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भारत में रिटायरमेंट प्लानिंग को लेकर लोगों में कुछ खास उत्साह नजर नहीं आता. ट्रेडिशनल तौर पर भी बूढ़े मां-बाप बच्चों पर ही निर्भर होते हैं.
लेकिन बदलते समय में सरकार पेंशन योजनाओं के जरिए इस दिशा में तेजी लाने की कोशिश कर रही है. फिर भी आंकड़े पेंशन स्कीम्स के रिजल्ट को लेकर कुछ अच्छी तस्वीर पेश नहीं कर रहे हैं.
2031 के बाद भारत के अलग-अलग पॉपुलेशन ग्रुप में सबसे तेजी से '65 साल की उम्र से ज्यादा' के लोगों की संख्या बढ़ेगी.
लेकिन अभी तक केवल इस आबादी के 23% लोग ही रिटायरमेंट की प्लानिंग कर रहे हैं. इस बात का खुलासा रिजर्व बैंक द्वारा तरुण रामादोराई की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट में हुआ.
फिलहाल गांवो में 60 साल की उम्र से ज्यादा के 82 फीसदी लोग आर्थिक मदद के लिए अपने बच्चों पर निर्भर हैं. वहीं शहरी क्षेत्रों में 80 फीसदी लोग अपने बच्चों पर आश्रित हैं. ये आंकड़े NSSO के हवाले से हैं.
2010 में लागू नेशनल पेंशन स्कीम की हालत काफी बुरी है. करीब 50 फीसदी कस्टमर इसके लिए जरूरी 1000 रूपये से ज्यादा का प्रीमियम नहीं भर पाए. हांलाकि वो छोटा-छोटा प्रीमियम भरते रहे.
2016 में केवल 60 फीसदी इंश्योरेंस पॉलिसी का ही प्रीमियम भरा गया. पांचवे साल तक आते-आते तो इनकी स्थिति और भी खराब हो जाती है. 2016 में पांचवे साल वाली इंश्योरेंस पॉलिसी में से पहले साल की तुलना में केवल 29 फीसदी का प्रीमियम भरा गया.
भारतीय लोग अभी भी जमीन और सोने में अपनी सेविंग्स इंवेस्ट करना पसंद करते हैं.
इस लिस्ट में देखें किस तरह भारतीय अपनी सेविंग्स इंवेस्ट करते हैं:
केवल 5 फीसदी भारतीय ही ऐसे हैं, जो अपनी सेविंग्स का 10% या उससे ज्यादा फायनेंशियल एसेट्स (इंश्योरेंस, शेयर्स) में इंवेस्ट करते हैं.
स्टोरी के इनपुट्स इंडिया स्पेंड के विपुल विवेक के आर्टिकल से लिए गए हैं.
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