Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Business Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019ये 5 खामियां दूर हों, तो 25,000 करोड़ टैक्स रेवेन्यू बढ़ सकता है

ये 5 खामियां दूर हों, तो 25,000 करोड़ टैक्स रेवेन्यू बढ़ सकता है

नियमों पर ईमानदारी से अमल की जरूरत है. अगर ऐसा हो जाए तो सरकार के खजाने में टैक्स के तौर पर होगी करोड़ों की बारिश.

नीलेश शाह
बिजनेस
Updated:


(फोटो: iStock/द क्विंट)
i
(फोटो: iStock/द क्विंट)
null

advertisement

सदियों पहले चाणक्य ने कहा था कि टैक्स की वसूली ठीक उसी तरह होनी चाहिए, जैसे मधुमक्खी फूलों से शहद निकालती है. प्रधानमंत्री का यह कहना एकदम वाजिब है कि लोगों को टैक्स में अपनी हिस्सेदारी देनी चाहिए.

भारत एक ऐसा देश है, जहां हर साल 39 लाख लोग थ्री व्हीलर या फोर व्हीलर खरीदते हैं. लेकिन सिर्फ 4 लाख लोग ऐसे हैं, जो 5 लाख से ज्यादा इनकम टैक्स देते हैं. ऐसे में पीएम का यह कहना सही है कि टैक्स देने में देश की जनता की संतुलित भागीदारी होनी चाहिए.

शेयर बाजार में डब्बा ट्रेडिंग और ग्रे मार्केट को हटा दें, तो सभी ट्रांजेक्शन पारदर्शी होते हैं, क्योंकि सारे पेमेंट या तो चेक से या फिर डिजिटल होते हैं. अब प्रधानमंत्री को यहां आय बढ़ाने के लिए चाणक्य का फॉर्मूला अपनाना चाहिए, ताकि लोग टैक्स में अपनी वाजिब हिस्सेदारी दें. लेकिन धमकाकर टैक्स वसूली या नया टैक्स थोपने का तरीका अपनाएंगे, तो संतुलित टैक्स भागीदारी का मकसद फेल हो जाएगा.

शेयर मार्केट: टैक्स वसूली में खामियां

(फोटो: iStock)

लंबे वक्त तक पूरी टैक्स व्यवस्था टूरिस्ट अथॉरिटी की तरह काम कर रही थी. सालों-साल इन्होंने 'अतिथि देवो भव' यानी 'मेहमान भगवान है', का तरीका अपनाया, जिसमें विदेशी निवेशकों की तो भगवान जैसी आवभगत होती थी, पर घरेलू निवेशकों के हिस्से में दुत्कार आई.

विदेशी और घरेलू निवेशकों के बीच भेदभाव

FII यानी विदेशी संस्थागत निवेशकों और NRI को टैक्स की दरें बरसों से कम थीं. इससे पहुंच वाले लोग P नोट्स और विदेशी प्राइवेट बैंकरों की मदद से राउंड ट्रिपिंग करते रहे. उधर भरोसा नहीं होने की वजह से रिटेल निवेशकों के न होने से FII को शेयरों जुटाने का खुला मैदान मिल गया.

25% हिस्से के मालिक हैं FII

हालत ये हुई कि 22 सालों में FII ने लिस्टेड कंपनियों में 25% हिस्सेदारी कर ली है. गनीमत है कुछ वक्त पहले सरकार को भेदभाव का अहसास हुआ कि विदेशी निवेशक और घरेलू निवेशकों के साथ एक जैसा सुलूक होना चाहिए, क्योंकि पैसे का रंग देसी विदेशी सबके लिए एक है. रेगुलेटरी अथॉरिटीज से बार बार अनुरोध के बाद आखिरकार घरेलू निवेशकों को भी लेवल प्लेइंग फील्ड मिला. इसलिए उम्मीद यही की जानी चाहिए कि यह कायम रहेगा.

टैक्स वसूली बेहतर करना कोई रॉकेट साइंस नहीं है. बस सरकार को चाणक्य नीति की तरह न्यायपूर्ण तरीका अपनाना चाहिए. टैक्स बचाने के सभी लीकेज और लूपहोल बंद हो जाएं, तो अपने आप वसूली बढ़ जाएगी.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

शेयर मार्केट में टैक्स बचाने के 5 लूप होल

(फोटो: iStock)

लूपहोल नंबर 1

इससे सालाना करीब 10,000-15,000 करोड़ रुपये के टैक्स का नुकसान होता है. इसके लिए टैक्स नियमों में खामियों का सहारा लिया जाता है. होता ये है कि बोनस शेयर हासिल करने में जीरो लागत के नियम से शॉर्ट टर्म कैपिटल में नुकसान का दावा करके उस हिस्से का टैक्स देने से बचा लिया जाता है.

