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पेट्रोल की बढ़ती कीमत पर तब दिखाते थे दर्द, अब क्यों हैं चुप?

खाने के तेल, दालें, आटा, चावल से लेकर साबुन, शेम्पू तक के भाव आसमान छू रहे हैं

वैभव पलनीटकर
बिजनेस
Updated:
<div class="paragraphs"><p>प्रतीकात्मक तस्वीर</p></div>
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प्रतीकात्मक तस्वीर

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर- मोहम्मद इरशाद

कोरोना वायरस संकट का असर भारत में मार्च 2020 से बढ़ा और तब से लेकर अब तक करीब डेढ़ साल से हम महामारी का सामना कर रहे हैं. कोरोना प्रतिबंधों की वजह से काम-काज, रोजी-रोटी पर संकट पड़ा है. लेकिन इसी वक्त में महंगाई भी तेजी से बढ़ी है. सरकार के बजट पेश करने के बाद मंहगाई बढ़ने के कयास और ज्यादा लगाए जाने लगे. पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने के तेल, दालें, अनाज तक महंगा हुआ है. करीब 67-70 रुपये प्रति लीटर बिकने वाला पेट्रोल अब करीब 95-105 रुपये प्रतिलीटर बिक रहा है. खाने के तेल में अलग आग लगी हुई है, भाव करीब 50-60% बढ़ गए हैं.

महंगे पेट्रोल-डीजल की मार

पेट्रोल डीजल जब जलता है तभी इकनॉमी का पहिया घूमता है. आम रिक्शा चलाने वाला हो, या मर्सिडीज चलाने वाला हो. अगर पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ेंगे तो आम से लेकर खास तक सभी की जेब कटेगी. साथ ही पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन महंगा हो जाता है और हर उत्पाद और सेवा के दाम बढ़ने शुरू हो जाते हैं. इससे इकनॉमी महंगाई के दुष्चक्र में फंसती है.

महंगाई ज्यादा होगी तो लोगों की बचत कम होगी. बचत कम होगी. लोग बैंक में डिपॉजिट कम करेंगे. इससे कर्ज महंगा होगा. उद्योगों का कर्ज महंगा मिलेगा तो उनकी लागत बढ़ेगी. लागत बढ़ेगी तो वो अपने उत्पाद या सेवा का मूल्य बढ़ाएंगे और इस तरह फिर महंगाई बढ़ेगी. ये चक्र बढ़ता जाता है. इस चक्र में जब इकनॉमी फंसती है तो इसका सबसे ज्यादा असर गरीब और मिडिल क्लास तबके पर पड़ता है. दूसरी तरफ बड़ी इंडस्ट्रियों, व्यापारियों का महंगाई में मुनाफा बढ़ते देखा गया है.

एक साल में खाने के तेल हुए 50% तक महंगे

आम-आदमी के राशन में सबसे अहम और महंगी चीज होती है- खाने का तेल. अगर खाने का तेल महंगा होता है तो आम आदमी के किराने के सामान का भी बजट गड़बड़ा जाता है. एक साल के अंदर-अंदर पाम ऑयल, सरसों, सोयाबीन, सनफ्लावर, मूंगफली सभी तक के तेलों के दाम करीब 60% तक बढ़े हैं. इसके पीछे कई सारे विदेशी कारण हैं. लेकिन दुनिया में खाद्य तेलों के दाम जितने ज्यादा बढ़े हैं, तुलनात्मक रूप से भारत में ज्यादा भाव बढ़े हैं.

2020 और 2021 के भाव की तुलना

  • पेट्रोल- 66-72 95-100

  • डीजल- 65-70 80-90

  • सरसों का तेल- 110-120 185-200

  • रिफाइंड तेल- 90-100 150-165

  • अरहर दाल- 110 140

  • मूंग दाल- 110 135

  • चना- 75 100

  • उड़द - 120 140

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दूसरे ग्रोसरी आइटम के भी भाव आसमान पर

बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक खाने के तेल, दालें, आटा, चावल के भाव के अलावा दूसरे प्रोडक्ट्स के दाम भी बढ़े हैं. साबुन के दाम करीब 15% बढ़े, डिटर्जेंट के दाम 10% बढ़े, चावल 7%बढ़े और चीनी के दाम 5% किलो बढ़े. कच्चे माल के दामों में इजाफे के साथ ही पैकेज्ड फूड और तैयार खाने के दाम भी तेजी से बढ़े हैं. कोरोना संकट में दवाओं और मेडिकल सेवाओं के दाम आसमान पर पहुंचे.

महंगाई पर मोदी सरकार का प्रदर्शन

मोदी सरकार को शुरुआती 3 साल में गिरते क्रूड भाव का जबरदस्त फायदा मिला. 2014 में क्रूड 110 डॉलर/बैरल, वहीं 2017 में क्रूड बेतहाशा घटकर 50 डॉलर/बैरल हो गया. इसी वजह से सरकार ने एडिश्नल टैक्स और भारत में पेट्रोल डीजल के भाव तुलनात्मक रूप से कम घटे. लेकिन सरकार को टैक्स लेने की आदत हो गई. लेकिन जब ग्लोबल मार्केट में क्रूड के दाम बढ़े तो सरकार को अब ज्यादा टैक्स वसूलने की आदत हो चुकी है.

RBI ने अपनी 2020-21 रिपोर्ट में कहा कि-

'बढ़ती महंगाई बड़ी चिंता का विषय है. इसके कारण हम ग्रोथ के लिए गुंजाइश के बावजूद उपाय नहीं कर पा रहे.''
RBI

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मई, 2012 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो तब वो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की महंगाई पर जमकर आलोचना करते थे. लेकिन आज मोदी सरकार महंगाई के सामने पस्त दिख रही है.

पेट्रोल-डीजल का भाव बढ़ने का ही असर है कि 2019 की आखिरी तिमाही से रिटेल महंगाई बढ़ने लगी. कोविड की वजह गिरती मांग भी महंगाई को रोक ना सकी. अब इकनॉमी में महंगाई चिंता की सबसे बड़ी वजह है.

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Published: 12 Jun 2021,02:29 PM IST

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