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किसान (Farmer) फसल बीमा (Crop Insurance) लेना चाहते हैं या नहीं उनके इस फैसले को खेती में हो रहे संभावित नुकसान की आशंका, नियमित खर्च के लिए पैसों की कमी जैसे कारण प्रभावित करते हैं.
हमारे विश्लेषण बताते हैं कि, बीमा के प्रीमियम किसानों को बीमा लेने की इच्छा पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं. इससे यह पता चलता है कि बीमा भी अन्य चीजों की तरह ही है अगर इसकी कीमत बढ़ाई जाएगी तो इसकी मांग में कमी आएगी.
बीमा कंपनियों को अपनी पॉलिसी इस तरह बनानी चाहिए जो एकदम उनके ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से हो. अब अगर फसल बीमा की बात करें तो जोखिम उठाने वाले किसान और जोखिम ना उठाने वाले किसानों के लिए अलग अलग पॉलिसी तैयार की जानी चाहिए. ताकी फसल बीमा उन किसानों तक भी पहुंच सकें जो किसान बीमा से दूरी बनाते हैं.
किसानों के साथ बीमा कंपनियों को कुछ वर्कशॉप करनी चाहिए ताकी उन्हें बताया जा सके कि फसल बीमा योजना काम कैसे करती है. इससे जागरूकता बढ़ेगी, किसानों की फसल बीमा को लेकर सवाल और चिंताएं दूर होंगी और उनकी फसल बीमा तक पहुंच बढ़ेगी. उन्हें बताया जाना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन से बर्बाद हो रही फसल और आय में हो रहे घाटे को बीमा से संभाला जा सकता है. छोटे किसानों की बीमा से अलग अपेक्षाएं होती हैं, उनसे भी बात होनी चाहिए और उस तरह पॉलिसी को डिजाइन किया जाना चाहिए.
फसल बीमा तक किसानों की पहुंच बनाने के लिए बीमा प्रीमियम का निर्धारण करना जरूरी है. जो किसान फसल के समय प्रीमियम का भुगतान करते हैं उन्हें बीमा प्रीमियम में छूट मिलना भी जरूरी है, यह बात उन्हें फसल बीमा अपनाने को प्रोत्साहित करेगी. वहीं अनिश्चित भविष्य के बदले किसानों को विशिष्ट बीमा प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है और यह भी एक वजह है कि किसान फसल बीमा से दूरी बनाते हैं.
फसल बीमा में अब तक हो ये रहा है कि किसानों को बुवाई के समय ही प्रीमियम भरने को कहा जाता है और अगर भविष्य मे नुकसान होता है तो उसका क्लेम मिल जाता है, लेकिन हमारा मानना है कि इसकी जगह पॉलिसी में थोड़ी छूट दे और बुवाई की जगह फसल के समय में किसानों से प्रीमियम वसूले तो जरूर ही कई किसान फसल बीमा लेना चाहेंगे.
वास्तव में, किसान की उपज से अपेक्षा काफी अधिक होती है लेकिन जो उपज उन्हें मिलती है वो उनकी अपेक्षा से कम होती है. अब वे ये मान कर ही चलते हैं कि जब उनकी फसल अधिक होने वाली है तो वे बीमा क्यों लें. इस वजह से फसल बीमा की मांग में कमी आती है.
कई किसानों में ये पाया गया है कि वह उस जानकारी पर ज्यादा विश्वास रखते हैं जो जानकारी उनके हाथ में हैं या उनके दिमाग में पहले आई हो. यह मानसिकता भी फसल बीमा की मांग को प्रभावित करती है.
फसल बीमा को लेकर किसानों की सोच अलग है, वे फसल बीमा को एक प्रोडक्ट की तरह लेते हैं और मानते हैं कि यह काम आएगा ही आएगा. अब जैसे वे फसल के पहले ही प्रीमियम देते हैं तो वे ये नहीं समझ पाते कि अब जो प्रीमियम भरा गया है उसका आखिरकार होने क्या वाला है, वो कुछ काम आएगा या नहीं.
एक वजह यह भी है कि, फसल बीमा की इस प्रक्रिया में कई लोग मौजूद होते हैं यानी कई लोगों की भूमिका होती है और इस वजह से बीमा का पैसा देने में कई परेशानियां आती हैं. इसमें बीमा कंपनी के अधिकारी, तहसील कार्यालय और कृषि विभाग शामिल होता है. इस वजह से किसानों का काफी समय खर्च होता जाता है.
(यह लेख एक बिजनेस मैनेजमेंट कंसल्टेंट फर्म टेराग्नि कंसल्टेंट के निदेशक डॉ अनिल पिल्लई ने लिखा है और यह एक ओपिनियन पीस है. यहां लिखे विचार उनके अपने है. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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