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कहते हैं कि कानून बनाना आसान है, उसे लागू करना मुश्किल. दूसरे कानूनों की बात अगर छोड़ भी दें तो कम से कम रियल एस्टेट रेगुलेटरी एक्ट यानी रेरा पर ये बात काफी हद तक सच साबित हुई है. 1 मई 2017 को पूरे देश में इस कानून को लागू हो जाना था ताकि होमबायर्स के हक की रक्षा हो सके और बिल्डरों की मनमानी पर लगाम लगे. लेकिन साल भर बाद भी आलम ये है कि देश के सभी राज्यों में ये कानून लागू तक नहीं हो पाया है, और जहां लागू हुआ भी है, वहां आधे-अधूरे ढंग से इसका पालन हो रहा है. महाराष्ट्र के अलावा शायद देश के किसी और राज्य में रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी गंभीरता से काम नहीं कर रही है. इसी कारण, कंज्यूमर के लिए पाथब्रेकिंग कहा जा रहा रेरा दरअसल बेचारा बनकर रह गया है.
अगर रेरा अपने मूल रूप में लागू हो और सख्ती से नियम-पालन किए जाएं तो किसी बिल्डर के लिए प्रॉपर्टी खरीदार को ठगना मुमकिन नहीं हो सकेगा. कुछ महत्वपूर्ण नियम इस प्रकार हैः-
जम्मू और कश्मीर को छोड़कर देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रेरा को लागू होना था. लेकिन साल भर बीतने के बाद भी 8 राज्यों में तो ये कानून नोटिफाई तक नहीं हो सका है. इन राज्यों में उत्तर-पूर्व के सात राज्य और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. लेकिन ये सोचना गलत होगा कि जिन राज्यों में रेरा नोटिफाई हो गया है, वहां प्रॉपर्टी कंज्यूमर के हाथ बेहद मजबूत हो गए हैं. इस कानून के तहत राज्य सरकारों को सबसे पहले एक रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी बनानी थी, लेकिन आलम ये है कि सभी राज्यों में अथॉरिटी तक नहीं बन सकी है.
जहां तक अपीलेट अथॉरिटी बनाने की बात है तो सिर्फ तीन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों- गुजरात, तमिलनाडु और अंडमान-निकोबार में स्थायी अपीलेट अथॉरिटी बनी है,जबकि 13 राज्यों में अंतरिम अपीलेट अथॉरिटी बनाई गई है.
हर राज्य की रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी का एक मुख्य काम है अपनी वेबसाइट बनाना, जहां पर रेरा में रजिस्टर्ड सारे प्रोजेक्ट्स की जानकारी मिल सके. उद्देश्य था कि अगर कोई रेरा में रजिस्टर्ड किसी प्रोजेक्ट, बिल्डर या प्रॉपर्टी एजेंट के बारे में जानकारी हासिल करना चाहता है तो वो जानकारी इस वेबसाइट पर मौजूद रहे.
लेकिन हकीकत ये है कि चार राज्यों- असम, छत्तीसगढ़, हरियाणा और ओडिशा और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के रियल एस्टेट रेगुलेटरों ने अपनी कोई वेबसाइट ही नहीं बनाई है. और जिन राज्यों में रेरा वेबसाइट मौजूद भी है, उन पर आपको आधी-अधूरी जानकारी ही मिल सकेगी. इस बारे में कंज्यूमरों की तमाम शिकायतें अनसुनी की जा रही हैं कि वेबसाइट पर बिल्डरों और प्रोजेक्ट से जुड़ी अधूरी या गलत जानकारी डाली गई हैं.
और, ये तब है जबकि केंद्र सरकार के बनाए रेरा कानून में ज्यादातर राज्यों ने अपने मन से बदलाव करके उसकी धार को ही खत्म कर दिया है.
ये कहना गलत नहीं होगा कि रियल एस्टेट कंज्यूमर को बिल्डरों की मनमानी से बचाने में रेरा कम से कम अभी तक तो ‘रियल’ मदद नहीं कर सका है. और, जिस धीमी गति से इस कानून को लागू किया जा रहा है, उससे साफ है कि घर खरीदारों को उनका हक दिलाने में ना तो सरकारों की दिलचस्पी है, और ना ही बिल्डरों की. और, जब तक राज्य सरकारें राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाएंगी, रेरा कागज पर भले ही कंज्यूमर की मदद कर ले, हकीकत में वो बेअसर ही रहेगा.
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