Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Business Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019‘कैशलेस इंडिया’ की डगर मुश्किल, अभी तो अमेरिका भी मंजिल से दूर है

‘कैशलेस इंडिया’ की डगर मुश्किल, अभी तो अमेरिका भी मंजिल से दूर है

अमेरिका जैसा देश अभी भी पूरी तरह से कैशलेस नहीं हो पाया है, तो भारत को कैशलेस बनाने का सपना कब तक सच होगा?

द क्विंट
बिजनेस
Published:


कैशलेस इंडिया बनना इतना आसान नहीं (फोटो: iStock)
i
कैशलेस इंडिया बनना इतना आसान नहीं (फोटो: iStock)
null

advertisement

पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के फैसले के बीच कैशलेस इकोनॉमी बनाने की बात कहकर एक नई बहस को जन्म दिया है. यह बहस इस बात को लेकर है कि क्या भारत अभी कैशलेस अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है या फिर मोदी सरकार ने आगामी चुनावों के मद्देनजर एक नया शिगूफा छेड़ दिया है.

अमेरिका जैसा देश अभी भी पूरी तरह से कैशलेस नहीं हो पाया है, तो ऐसे में भारत को पूरी तरह कैशलेस बनाने की कोशिश कितनी और कब तक कामयाब होगी?

एक सवाल यह भी है कि क्या यह हमारे देश के सामाजिक और आर्थिक ढांचे के अनुरूप फिट बैठेगा? विशेषज्ञ मानते हैं कि अभी देश को कैशलेस बनने में कम से कम 10 से 15 साल लग जाएंगे.

इन अनसुलझे सवालों का जवाब देते हुए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव प्रोफेसर शार्दूल चौबे का कहना है, "भारत बहुत बड़ा देश है और यहां असमानताएं बहुत ज्यादा हैं. इसके लिए डिजिटल बुनियादी ढांचा होना बहुत जरूरी है."

हम अभी 3जी, 4जी पर ही अटके हुए हैं, देश का एक बड़ा वर्ग गांवों में बसता है. नोटबंदी का फैसला ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नजरअंदाज कर लिया गया है, डिजिटल अज्ञानता के बारे में तो सोचा ही नहीं गया है. देश के डिजिटल बनने में अभी कम से कम 10 से 15 साल लग सकते हैं.
शार्दूल चौबे, सहायक कुलसचिव प्रोफेसर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
सरकार ने नोटबंदी का फैसला हड़बड़ी में उठाया है. देश के बुनियादी ढांचे और सामाजिक संरचना को समझे बिना फैसले लिए जा रहे हैं, जिसकी गाज आम आदमी पर गिर रही है.
प्रदीप सुरेका, बाजार विश्लेषक

क्या लोगों को पहले शिक्षित करना जरुरी नहीं है?

देश की 125 करोड़ की आबादी में से अधिकतर लोग गरीब और अशिक्षित हैं, जिनके लिए कैशलेस लेनदेन की बात बेमानी है. उन्हें कैशलेस की आदत डालने से पहले शिक्षित करना पड़ेगा जो अपने आप में एक बड़ा काम है.

कैशलेस की आदत डालने से पहले शिक्षित होना जरूरी है (फोटो: iStock)

देश की एक बड़ी आबादी को शिक्षित करने के बाद समस्या यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि देश के कई क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं, वहां नकदी रहित लेनदेन सोचना बेमानी होगा.

देश के जिस एक तबके को स्मार्टफोन चलाना तक नहीं आता, उनके लिए ई-बैंकिंग की डगर बहुत कठिन है. देश के 70 करोड़ लोगों के पास ही बैंक खाता है. इनमें से 24 करोड़ खाते पिछले एक साल में जनधन योजना के तहत खुले हैं और वे इसे लेकर कितने सजग है, यह भी सोचने वाली बात है.
नितिन पंत, अर्थशास्त्री

नोटबंदी का फैसला जल्दबाजी में हुआ

बाजार विश्लेषक प्रदीप सुरेका ने कहा, “सरकार ने नोटबंदी के बाद कैशलेस इंडिया बनाने का फैसला जल्दबाजी में लिया है. ग्रामीण क्षेत्रों को कैशलेस बनाने की बात तो दूर शहरों में भी यह बहुत मुश्किल होता दिख रहा है. सरकार की सोच बेशक अच्छी हो सकती है, लेकिन बिना तैयारी के जल्दबाजी में फैसला लेकर लोगों को फंसा दिया है.”

मोदी ने हाल ही में देश को कतार मुक्त बनाने की बात कही थी, लेकिन पिछले लगभग एक महीने से पूरा देश कतार में खड़ा है. कंपनियों की कमाई घट गई है, लोगों की नौकरियां छिन रही हैं, बाजार ठप पड़े हैं या घाटे में चल रहे हैं.

सिर्फ 35 फीसदी आबादी तक इंटरनेट की पहुंच

हमारे देश में 75 फीसदी आर्थिक लेन-देन नकदी में होता है. अमेरिका, फ्रांस, जापान और जर्मनी में यह आंकड़ा 20 से 25 फीसदी है. देश में लगभग दो लाख एटीएम हैं और अधिकांश भारतीय डेबिट कार्ड का इस्तेमाल केवल एटीएम से पैसा निकालने के लिए करते हैं.

ज्‍यादातर लोग डेबिट कार्ड का इस्तेमाल केवल एटीएम से पैसा निकालने के लिए करते हैं. (फोटो: iStock)

इंटरनेट की पहुंच भी फिलहाल 34.8 फीसदी आबादी तक ही है. ऐसे में सरकार लोगों को कैशलेस बनने के लिए किस तरह तैयार करेगी.

यह भी पढ़े- नोटों के बिना परेशान हैं, तो अपनाएं कैशलेस पेमेंट के बेहतर तरीके

सुरेका कहते हैं, “हमारे देश में कमी यह है कि यहां नियम बना दिए जाते हैं, लेकिन उससे पहले तैयारी नहीं की जाती. कैशलेस इंडिया के लिए सबसे पहले देश के बुनियादी ढांचे को उसके अनुरूप तैयार करना चाहिए था, लेकिन पता नहीं सरकार को किस बात की जल्दी थी.”

फिलहाल, देश की साक्षरता दर 74.04 फीसदी है. प्लास्टिक मनी और ऑनलाइन लेनदेन के लिए शिक्षित होना अनिवार्य है. अशिक्षा की स्थिति में धोखाधड़ी की आशंका रहती है और डिजिटल में हैकिंग भी एक बड़ा मुद्दा है.

स्रोत: IANS

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT