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देश में पहले पेमेंट्स बैंक के कामकाज शुरू करने के करीब साल भर बाद भी ये बैंक डिपॉजिटर्स को लुभा नहीं पाए हैं. इस वक्त चार पेमेंट्स बैंक चल रहे हैं. एयरटेल पेमेंट्स बैंक, फिनो पेमेंट्स बैंक, इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक और पेटीएम पेमेंट्स बैंक.
इन सभी में 30 सितंबर तक सिर्फ 236.45 करोड़ रुपये के डिमांड डिपॉजिट थे. हमें ये जानकारी रिजर्व बैंक में दाखिल एक आरटीआई अर्जी के जरिए मिली है.
डिमांड डिपॉजिट वो फंड होते हैं, जो कस्टमर अपने सेविंग्स और करेंट अकाउंट्स में रखते हैं. पेमेंट्स बैंक के लिए डिमांड डिपॉजिट की अधिकतम सीमा 1 लाख रुपये प्रति अकाउंट है और ये बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट नहीं कर सकते. पेमेंट्स बैंक को कर्ज देने की भी इजाजत नहीं है.
डिमांड डिपॉजिट का एक बड़ा हिस्सा एयरटेल पेमेंट्स बैंक के पास है. बैंक के पास 30 सितंबर तक 224.03 करोड़ रुपये के डिमांड डिपॉजिट थे. एयरटेल पेमेंट्स बैंक ने जनवरी 2017 में अपना कमर्शियल ऑपरेशन शुरू किया था. जुलाई 2017 में शुरू हुए फिनो पेमेंट्स बैंक के पास 6.8 करोड़ रुपये और मई 2017 में शुरू हुए पेटीएम पेमेंट्स बैंक के पास 3.25 करोड़ रुपये के डिमांड डिपॉजिट थे.
एयरटेल पेमेंट्स बैंक 7.25 फीसदी ब्याज देता है जो भारत में डिमांड डिपॉजिट पर सबसे ज्यादा ब्याज है. इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक की दर है 4.5-5.5 फीसदी, जबकि पेटीएम पेमेंट्स बैंक 4 फीसदी ब्याज दे रहा है. हालांकि पेमेंट्स बैंक के आला अफसरों का मानना है कि सिर्फ डिपॉजिट की रकम को इन बैंकों की कामयाबी के लिए मुख्य कारण नहीं मानना चाहिए.
इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक की चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर सविता गुप्ता के मुताबिक, उनके बैंक के आंकड़ों की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वो अभी भी पायलट फेज में चल रहा है. गुप्ता ने कहा कि बड़े स्तर पर इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक अगले चार महीनों में लॉन्च होगा, हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि उनकी रणनीति क्या होगी.
इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक को इस साल जनवरी में अपना कामकाज शुरू करने के लिए लाइसेंस मिला था. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक 30 सितंबर तक ये सिर्फ 72 लाख रुपये का डिपॉजिट ही हासिल कर सका था. इस मामले में बात करने से पेटीएम पेमेंट्स बैंक ने इनकार कर दिया, वहीं एयरटेल पेमेंट्स बैंक ने हमारे ईमेल का जवाब नहीं दिया.
आरबीआई ने पेमेंट्स बैंक को देश में फाइनेंशियल इनक्लूजन और अलग-अलग बैंकिंग मॉडल को बढ़ावा देने के मकसद से शुरू किया था. अगस्त 2015 में आरबीआई ने पेमेंट्स बैंक के लिए 11 आवेदकों के लाइसेंस को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी. जबकि फरवरी 2015 में आरबीआई को 41 आवेदन मिले थे.
इसके बाद के महीनों में 11 आवेदकों में से तीन- चोलमंडलम डिस्ट्रीब्यूशन सर्विसेज, दिलीप शांतिलाल संघवी और टेक महिंद्रा ने अपने हाथ पीछे खींच लिए थे. ज्यादातर को लगा कि डिपॉजिट पर लगाई गई पाबंदियों (उनका निवेश अधिकतर सरकारी सिक्योरिटीज में ही किया जा सकता है) की वजह से ये बिजनेस फायदेमंद नहीं रहेगा.
रिलायंस इंडस्ट्रीज के स्वामित्व वाले जियो पेमेंट्स बैंक ने रणनीति बदलते हुए अपने लॉन्च को टाल दिया है. हमने पहले खबर दी थी कि जियो अपने पेमेंट्स बैंक को अपने फीचर फोन के साथ ही लॉन्च करेगा ताकि दोनों प्रोडक्ट्स एक साथ बेचे जा सकें.
वोडाफोन पेमेंट्स बैंक और आदित्य बिड़ला पेमेंट्स बैंक भी अभी तक अपना कामकाज शुरू नहीं कर पाए हैं. सीएनबीसी टीवी18 को दिए एक इंटरव्यू में एनएसडीएल के एमडी और सीईओ जी. वी. नागेश्वर राव ने कहा था कि वो अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में अपना पेमेंट्स बैंक लॉन्च कर देंगे.
तो क्या डिपॉजिट जुटा पाने की अनिश्चितता और मुनाफे की चिंता की वजह से कंपनियां एहतियात बरत रही हैं? डेलॉयट इंडिया के पार्टनर कल्पेश मेहता ऐसा नहीं मानते.
पिछले हफ्ते ही पेटीएम ने आईसीआईसीआई बैंक के साथ मिलकर अपने यूजर्स को छोटी अवधि के डिजिटल क्रेडिट देने का ऐलान किया है. यूजर्स को उनके क्रेडिट स्कोर के आधार पर 20,000 रुपये तक का ब्याज-मुक्त कर्ज मिलेगा, जिसे उन्हें 45 दिनों के भीतर चुकाना होगा.
लेकिन क्या वॉलेट बिजनेस के जरिए कस्टमर ट्रांजेक्शन के डाटा नहीं जुटाए जा सकते हैं? मेहता के मुताबिक, पेमेंट्स बैंक का लाइसेंस दरअसल वॉलेट बिजनेस का फॉर्मलाइजेशन है. जरूरी नहीं है कि कस्टमर डिपॉजिट से पैसे जुटाना कंपनियों की रणनीति का हिस्सा हो.
(स्रोत: ब्लूमबर्ग क्विंट)
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