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8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने नोटबंदी का बड़ा फैसला लिया. 500 और 1 हजार के नोट पर बैन लगा दिया गया. नोटबंदी के इस फैसले के बाद डिजिटल ट्रांजेक्शन में काफी तेजी आई थी.
नवंबर-दिसंबर में ट्रांजेक्शन की रफ्तार बढ़ी. लेकिन अब यह रफ्तार कम होती दिख रही है. इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर-दिसंबर में डिजिटल ट्रांजेक्शन में इजाफा दिखा था. वहीं फरवरी के महीने में ट्रांजेक्शन में काफी गिरावट देखने को मिली है.
कुल डिजिटल ट्रांजेक्शन की बात करें तो नवंबर, 2016 में ट्रांजेक्शन में 42 फीसदी का इजाफा हुआ था. ट्रांजेक्शन्स की संख्या 672 मिलियन थी. दिसंबर में इस आंकड़े में और इजाफा हुआ, यह बढ़कर 958 मिलियन तक पहुंच गया. लेकिन फरवरी के महीने में इसमें 20 फीसदी गिरावट देखने को मिली है. डिजिटल ट्रांजेक्शन की संख्या गिरकर 763 मिलियन के करीब पहुंच गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 11 में से 9 डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म्स में गिरावट देखने को मिली है. नोटबंदी के बाद से सिर्फ दो पेमेंट प्लेटफॉर्म्स, UPI और आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम (AEPS), के इस्तेमाल में ही लगातार बढ़ोत्तरी हुई है.
ऑनलाइन बैंकिंग की बात करें तो NEFT से ट्रांजेक्शन में जनवरी और फरवरी में गिरावट देखने को मिली. वहीं आईएमपीएस (IMPS) से पेमेंट में दिसंबर और जनवरी में तो इजाफा हुआ लेकिन फरवरी में इसमें कमी आई.
सरकार ने साल 2017-18 के लिए 25 बिलियन के डिजिटल ट्रांजेक्शन का लक्ष्य रखा है, जिसका मतलब है कि हर महीने तकरीबन 2 बिलियन ट्रांजेक्शन होना चाहिए. फरवरी के 763 मिलियन ट्रांजेक्शन के लिहाज से बात करें तो इस लक्ष्य में 60 फीसदी की कमी दिख रही है. अगर रफ्तार ऐसी ही धीमी बनी रही तो डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने में मुश्किल होगी.
माना जा रहा है कि नोटबंदी के बाद कैश की किल्लत के कारण लोग भारी संख्या में ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की तरफ बढ़े. अब जैसे-जैसे कैश की कमी दूर हो रही है लोग पुराने ढर्रे पर वापस आ रहे हैं.
आंकड़ों से तो यही लग रहा है कि कैश आने के बाद डिजिटल ट्रांजेक्शन से लोगों का मोह कम हो रहा है.
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