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लंबे समय से नजरअंदाज किए जा रहे UPI का स्वागत अब क्यों?

यह डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने का मौका है, जिसका वादा ‘डिजिटल इंडिया’ के साथ किया गया था, जो पूरा नहीं हो पाया.

संजय पुगलिया
बिजनेस
Updated:
(फोटो: द क्विंट)
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(फोटो: द क्विंट)
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8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'बिग-बैंग' नोटबंदी की घोषणा के बाद पेटीएम जैसे मोबाइल वॉलेट प्लेटफॉर्म से 50 लाख नए कस्टमर्स जुड़ गए.

पिछले 15 दिनों में कंपनी के लिए यह एक अभूतपूर्व बढ़ोतरी है. संयोग ही है कि चीनी ई-कॉमर्स की दिग्गज कंपनी अलीबाबा ने विजय शेखर शर्मा की कंपनी में एक बड़ी हिस्सेदारी ली.

जबकि UPI (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) पेटीएम की तरह ही एक अर्ध-सरकारी, लागत प्रभावी और स्मार्ट तरीका होने के बावजूद पिछड़ा रह गया. यह प्लेटफॉर्म नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) मैनेज करती है.

डिजिटल ट्रांजेक्शन की दुनिया में 'वॉट्सएेप' मूवमेंट के नाम से जाना जाने वाला UPI 25 अगस्त, 2015 को आया था. दो दर्जन से अधिक बैंक इसके समर्थन में आए, लेकिन बड़े कस्टमर बेस वाले एचडीएफसी बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने खुद को इससे अलग रखा.

अब इन बैंकों ने भी अपने बिजनेस को बचाए रखने के लिए तैयारी कर ली है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोग पेटीएम जैसे प्राइवेट डिजिटल वॉलेट प्लेटफॉर्म को अपना रहे हैं.

नोटबंदी की आपाधापी से बचने के लिए एचडीएफसी और एसबीआई ने भी इसी हफ्ते UPI के प्लेटफॉर्म में शामिल हाने का फैसला लिया है.

UPI एप्लीकेशन सिर्फ दो सेकेंड में किसी भी बैंक अकाउंट वाले लोगों के बीच कैशलेस ट्रांजेक्शन की सुविधा देता है. पेटीएम के उलट, यह बहुत कम एक्स्ट्रा लागत के साथ ये सुविधा देता है. जबकि पेटीएम ट्रांजेक्शन के लिए 4 फीसदी की भारी ट्रांजेक्शन फीस लेता है.

बड़े बैंकों ने मैदान में खुद को बचाने के लिए UPI के इस इंटर-ऑपरेबल प्लेटफॉर्म का विरोध किया था. वे अपना खुद का मोबाइल ऐप चाहते थे और उनका मानना था कि मोबाइल और नेट-बैंकिंग की सुविधा उन्हें खुद डिजिटल प्लेटफॉर्म का खिलाड़ी बना देंगी.

जबकि UPI सबसे बड़ा डिजिटल 'ब्रह्मास्त्र' जैसा था, जिसे गंभीरता से उपयोग में नहीं लाया गया.

ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी पेटीएम ने कई सारे अखबारों में दिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ एड (फोटो: द क्विंट)

लेकिन अब जिस गति के साथ हर कोई इसके फायदों को देखकर इसके उपयोग की ओर बढ़ रहा है, वह स्पष्ट रूप से बताता है कि देशभर में नकद ट्रांजेक्शन में आई गिरावट के बाद विरोध कर रहे लोग फायरफाइटिंग मोड में आ गए हैं.

हर दिन मिल रही छूट, कैश चेंज प्लान में बदलाव, मोडिफिकेशन, अगर इन चीजों पर गौर करें, तो यह दिखाता है कि ये सब डिजिटल कैश ट्रांजेक्शन के दायरे को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है.

डालिए एक नजर:

  • रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने ई-वॉलेट/PPI (प्री-पेड इंस्ट्रूमेंट जैसे डेबिट कार्ड) की लिमिट में छूट दी.
  • ट्राई ने UPI के लिए ट्रांजेक्शन काॅस्ट को कम कर 1.50 रुपये से 50 पैसे कर दिया है.
  • आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने घोषणा की है कि डिजिटल फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन, जैसे डेबिट कार्ड से किए गए लेन-देन पर किसी भी तरह का लेवी चार्ज यानी उगाही शुल्क 31 दिसंबर तक नहीं लगेगा.
  • उन्होंने यह भी घोषणा की कि यूएसएसडी (अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डेटा) पर ट्राई के एक्शन के बाद, दूरसंचार कंपनियां शेष 50 पैसे के चार्जेज को भी हटा लेंगी.
  • डिजिटल पेमेंट को लेकर फाइनेंस सेक्रेटरी रतन पी वतल की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने सरकार को रिपोर्ट सौंप दी है.

जानकर हैरानी होगी कि बिल गेट्स ने UPI को दुनिया का सबसे अच्छा प्लेटफॉर्म करार दिया था, लेकिन सरकार में बैठे नए डिजिटल चैंपियंस इस मंच की विशाल क्षमता और ऐसे इनोवेशन को इग्नोर कर रहे थे.

सरकार और बैंकिंग सिस्टम भले ही नोटबंदी को लेकर चल रही आपाधापी को छुपाने में लगे हैं और एक के बाद एक हित समूहों को संतोष दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन असल में ये उनके लिए एक शक्तिशाली डिजिटल इन्‍फ्रास्ट्रक्चर बनाने का अवसर है, जिसका वादा डिजिटल इंडिया के साथ किया गया था जो पूरा नहीं हो पाया.

कहीं ये उपेक्षा जानबूझकर तो नहीं की गई थी?

और अब जबकि पेटीएम जैसी निजी संस्थाओं को डिजिटल इंडिया के रूप में बदलते भारत के पोस्टर बॉय की तर्ज पर पेश किया जा रहा है, उम्मीद है कि सरकार को यह समझ आ जाए कि अभी के वक्त में UPI एक स्मार्ट और शायद अब तक सबसे सस्ता डिजिटल ट्रांजेक्शन प्लेटफॉर्म है.

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Published: 23 Nov 2016,06:33 PM IST

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