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मंदी है आखिर मान ही लिया, नीति आयोग के VC बोले- संकट अभूतपूर्व 

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन अर्थशास्त्री डॉ. राजीव कुमार बोले सरकार को लीक से हटकर कुछ कदम उठाने होंगे.

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नीति आयोग के वाइस चेयरमैन अर्थशास्त्री डॉ. राजीव कुमार
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नीति आयोग के वाइस चेयरमैन अर्थशास्त्री डॉ. राजीव कुमार
(Photo Courtesy: http://eastwind.es)

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नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने नकदी की कमी, आर्थिक क्षेत्र में सुस्ती और अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता जताई है. उन्होंने दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि प्राइवेट सेक्टर में निवेश में कमी हो रही है, पूरी फाइनेंशियल सिस्टम जोखिम में है. सरकार 'अभूतपूर्व समस्या' का सामना कर रही है.

राजीव कुमार का कहना है,

“अगर सरकार वित्तीय क्षेत्र में समस्या को पहचानती है, तो सरकार को लीक से हटकर कुछ कदम उठाने होंगे. पिछले 70 सालों में किसी ने ऐसी परिस्थिति नहीं देखी जहां सारा वित्तीय क्षेत्र उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है और प्राइवेट सेक्टर में कोई भी दूसरे पर भरोसा नहीं कर रहा है.”

राजीव कुमार ने यह बयान ऐसे समय में दिया है जब मुख्य आर्थिक सलाहकार के. सुब्रमण्यम से लेकर खुद आरबीआई के गवर्नर शक्ति कान्त दास ने भी आर्थिक मंदी की ओर इशारा किया है. राजीव कुमार ने कहा,

“यह भारत सरकार के लिए एक अभूतपूर्व मुद्दा है. पिछले 70 सालों से, हमने इस तरह की नकदी की कमी की स्थिति का सामना नहीं किया है. आपको ऐसे कदम उठाने पड़ सकते हैं जो सामान्य से बाहर हों. मुझे लगता है कि सरकार को प्राइवेट सेक्टर की कुछ आशंकाओं को दूर करने के लिए जो बन सके करना चाहिए.”

राजीव कुमार यहीं नहीं रुके. उन्होंने बाजार में विश्वास की कमी की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह केवल सरकार और निजी क्षेत्र के बीच विश्वास के बारे में नहीं है, लेकिन "निजी क्षेत्र के भीतर, कोई भी किसी और को उधार नहीं देना चाहता है. हर कोई नकदी पर बैठा है, लेकिन वे आगे नहीं बढ़ेंगे."

कैश की कमी, नोटबंदी, जीएसटी के बाद बदले हालात

राजीव कुमार के मुताबिक नोटबंदी, जीएसटी और आईबीसी (दीवालिया कानून) के बाद हालात बदल गए हैं. पहले करीब 35 फीसदी कैश मौजूद होती थी, वो अब काफी कम हो गया है. इन सभी वजहों से स्थिति काफी जटिल हो गई है.

‘2009 से लेकर 2014 की गलती का नतीजा’

अर्थव्यवस्था में सुस्‍ती को लेकर राजीव कुमार ने कहा कि यह 2009-14 के दौरान बिना सोचे-समझे दिये गये कर्ज का नतीजा है. इससे 2014 के बाद नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) बढ़ी है. इस वजह से बैंकों की नया कर्ज देने की क्षमता कम हुई है.

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Published: 23 Aug 2019,10:55 AM IST

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