर्याप्त’ का क्या मतलब है? क्या उतने नोट सर्कुलेशन में आएंगे, जितने नोटबंदी से पहले थे. रिजर्व बैंक के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, 10 फरवरी तक 10.97 लाख करोड़ की करेंसी सर्कुलेशन में थी, जो नोटबंदी के पहले के 17.97 लाख करोड़ का 61% है.
105 लाख करोड़ का बैंकिंग डिपॉजिट पिछले साल की तुलना में 13 पर्सेंट ज्यादा है. इसमें से कितना बैंकों के पास बचा रह जाएगा, इसका पता तभी चलेगा जब कैश निकालने की बंदिशें खत्म हो जाएंगी.
सोर्स: ब्लूमबर्ग क्विंट
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