advertisement
वनडे क्रिकेट में डकवर्थ लुईस के बारे में सब जानते हैं, लेकिन अगर किसी ने उनके नियम के बारे में पूछ लिया तो सालों से क्रिकेट देखने और खेलने वाले सभी लोग तक कैलकुलेशन नहीं कर पाते. जीएसटी के मौजूदा ढांचे को देखकर भी कुछ ऐसा ही लग रहा है कि वादा किया गया एक देश एक टैक्स का और मिल गया 6 टैक्स और 9 सरचार्ज यानी 15 रेट. वादा था बिजनेस और फाइलिंग आसान होगी, लेकिन अब 13 के बजाए करनी होगी 37 फाइलिंग. जटिलता की ये तो सिर्फ बानगी है.. अब तो कारोबारी और उद्योगपति के अलावा चार्टर्ड अकाउंटेंट भी ये कह रहे हैं... हमसे का भूल हुई....
अब बताइए मैन्युफैक्चरर और सरकारी टैक्स सिस्टम ही नहीं, एक उपभोक्ता के तौर पर आपके लिए ये सिस्टम कितना जटिल हो गया. यानी किस आइटम या सर्विस पर कितना टैक्स लगेगा अगर आपको यह जानना है तो पूरी लिस्ट खंगालनी होगी. जबकि सिंगापुर में ज्यादातर आइटम और सर्विस पर करीब करीब एक ही रेट है सिर्फ 7 परसेंट. कनाडा में तो स्टैंडर्ड दर सिर्फ 5 परसेंट है.
अरे रुकिए टैक्स की बात तो अभी शुरु हुई है... अब सरचार्ज पर आते हैं..
मतलब बूझो तो जाने वाला हिसाब हमेशा बना रहेगा.
भारत में अक्सर हम शुरुआत अच्छी करते हैं लेकिन फाइनल प्राॅडक्ट बनाते-बनाते जटिल कर देते हैं. यानी आसान तरीके हमें पसंद नहीं. देश में दोहरा जीएसटी सिस्टम होगा. सेंट्रल जीएसटी और स्टेट जीएसटी यानी ज्यादातर आइटम और सर्विस ऐसी हैं कि जीएसटी केंद्र वसूलेगा, लेकिन कई चीजों पर जीएसटी वसूली का अधिकार राज्यों के पास भी होगा. ऐसे आइटम या सर्विस जिनकी सप्लाई अंतरराज्यीय होगी उन पर जो जीएसटी लगेगी वो केंद्र लगाएगा और उसे CGST कहा जाएगा. इसी तरह जो जीएसटी राज्य वसूलेंगे उसे SGST कहा जाएगा.
जीएसटी समझना कुछ जटिल है. मान लीजिए मध्यप्रदेश में कोई होलसेल डीलर 100 रुपए के काजू राज्य के अंदर ही सप्लाई करता है तो उसे 5 रुपए सेंट्रल जीएसटी और 5 रुपए स्टेट जीएसटी भरना होगा. दोनों के अलग-अलग खाते में जीएसटी भरी जाएगी. हालांकि ये जरूरी नहीं कि उसे पूरे 10 रुपए जमा करने पड़ें, क्योंकि उसने खरीद के वक्त जो जीएसटी भरा है उसके एवज में छूट हासिल करेगा. लेकिन उसे ये पूरी प्रक्रिया पूरी करनी होगी.
मतलब खरीदार या विक्रेता को अगर पिछले टैक्स भुगतान के एवज में छूट चाहिए तो उसे हर इनवॉयस की एंट्री जीएसटी नेटवर्क में करनी होगी.
वादा था टैक्स सिस्टम और उसपर अमल करने के तरीका आसान बना देंगे. लेकिन हकीकत जान लीजिए एक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को अभी 13 रिटर्न फाइल करने पड़ते थे, उसे एक जुलाई से जीएसटी सिस्टम में 37 रिटर्न फाइल करने होंगे. यानी हर महीने तीन रिटर्न के अलावा एक सालाना रिटर्न . अगर कारोबार एक से ज्यादा राज्यों में फैला है तो रिटर्न की संख्या उतनी ही अधिक हो जाएगी. मिसाल के तौर पर अगर किसी का कारोबार तीन राज्यों में है तो उसे 111 रिटर्न भरने होंगे. यानी इंडस्ट्री का काम बढ़ेगा, अकाउंटेंट का काम बढ़ेगा और बैंकों का सिरदर्द बढ़ेगा.
ज्यादातर चार्टर्ड अकाउंटेंट का मानना है कि हर जीएसटी काउंसिल की बैठक में कुछ नए बदलाव हो जाते हैं, इसलिए पूरे सिस्टम को समझने के लिए और वक्त चाहिए.
बैंकों ने भी अभी तक खुलकर यह गारंटी नहीं ली है कि वो जीएसटी के लिए पूरी तरह तैयार हैं. खर्च बढ़ेगा ज्यादा अकाउंटेंट रखने होंगे.
मामला यहीं नहीं थमेगा, हर कारोबारी को अब अपना हिसाब-किताब दुरुस्त रखने के लिए अकाउंटेंट की सेवाएं लेनी होगी. अभी छोटे कारोबारी पार्टटाइम अकाउंटेंट रखते हैं जो महीने में दो-तीन बार आकर उनके खाते अपटुडेट करते हैं, लेकिन सिस्टम ऑनलाइन होने से उन्होंने रेगुलर अकाउंटेंट की जरूरत होगी. हां, इसका फायदा यह जरूर होगा कि देशभर में अकाउंटेंट की नौकरियों की भरमार होगी.
एक ही कैटेगरी में रेट अलग-अलग. इसके ढेरों उदाहरण हैं जहां एक सेक्टर में जीएसटी की दरें अलग-अलग कर दी गई हैं.
मिसाल के तौर पर ऑटो सेक्टर देखिए यहां गाड़ियों के वैरिएंट की तरह जीएसटी दरों में बहुत वैराइटी है. ऑटो सेक्टर में ही कारों पर इतने तरह की जीएसटी रेट हैं कि आप भूल ही जाओगे कि किसमें कितना टैक्स लगेगा.
सर्विस सेक्टर तो अभी भी कई मामलों में सफाई का इंतजार कर रहा है. उन्हें लगता है कि कई सर्विस पर अभी और स्पष्टता जरूरी है. कौन सी सर्विस किस रेट के तहत आएगी इसे लेकर थोड़ा कंफ्यूजन है.
जीएसटी की डेडलाइन एक जुलाई है लेकिन अभी ना तो अकाउंटेट इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं, ना ही बैंक और इंडस्ट्री. अभी तो सब के सब कंफ्यूजन दूर करने में ही जुटे हैं. हालांकि इंडस्ट्री और सरकार को भरोसा है कि जैसे-जैसे सिस्टम लागू होगा वैसे-वैसे जटिलताएं कम होती जाएंगी.
लेकिन ये सवाल तो उठता है कि जिस टैक्स सिस्टम को बनाने में हमने 13 साल ले लिए उसे जलेबी की तरह ऐसा जटिल बना दिया है कि कोई सिरा पकड़ में नहीं आ रहा है.
(अरुण पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)