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BS-IV क्यों जरूरी है, इससे प्रदूषण पर कितना पड़ेगा असर?

बीएस का मतलब है भारत स्टेज और ये एमिशन नॉर्म्स हैं, यानी गाड़ियों से होने वाले उत्सर्जन के मानक.

क्‍व‍िंट कंज्यूमर डेस्‍क
बिजनेस
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(फोटो: IANS)
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पिछले कुछ दिनों में आपने बीएस-3 और बीएस-4 की चर्चा खूब सुनी होगी. आपके दिमाग में भी ये सवाल आ रहे होंगे कि आखिर बीएस-4 है क्या और क्यों ये बीएस-3 से बेहतर है. सुप्रीम कोर्ट ने बीएस-3 गाड़ियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर बीएस-4 मॉडल ही बेचे जाने का आदेश क्यों दिया है?

पहले समझें कि बीएस का मतलब है भारत स्टेज और ये एमिशन नॉर्म्स हैं, यानी गाड़ियों से होने वाले उत्सर्जन के मानक. बीएस के आगे जो संख्या है- 2, 3 या 4- उसके बढ़ते जाने का मतलब है उत्सर्जन के बेहतर मानक जो पर्यावरण के अनुकूल हैं. जैसे भारत में गाड़ियों के प्रदूषण को मापने के लिए बीएस स्टैंडर्ड हैं, वैसे ही अमेरिका में टीयर और यूरोपीय देशों में यूरो स्टैंडर्ड हैं.

कौन तय करता है मानक?

बीएस मानक देश का सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड- सीपीसीबी तय करता है और देश में चलने वाली हर गाड़ी के लिए इन मानकों पर खरा उतरना जरूरी है. इसके जरिए ही गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रण में रखा जाता है. बीएस के आगे जितना बड़ा नंबर है, उस गाड़ी से होने वाला प्रदूषण उतना ही कम है.

भारत में शुरुआत बीएस-2 इंजन से हुई थी, जो अब बढ़कर बीएस-4 हो गई है. यानी आप मान सकते हैं कि देश में पिछले सालों के मुकाबले प्रति वाहन प्रदूषण घटा है और अब सरकार ने तय किया है कि बीएस-4 के बाद सीधे बीएस-6 स्टैंडर्ड लागू किया जाएगा. यानी गाड़ियों के इंजन की क्वालिटी और बेहतर होगी और प्रदूषण नाममात्र का. हालांकि ये स्टैंडर्ड अप्रैल 2020 तक ही लागू किए जाएंगे. तब तक देश की ऑटोमोबाइल कंपनियों को वक्त दिया जाएगा कि वो नए स्टैंडर्ड को अपनाने के लिए पूरी तैयारी कर लें.

BS IV के क्या हैं फायदे?

बड़ा फायदा तो यही है कि प्रदूषण का स्तर नियंत्रित रहेगा जिससे सांस लेने के लिए साफ हवा मिल सकेगी. दरअसल, हम जो भी गाड़ियां चलाते हैं, उनके इंजन से निकलने वाला धुआं मोटे तौर पर चार तरह के प्रदूषक फैलाता है। कार्बन मोनोक्साइड (CO), हाइड्रोकार्बन (HC), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) और पार्टिकुलेट मैटर (PM). पेट्रोल इंजन कार्बन मोनोक्साइड और हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन ज्यादा करते हैं, और डीजल इंजन नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर्स का. बीएस-3 मानक के मुकाबले बीएस-4 मानक वाले इंजन इस उत्सर्जन में भारी कमी लाएंगे.

(देखें ग्राफिक्स)

आंकड़ों से साफ है कि बीएस-4 इंजन से चलने वाली गाड़ियां बीएस-3 के मुकाबले आधे से भी कम प्रदूषण करेंगी. निश्चित तौर पर इसका असर हमें आने वाले दिनों में दिखेगा. भारत के कई शहरों में वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है और ऐसे में गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने की सख्त जरूरत थी.

देश में जितनी तेजी से गाड़ियों की बिक्री बढ़ी है, उसी तेजी से शहरी इलाकों में प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा है. ऐसे में, अगर बेहतर स्टैंडर्ड वाली गाड़ियां चलेंगी तो प्रदूषण को एक सीमा से ज्यादा बढ़ने से रोका जा सकेगा. वैसे, चीन समेत कई देश प्रदूषण से इस लड़ाई में हमसे एक कदम आगे हैं, और उन्होंने यूरो-5 स्टैंडर्ड अपने यहां लागू कर दिए हैं. यही वजह है कि भारत सरकार ने बीएस-5 को छोड़ते हुए अप्रैल 2020 तक सीधे बीएस-6 स्टैंडर्ड लागू करने का फैसला किया, ताकि प्रदूषण से लड़ाई में हम पीछे ना छूट जाएं.

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