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पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के फैसले के बीच कैशलेस इकोनॉमी बनाने की बात कहकर एक नई बहस को जन्म दिया है. यह बहस इस बात को लेकर है कि क्या भारत अभी कैशलेस अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है या फिर मोदी सरकार ने आगामी चुनावों के मद्देनजर एक नया शिगूफा छेड़ दिया है.
अमेरिका जैसा देश अभी भी पूरी तरह से कैशलेस नहीं हो पाया है, तो ऐसे में भारत को पूरी तरह कैशलेस बनाने की कोशिश कितनी और कब तक कामयाब होगी?
इन अनसुलझे सवालों का जवाब देते हुए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव प्रोफेसर शार्दूल चौबे का कहना है, "भारत बहुत बड़ा देश है और यहां असमानताएं बहुत ज्यादा हैं. इसके लिए डिजिटल बुनियादी ढांचा होना बहुत जरूरी है."
देश की 125 करोड़ की आबादी में से अधिकतर लोग गरीब और अशिक्षित हैं, जिनके लिए कैशलेस लेनदेन की बात बेमानी है. उन्हें कैशलेस की आदत डालने से पहले शिक्षित करना पड़ेगा जो अपने आप में एक बड़ा काम है.
देश की एक बड़ी आबादी को शिक्षित करने के बाद समस्या यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि देश के कई क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं, वहां नकदी रहित लेनदेन सोचना बेमानी होगा.
बाजार विश्लेषक प्रदीप सुरेका ने कहा, “सरकार ने नोटबंदी के बाद कैशलेस इंडिया बनाने का फैसला जल्दबाजी में लिया है. ग्रामीण क्षेत्रों को कैशलेस बनाने की बात तो दूर शहरों में भी यह बहुत मुश्किल होता दिख रहा है. सरकार की सोच बेशक अच्छी हो सकती है, लेकिन बिना तैयारी के जल्दबाजी में फैसला लेकर लोगों को फंसा दिया है.”
हमारे देश में 75 फीसदी आर्थिक लेन-देन नकदी में होता है. अमेरिका, फ्रांस, जापान और जर्मनी में यह आंकड़ा 20 से 25 फीसदी है. देश में लगभग दो लाख एटीएम हैं और अधिकांश भारतीय डेबिट कार्ड का इस्तेमाल केवल एटीएम से पैसा निकालने के लिए करते हैं.
इंटरनेट की पहुंच भी फिलहाल 34.8 फीसदी आबादी तक ही है. ऐसे में सरकार लोगों को कैशलेस बनने के लिए किस तरह तैयार करेगी.
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सुरेका कहते हैं, “हमारे देश में कमी यह है कि यहां नियम बना दिए जाते हैं, लेकिन उससे पहले तैयारी नहीं की जाती. कैशलेस इंडिया के लिए सबसे पहले देश के बुनियादी ढांचे को उसके अनुरूप तैयार करना चाहिए था, लेकिन पता नहीं सरकार को किस बात की जल्दी थी.”
फिलहाल, देश की साक्षरता दर 74.04 फीसदी है. प्लास्टिक मनी और ऑनलाइन लेनदेन के लिए शिक्षित होना अनिवार्य है. अशिक्षा की स्थिति में धोखाधड़ी की आशंका रहती है और डिजिटल में हैकिंग भी एक बड़ा मुद्दा है.
स्रोत: IANS
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