लूपहोल नंबर 2

टैक्स बचाने के लिए नियमों में इस खामी का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है. इसमें लोग ब्याज से कमाई को लिस्टेड जीरो कूपन डिबेंचर के जरिए कैपिटल गेंस के दायरे में लाकर टैक्स छूट का फायदा ले लेते हैं. इससे सरकार को सालाना करीब 3000 करोड़ का नुकसान होता है. इसका तरीका बहुत आसान है बहुत से FII कैपिटल गेंस का फायदा उठाने के लिए कूपन तारीख से पहले अपने बॉन्ड्स बेच देते हैं और इस तरह टैक्स देने से बच जाते हैं. कानून एकदम साफ है कि ब्याज पर हर हालत में टैक्स लगेगा.

लूपहोल नंबर 3

देश में एक पूरा सिस्टम है, जिसके जरिए कम वॉल्यूम वाले स्मॉल कैप गैर लिक्विड शेयरों के जरिए कालेधन को सफेद किया जाता है. इसका तरीका भी कोई मुश्किल नहीं है. इसमें कम वॉल्यूम वाले स्मॉलकैप शेयरों को कम कीमत पर खरीदा जाता है और एक साल बाद कई गुना ऊंची कीमत पर बेच दिया जाता है. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस की वजह से इस कमाई पर टैक्स नहीं लगता. SEBI और इनकम टैक्स विभाग के हाल में इस तरह की गड़बड़ियां मिली हैं. सरकार को इस वजह से करोड़ों के टैक्स का नुकसान हो रहा है. स्टॉक एक्सचेंज, सेबी और इनकम टैक्स विभाग ऐसी गड़बड़ी पकड़ने के लिए अलर्ट रहें और फटाफट कार्रवाई करें, तो कोई भी इस तरह के काले कारनामे करने से डरेगा.

लूपहोल नंबर 4

कुछ समय पहले तक म्यूचुअल फंड और कॉरपोरेट के लिए डिविडेंड के जरिए टैक्स खूब होता था. लेकिन सेबी नियमों में चतुराई भरे बदलाव करके इनमें कमी लाने में सफल रहा है. लेकिन अब वक्त आ गया है कि म्यूचुअल फंड और कॉरपोरेट सेक्टर में सख्ती करके सभी लूपहोल को पूरी तरह रोका जाए.

लूपहोल नंबर 5

ये बड़ा अजीब नियम है, जिसमें अगर कोई गैर लिस्टेड आंत्रप्रेन्योर अपना कारोबार बेचता है, तो उसे टैक्स देना होता है. लेकिन अगर यही काम कोई लिस्टेड आंत्रप्रेन्योर करता है, तो वो टैक्स देने के लिए मजबूर नहीं है. इस खामी को भी फौरन दुरुस्त किया जाना चाहिए.

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स: फायदा उठा रहे हैं प्रोमोटर

(फोटो: iStock)

शेयर बाजार में रिटेल निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स से छूट दी गई थी. लेकिन रिटेल निवेशक फायदा नहीं उठा पाता. उल्टा इस छूट का फायदा उठाते हैं बड़े प्रोमोटर, जो पहले से ही करोड़ों कमा रहे हैं.

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस में छूट देने का मकसद लिस्टेड कंपनियों के ऐसे प्रोमोटरों को टैक्स छूट देना तो बिलकुल नहीं था, जो अपना धंधा बेचकर करोड़ों का मुनाफा बना रहे हैं. यहां भी कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है. कई प्रोमोटरों तो एक होल्डिंग कंपनी से दूसरी होल्डिंग कंपनी में अपनी हिस्सेदारी ट्रांसफर करके होल्डिंग की लागत बढ़ी हुई दिखाते हैं, फिर बाद में कैपिटल गेंस टैक्स छूट का फायदा लेकर करोड़ों रुपये का टैक्स बचा लेते हैं. टैक्स विभाग को इस तरह के लूपहोल बंद करने के ले फौरन कदम उठाने चाहिए.

टैक्स वसूली का सीधा फॉर्मूला है, सभी लोगों की टैक्स देने में उचित भागीदारी हो. किसी पर टैक्स का एकतरफा बोझ नहीं डाला जाना चाहिए. वरना मकसद ही फेल हो जाता है और टैक्स बचाने के शॉर्टकट तरीके अपनाए जाने लगते हैं. इसलिए चाणक्य के बताए गए रास्ते को अपनाना सबसे अच्छा तरीका है. सरकार लूपहोल का पता लगाए और उन्हें बंद करे, ताकि टैक्स का सही वितरण सुनिश्चित किया जाए.

(नीलेश शाह के लेख पर आधारित, जो कि कोटक एएमसी के मैनेजिंग डायरेक्‍टर हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 26 Dec 2016,06:35 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT